Sunday, December 6, 2020

वसीयत की मिठास



-इन्दु बाला सिंह 


पिता के गुजरने की खबर पाते ही दौड़ा आया विदेशी पुत्र राजेश शर्मा  ।भीड़भाड़ में सपरिवार नहीं आया वह । आख़िर परिवार को लाने का क्या फ़ायदा । माँ रो धो कर चुप रह गयी । 


राजेश को पिता जी की वसीयत देखने की हड़बड़ी थी । वह जानना चाहता था कि पिता ने किसके नाम अपना मकान लिखा है । हालाँकि वह एकलौता पुत्र था पिता का पर उसकी और तीन ब्याहता बहनें थीं ।अपनी माँ से रिश्तेदारों की बात चीत में सुन लिया था उसने कि वसीयत की एक नक़ल गादरेज आलमारी में पड़ी है । बस फिर क्या था उसने कुशलता से आलमारी का ताला तोड़ दिया और दुःखी माँ से कह दिया पता नहीं किसने ताला तोड़ दिया ।


वसीयत में लिखा था ... 


मेरी मौत अगर हो जाय तो मेरे मकान और बैंक के पैसों की मालकिन मेरी पत्नी रहेगी और मेरी पत्नी की मौत के बाद मेरी तीनों बेटियाँ और बेटा मालिक रहेंगे ।

डाक्टर क्वारंटायिन में हैं

 


09:01 AM 


31/07/20


-इन्दु बाला सिंह 


सत्यार्थी सरकारी कर्मचारी था । माँ को बुख़ार हुआ ।वह अपने माँ को प्राइवेट अस्पताल में ले गया ।डाक्टर ने भर्ती कर लिया सत्यार्थी जी माँ को । दूसरे दिन डाक्टर छुट्टी पर चला गया । सुनने में आया डाक्टर को कोरोना हो गया है । 

अब सत्यार्थी की माँ को डिस्चार्ज कर दिया गया ।


हार कर सत्यार्थी अपनी माँ को दूसरे प्राइवेट अस्पताल में ले गया। यहाँ डाक्टर ने पेशेंट देखते ही मना कर दिया भर्ती करने को ।क्रोध और छोभ से सत्यार्थी पागल सा हो गया । वह चिल्लाने लगा - मेरी माँ मर रही है और आप उसे भर्ती नहीं कर रहे हैं ?


 हॉस्पिटल का मालिक आ गया । पुलिस आ गयी ।

काफी बहस के बाद सत्यार्थी की माँ को अस्पतालवाले भर्ती किये अस्पताल में । दूसरे दिन डाक्टर क्वारंटाइन में चला गया।


सत्यार्थी की माँ को तीन दिन अस्पताल में रख कर डिस्चार्ज कर दिया गया ।

Saturday, July 25, 2020

ज़ूम एक परिचित नाम है

#लघु_लेख

-इन्दु बाला सिंह 

07:12 PM

25/07/20

कोरोना ने अनगिनत लोगों को कम्प्यूटर फ़्रेंडली बना दिया है । ज़ूम  से असंख्य लोग परिचित हो गये हैं ।
स्कूलों में शिक्षक ज़ूम से पढ़ाते हैं । किन्ही किन्ही स्कूलों को गूगल मीट भी भाता है ।

हम आजतक खबरें फ़ेसबुक पर देखते थे । एक दिन कवि सम्मेलन ज़ूम के माध्यम से मैंने फेसबुक ओर देखा । बड़ा अद्भुत लगा विभिन्न देशों के कवियों को अपने आइ पैड पर बिस्तर में लेट कर देखना व सुनना ।

अब तो वेबिनार में दूर दूर के डाक्टरों को भी फेसबुक पर ज़ूम के सहारे   सहज ही देखा और सुना  जा सकता है।

दुनिया बड़ी छोटी लगने लगी है । कोरोना ने हमें दुखी किया है , डराया है पर हमें जोड़ा भी है । 

-इन्दु बाला सिंह 

07:12 PM

25/07/20

कोरोना ने अनगिनत लोगों को कम्प्यूटर फ़्रेंडली बना दिया है । ज़ूम  से असंख्य लोग परिचित हो गये हैं ।
स्कूलों में शिक्षक ज़ूम से पढ़ाते हैं । किन्ही किन्ही स्कूलों को गूगल मीट भी भाता है ।

