03/07/22
10:36 PM
Indu Bala Singh
रात के नौ बजे थे ।
किसी एक फ़्लैट से आवाज़ आ रही थी ….
पापा …. पापा …..
एक औरत के रोने की आवाज़ आई ।
पापा ….. पापा ….
औरत की चिल्लाने की आवाज़ आई ।
पापा …. पापा …..
बच्चे की आवाज़ से लग रहा था कि वह छोटा बच्चा था क्योंकि वो आगे कुछ नहीं बोल रहा था ।
छोटा सा फ़्लैट बालकनी विहीन ।इंसान उसी में कुहुस जाता है ।
आख़िर पापा की आवाज़ क्यों नहीं आ रही है ? मैंने सोंचा ।
कोई फ़्लैट किसी फ़्लैट से बात नहीं करता । आख़िर मेट्रो सिटी का फ़्लैट है ।
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