हम आजतक खबरें फ़ेसबुक पर देखते थे । एक दिन कवि सम्मेलन ज़ूम के माध्यम से मैंने फेसबुक ओर देखा । बड़ा अद्भुत लगा विभिन्न देशों के कवियों को अपने आइ पैड पर बिस्तर में लेट कर देखना व सुनना ।

अब तो वेबिनार में दूर दूर के डाक्टरों को भी फेसबुक पर ज़ूम के सहारे   सहज ही देखा और सुना  जा सकता है।

दुनिया बड़ी छोटी लगने लगी है । कोरोना ने हमें दुखी किया है , डराया है पर हमें जोड़ा भी है ।

Tuesday, July 21, 2020

ऑनलाइन कक्षा और हाये रे ये क्षात्र

#कोरोना

05:20 PM

21/07/20

-इन्दु बाला सिंह 

कोरोना का प्रकोप था । स्कूलों में जूम के सहारे ऑनलाइन कक्षायें चल रही थी।

हर कक्षा के बच्चों को इन्विटेशन मेसेज में भेजा जाता था । कक्षा शुरू होते ही शिक्षिका बच्चों को उनके  नाम पहचान कर अपनी ऑनलाइन कक्षा के अंदर बुलाती थी ।

शैतानी और क्षात्र का अटूट सम्बन्ध है । हर कक्षा में एक दो क्षात्र ज़रूर शैतानी करते हैं ।

 नेट के बचत के लिये क्षात्रों को अपना चेहरा छुपा क़र रखने की अनुमति थी ।

मोबाइल से एक नाम दो क्षात्र रख कर ऑनलाइन कक्षा में प्रवेश करना चाहते । फलस्वरूप जो क्षात्र आगे आता वह प्रवेश कर  जाता कक्षा में और असली नामवाला बंदा बाहर ही रह जाता । बच्चों  का दुस्साहस देखिये एक एक बच्चा तो किसी टीचर का नाम रख के प्रवेश कर लेता कक्षा में । हार कर उस नामधारी टीचर का नाम पुकार कर विषय शिक्षिका को उसके मौखिक उत्तर से जानना  पड़ता कि  वह शिक्षक के नामवाला क्षात्र है या शिक्षक । 

कभी कोई क्षात्र ट्रांज़िस्टर का गाना बजा देता तो कभी कोई क्षात्र कक्षा में अनुपस्थित क्षात्र की शिकायत करने लगता । 

चालीस मिनट के क्लास में से पाँच मिनट टीचरको क्षात्रों को डाँट के या प्यार से कक्षा के मूल्यवान समय बर्बाद न करने को समझाने में बीत जाता  था । पर क्षात्र आये दिन नित नयी शैतानी करते रहते थे ।

ऑनलाइन कक्षा टीचर के लिये जितनी नयी थी क्षात्रों के लिये भी नयी थी । 

क्षात्र चतुर होते हैं वे शैतानी के नये नये तरीके  ढूँढ ही लेते हैं । उन्हें ऑनलाइन कक्षा में मज़ा आता था । और तो और ऑनलाइन टेस्ट में तो उन्हें  और ही मज़ा आता था ।आराम से नकल कर के वे टेस्ट में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर  भी लिख देते थे ।

Wednesday, July 15, 2020

लड़की आपकी भाग्यविधाता है


- इंदु बाला सिंह
लड़की सरस्वती है , लक्ष्मी है , काली और दुर्गा है । वह पूजनीय है । बस वह इंसान नहीं है । वह स्वर्ग से उतरती है आपको सुकून पहुंचाने को पर अगर वह आपसे रुष्ट होती है तो आपका नुकसान कर जहां से आयी थी वहीं चली जाती है ।
बेटी अगर आपके भाग्य में है तो उसे कोई नहीं मार सकता । इसलिये बेटियों से सम्बंधित सारे कानून अपने पॉकेट में ही रखें ।

लिपि का धागा


-इंदु बाला सिंह
क्या ही अच्छा होता अगर भारत की सभी भाषायें देवनागरी लिपि में लिखी जातीं । भाषायें तो समझ आती हैं पर उन्हें पढ़ने के लिये उसकी लिपि को जानना जरूरी होता है । आखिर कितनी लिपियों को सीख जाये । उदाहरण के लिये बंगाली साहित्य पढ़ने के लिये बंगाली लिपि पंजाबी साहित्य के लिये पंजाबी साहित्य पढ़ने के लिये गुरुमुखी , ओड़िया साहित्य के लिये ओड़िया लिपि इत्यादि ।
देवनागरी लिपि में लिखा विभिन्न क्षेत्रीय साहित्य पूरे भारत को एक विचारधारा में बांध सकता है ।
अब आप कहेंगी भला उत्तरभारतीय दक्षिण भारतीय बोली नहीं समझ पाता तो देवनागरी लिपि में लिखा साहित्य क्या खाक समझेगा । पर दक्षिण भारत में रहनेवाले उत्तरभारतीय बोलचाल की भाषा तो समझ ही लेते हैं ।
इसवक्त हिंदी या अंग्रेजी छोड़ कर पूरे भारत
को बांध पानेवाली कोई भाषा मुझे सुझाई नहीं देती । मतलब या तो विभिन्न भाषाओं को हम देवनागरी लिपि में लिखें या लैटिन लिपि में ।
अब अंग्रेजी के जानकार आखिर कितने है ?
कुछ मित्रों को लगेगा कि इस तरह तो उन भाषाओं की लिपि का अस्तित्व मिट जायेगा ।
पर मुझे ऐसा नहीं लगता । मुझे नहीं लगता कोई बंगाली अपना साहित्य देवनागरी लिपि में पढ़ कर सन्तुष्ट होगा पर दूसरे क्षेत्र के निवासी देवनागरी लिपि का बंगाली साहित्य पढ़ लेंगे ।

समय का खेल


- इन्दु बाला सिंह
ये मेरा छोटा बेटा मेरे साथ गाँव में ही रहेगा । कोर्ट में लगा दूँगा इसे । सबकी चिट्ठी पत्री लिखेगा । बीमार रहता है न यह । .... रमेश प्रसाद का विचार था ।
अठारह की उम्र का होते होते पिता ने अपने छोटे बेटे विष्णु प्रसाद का ब्याह कर दिया ।
विष्णु प्रसाद जी ने पिता से लड़ के सी ० टी ० ट्रेनिंग कर ली ।
पर ईश्वर के मन में कुछ और था ।
फिर तो वे रुके नहीं ।
वे शहर में एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करने लगे ।
और वे अपनी पढ़ायी भी जारी रखे ।
उन्होंने प्राईवेट पढ़ायी करते हगे एम ० ए ० बी० एड ० पास करने के साथ साथ पाँच बेटे और बेटियों के पिता भेर बने ।
उन्हें अपने ब्च्चों को उनकीं मनचाही शिक्षा दिलाया और उनका उनका ब्याह भी करवा दिया ।
विष्णुप्रसाद जी एजुकेशन अफ़िसर पद से रिटायर हुए ।

बेटी का पिता


-इन्दु बाला सिंह
' लड़की का ब्याह करना है कुछ ही महीनों में । प्रोमोशन दे दीजिये न अगले क्लॉस में । बड़ी बदनामी होगे
लड़केवालों को जब पता चलेगा की लड़की आठवीं कक्षा में फ़ेल हो गयी है । ' बेटी के पिता गिड़गिड़ाये प्रिन्सिपल
के सामने ।
' साल भर तो बुलाने पर आते नहीं हैं आप । .... और अभी आपकी बेटी फ़ेल हो गयी है कक्षा में तो आप आये हैं । चलिये
आपकी बात मान लेते हैं । आपकी बेटी को कंडीशनली प्रमोटेड कर देते हैं नवीं कक्षा में । नवीं कक्षा की फ़स्ट
क्वॉर्टर्ली परीक्षा में अगर फ़ेल हो गयी आपकी बेटी तो उसे वापस आठवीं कक्षा में भेज दिया जायेगा । '
प्रिन्सिपल ने समाधान निकाला ।
और एक महीने बाद उस पिता ने बेटी की टी० सी ० के लिये स्कूल में अप्लाई कर दिया ।
फिर सुनने में आया ... लड़की ने बग़ल के सरकारी स्कूल में दाख़िला ले लिया है ।

ऐसी जीवन संध्या ?


- इन्दु बाला सिंह
पैसेवाले बेटों के सामने हाथ न फैलाया कभी महेश मिश्रा ने । वे अपनी जीवन संध्या अपनी युवावस्था की कमायी
में मितव्ययता से काट रहे थे । उन्होंने अपने बच्चों से कभी कुछ न माँगा । पिता से दूर अलग अलग शहरों में बसे
बच्चों ने भी कभी स्वत : अपने पिता को हर माह कुछ रुपये भेजना ज़रूरी न समझा ।
स्वाभिमानी महेश जीं एक बार ऐसा बीमार पड़े कि वे फिर बिस्तर से न उठ सके ।
बिस्तर पर ही वे अपने जीवन के अंतिम दिन काटे । चौबीस घण्टों सेवा के लिए एक पुरुष नर्स लगवा दिया बेटों ने ।
महेश जी अपने अंतिम दिनों में अपने बेटों से डरने लगे थे ।
उन्हें उनके पलंग से हटा कर चौकी दे दी गयी थी ।
यूँ लग रहा था मानो अब तो वे जानेवाले हैं पलंग क्यों ख़राब की जाय । हालाँकि पलंग महेश जीं की कमाई की ही थी ।
मित्र गण कहने लगे .... जाने या अनजाने में महेश जी ने ज़रूर कोई पाप किया था जिसका फल वे भोग रहे थे ।
मुझे स्वाभिमानी महेश जी की वह जीवन संध्या आज भी विकल कर जाती है ।

रिश्वत बिन घर दुःखी


- इन्दु बाला सिंह
वे अधिकार पूर्वक रिश्वत लेते थे । आख़िर बेटी के पिता थे । बेटी का ब्याह जो उन्हें करना था । और वे रिश्वत देनेवाले भी जिनके घर में बिनब्याही बेटियाँ थीं वे उनका दर्द समझते थे उन्हें रिश्वत देने में आनाकानी नहीं करते थे ।
सबको मालूम था बिना पैसों के बेटी आजीवन कुँवारी बाप घर में बैठी रह जाती है और भाई ,
भाभी की बोझ बन जाती है ।
हाँ ग़रीब घर की बुरी लड़कियाँ घर से भाग के ख़ुद शादी कर लेती हैं और अहंकारी बाप उनके लिये अपने घर का दरवाज़ा बंद कर देता है ।
तो मैं कह रही थी .....तनख़्वाह से तो केवल घर का ख़र्च चल पाता है ।
रिश्वत तो दूधारू गाय है । इसकी लात भी खाने में बुरी नहीं लगती किसीको ।
जिसे रिश्वत लेने की कला नहीं मालूम वही रिश्वत लेना बुरी बात कह के संत बने रहते हैं ।

पेड़ के नीचे निपट लो भई !


- इंदु बाला सिंह
शुलभ शौचालय बना है राहगीरों के लिये | तो चली गयी मैं अंदर |
अरे भई !
मूल्य तो लिखना था बड़े बड़े अक्षरों में एक बार यूज़ करने का | पर कहीं नहीं दिखा मुझे पहली निगाह में | लिखा था होगा कहीं छोटे छोटे अक्षरों में ,मुझे नहीं दिखा |
एक बार पहले भी गई थी दस रूपये ले के , तो बोला था इंचार्ज खुचरा नहीं है |
तो भई इस बार खुचरा ले के गयी थी |
मैंने पूछा , ' यूज़ करने के कितने लगेंगे | '
पूछना पड़ा भई |
मैंने सोंचा कि काश बोर्ड होता लिखा , ' एक बार का चार्ज ' |
' पांच रूपये ' खड़ूस सा मुंह बना के उसने कहा | बगल में खड़ा युवक खिसक लिया |
मैंने सोंचा , पहले यूज़ फिर पैसे |
और मैंने यूज़ कर के पैसे दे दिये |
अंदर गंध था | क्या ये लोग फिनायल नहीं डाल सकते ?
बाहर शुलभ शौचालय के कैम्पस में फल फूल का चारावाला बैठा था | चारा बेच रहा था | अच्छा है कमाने के गुर जानते हैं लोग | पर सफाई के गुर से कोई मतलब नहीं |
ऐसा क्यों ? गंदगी से परहेज क्यों नहीं ?
पब्लिक शौचालय कैसे कैसे लोग यूज़ करते होंगे |
सफाई के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं ?
सड़क पर केले का छिलका या बिस्कुट के रैपर फेंकना जन्मसिद्ध अधिकार है क्या ?
और मैंने निर्णय लिया ' शुलभ शौचालय 'कभी नहीं यूज़ करना है भले पेड़ के नीचे किसी आड़ में निपट लिया जाय | अब रोक तो नहीं सकते न भई |

पहले कमायी फिर ब्याह


- इन्दु बाला सिंह
' तेरी दो दो बेटियाँ हैं और तेरे देवर के पास दो बेटे । अपनी एक बेटी उसे देकर उससे एक बेटा ले ले । ' सासु माँ ने कहा था ।
' मेरी बेटी बेटे से कम नहीं । ' उसने सोंचा था ।
और ज़िंदगी चल निकली ।
नवविवाहता को यह न मालूम था कि उसका पति निकम्मा है । पर सासु माँ को अपने बेटे के गुण का पता था ।
घर के मुखिया पति पर क़र्ज़ चढ़ता चला गया ।
ज़िंदगी को आदर्श के साथ साथ आमदनी की भी ज़रूरत होती है ।
घर की बहू कमाने के लिये घर के बाहर निकल पड़ी ।
चिराग़ ले के ढूँढा दामाद ससुर का सिरदर्द बन गया ।
दिवालिया दामाद ने क़र्ज़मुक्त होने के लिये अपना मकान भी बेच दिया ।
मुसीबत में पति के साथ साथ सब अपने साथ छोड़ दिये ।
ख़ाली पिता अपने ब्याहता बेटी की खोज ख़बर रखते रहे । उन्हें अपने बेटों का भी तो ख़याल रखना था ।
कोई भला क्यों बोझ उठाये एक औरत और उसके दो बेटियों का ।
और वह सदा सोंचती रही , ' काश उसके पिता ने उसे , बेटों की तरह , पहले नौकरी करने लायक बनाया होता । उसके बाद उसका ब्याह करवाया होता । '

मित्रता ही मनुष्यता है

-इंदु बाला सिंह
कभी कभी हम वही बोलते हैं जो हम सुनना चाहते हैं ।
बेहतर है हम सामनेवाले को सुनें
हमारे सम्बन्ध प्रगाढ़ बनेंगे ।
रिश्तों की तरह मित्रता भी एक समझौता है ।
सहिष्णुता की नींव तले यह जड़ें जमाती है ।
मनुष्यता मित्रता की जननी है ।
बिना चाह के मित्रता टिकाऊ होती है ।

फौलादी इंसान


- इंदुबाला सिंह
'रूखा सूखा खाय के ठंडा पानी पी । '
बस इसी मूल मंत्र के सहारे कटी जिंदगी । ज्यादा की चाह नहीं ।
' Plain living high thinking'
इस मूलमंत्र ने उसे कभी जिंदगी ने नीचा नहीं गिराया ।
' मन चंगा तो कठवत में गंगा '
और इस मूल मंत्र ने धार्मिक आडम्बर से उसे सदा दूर रखा ।
और वह फौलादी अकेली इंसान सदा सबकी ईर्ष्या की पात्र रही ।

अफसोस शब्द भुला दें


- इंदु बाला सिंह
अफसोस करना भी एक आदत है । मैं कुछ व्यक्तियों के इंटरव्यू पढ़ी । अपनी जीवन सन्ध्या में उन्हें किसी न किसी बात का अफसोस था ।
मेरा यह मानना है कि अगर हम ईमानदारी पूर्वक अपना जीवन जीते हैं तो हमें किसी भी बात का अफसोस नहीं होता । और मूल बात यह है कि हमें अपने निर्णय पर कभी भी अफसोस नहीं करना चाहिये । ' हमनें जो सही समझा वह किया । ' - ऐसा विचार हमेशा हमारे मन को मजबूत बनाता है ।
खुश रहना एक आदत है । यह आदत हमें खुद में डाल लेनी चाहिये । हमें उन मित्रों से मात्र हैलो हाय की दोस्ती रखनी चाहिए जिनसे बात करने पर हमारे मन में नकारात्मक विचार पनपें ।
अपने परिवार के प्रति जितना हो सके हम अपना कर्तव्य निबाहें और अपने मन में कभी यह भाव न रखें कि वह हमारा ख्याल रखेगा । मन में जब हम ' नेकी कर दरिया में डाल ' वाला भाव रखते हैं तो हमारा जीवन खुशहाल रहता है ।

समय साधें


- इंदु बाला सिंह
दृढ़ इच्छाशक्ति ही अपनी मित्र है
बाकी सब समय के साथी हैं ।जिसने अपनी इच्छाशक्ति साध ली उसने समय को काबू में कर लिया ।
अपना मनचाहा जीवन जी लिया।

भाई_दूज


- इंदु बाला सिंह
मां तो सबको मिलती है आज । एक सन्तान में ही खुश रहते हैं लोग ।ऐसे माहौल में किस्मत से मिलते है किसी को रक्त सम्बन्धी भाई या बहन । फिर भी न जाने क्यों मां के रिश्ते को सर्वोपरि माना गया गया है ।
बड़े होने पर भाई बहन एक दूसरे को बिल्कुल नहीं सह पाते ।
और आज के दिन मुझे किसी अनजाने कवि की यह पंक्ति हमेशा याद आती है …
उषा ने नभ लाल बनाया ।
विमल दूज का दिन है आया ।।

आखों का दोष


- इंदु बाला सिंह
हर रोज अखबार में चमकती खबरें हैं लूटपाट , छिनैती , बलात्कार , आत्महत्या जैसी ढेर सारी नकारात्मक खबरें । अरे ! खबरें हैं तभी तो छपती हैं । बात तो सही है पर नकारात्मक खबरें हों तो उससे दुगनी मात्रा में सकारात्मक खबरें हों अखबार में । मैं यह नहीं कहती सकारात्मक खबरें नहीं छपती अखबारों में । छपतीं हैं भई पर मुझे तो वे केवल दस प्रतिशत ही दिखतीं हैं । हो सकता है मेरी आँखों का दोष हो ।

मोनिका समझदार हो गयी


- इंदु बाला सिंह
" हमारे घर में कार नहीं है | फ्रिज नहीं है | टी ० वी ० भी नहीं है | मैं यहां नहीं रहूंगी | मैं भाग जाउंगी | " मोनिका ने मचल कर कहा |
" कहां भाग कर जाओगी ? " मां परेशान हो गयी |
" मैं सुमित के घर में रहूंगी | वे लोग अमीर हैं | "
" बेटा ! ऐसे नहीं बोलते | " मां ने समझाया |
मोनिका अपना बैग उठायी और सुमित के घर चल दी | शनिवार का दिन था | दुसरी सुबह स्कूल तो जाना नहीं था |
परेशान मां ने सुमित की मम्मी से अपने घर की घटना के बारे में बताया | और कहा कि मोनिका उसके घर गयी है हमेशा के लिये रहने के लिये |
सुमित और मोनिका की मायें पक्की सहेलियां थीं |
" तुम चिंता न करो मैं सब सम्हाल लूंगी | " सुमित की मम्मी ने आश्वासन दिया |
डाइनिंग टेबल पर सुमित और मोनिका डिनर करने बैठे |
" मोनिका बेटे ! आज तो तुमको मैं खाना खिला रही हूं , पर कल से तुम्हें अपने खाने का पैसा देना पड़ेगा | " सुमित की मम्मी ने मोनिका को चेताया |
" तुमको अपने स्कूल का फीस भी खुद ही देना पड़ेगा | "
" पर आंटी मैं पैसे कहां से दूंगी आपको | मेरे पास तो पैसे नहीं हैं | " मोनिका परेशान हो गयी |
" बेटे स्कूल की फीस खाने के पैसे तो मम्मी पापा देते हैं | मैं क्यों दूंगी ? मैं तो तुम्हारे दोस्त की मम्मी हुं | "
और दुसरी सुबह मोनिका ने अपने घर का कॉलिंग बेल बजाया | मम्मी पापा ने खुश हो इस संडे ' ओला ' बुक कर पिकनिक का प्रोग्राम बनाया |

आइ लव यू ..... वाला काल


- इंदू बाला सिंह
´ अरे ! आज ट्यूशन रूम में पहुँचते पहुँचते मुझे अननोन नम्बर से तीन काल आ गये । कौन बोल रहा है पूछने से बोलता
है ´ आइ लव यू ´ । ´ मिस रोज़ी परेशान हो के अपने छात्रों से बोली । सभी दसवीं कक्षा के छात्र थे । वे सब अपनी
टीचरसे मित्रवत् थे ।
´हे हे ! टीचर को आइ लव यू बोलता है । ´ छात्रायें खिलखिला उठीं ।
´ कौन सा नम्बर है मिस ? हमको दीज़िए । ‘ नवीं कक्षा के छात्र ने कहा ।
अब उस नम्बर पर ट्यूशन के दसों छात्र बारी बारी से फ़ोन करने लगे ।कभी कालर फ़ोन काट देता तो कभी फ़ोन उठा
लेता । लड़कों को परेशान करने को एक नम्बर मिल गया था ।
´ आइ लव यू ´ वाले नम्बर की ख़बर ट्यूशन के हर छात्र तक पहुँच चुकी थी ।
दूसरे दिन दूसरा ग्रुप पढ़ने आया ।
´ दीजिये न मिस वो आइ लव यू वाला नम्बर । थोड़ा मज़ा लेंगे हम लोग । ´
इस ग्रुप में बारह छात्र थे । अब हर छात्र उस नम्बर ओर फ़ोन करने लगा । कभी वो फ़ोन काट देता तो कभी वो फ़ोन उठा
लेता । उठा के बोलता ´ रांग नम्बर ´ । और तब छात्र बोलते , ´ रांग नम्बर कैसे है ? इसी नम्बर से फ़ोन आया था । ´
शिक्षक और छात्र का सम्बंध भी ग़ज़ब का होता है । वे हमेशा मित्रवत् रहते हैं ।

सूरज और हवा ( लोक कथा)


- इन्दु बाला सिंह
एक बार सूरज और चाँद में झगड़ा हो गया । सूरज बोला मैं सबसे बड़ा हवा बोली मैं सबसे बड़ी ।
सूरज ने कहा कि देखो वो बटोही जा रहा है ।
जो भी उसका कोट उतरवा देगा वो बड़ा
कहलायेगा ।
‘ लगाओ शर्त ‘ सूरज ने कहा ।
हवा ने ख़ुशी ख़ुशी शर्त लगा लगा ली ।
अब हवा जोर से बहने लगी । हवा जितने जोर
से बहती उतने जोर से बटोही अपने कोट को
खुद से दबा लेता । हवा बटोही से उसका कोट
उतरवा न पायी ।
अब सूरज ने कहा कि देखो मैं बटोही से उसका
कोट पल भर में उतरवाता हूं ।
अब सूरज पूरी तेज़ी से चमका । चारों तरफ़
इतनी गर्मी बढ़ी कि बटोही पसीने से नहा उठा
। हार कर उसने अपना कोट उतार कर अपने
हाथ में पकड़ लिया ।

स्कूल की फीस

08:08 AM
15/07/20

-इन्दु बाला सिंह
‘ कितना मुश्किल से जमा किये हैं सर ! फीस का आधा पैसा । उधार लिये हैं इंट्रेस्ट पर । इसके पापा नहीं हैं ।दो महीने से मुझे पूरी सैलेरी भी नहीं मिली है । आधी फीस जमा करने से आप मेरी बेटी को ऑनलाइन क्लास में बैठने दे देंगी ?’ रिशा की मम्मी ने फोन पर चिरौरी की
‘ नहीं । आप एक महीने की फीस कम कर सकती हैं ... अगले महीने की फीस के साथ दे दीजियेगा।’
शिक्षक ने सोंचा उसे भी तो कम तनख़्वाह मिल रही है । उसके घर का खर्च कैसे चल रहा है यह वही जानता है ।
और शाम तक रिशा की मम्मी ने फीस के बाकी पैसे भी अपनी दोस्त से सूद पर ले ली और अपनी बेटी के स्कूल की फीस जमा कर दिया ।

ब्रांडेड दुकान


02:13PM
15/07/20
-इन्दु बाला सिंह
घर से निकली मॉल के लिये मिसेज़ मिश्रा ।बड़ा सुहाना मौसम था । ठण्डी ठण्डी हवा चल रही थी ।
दस मिनट आटो के चलने के बाद उन्हें ठण्ड लगने लगी। उन्होंने सोंचा अब ट्रेफ़िक जाम को काट कर दूसरी सड़क पकड़ घर से कार्डिगन लेने से अच्छा है मॉल से ही नया कार्डिगन ही ख़रीद लिया जाय ।
मॉल में वे सबसे पहले ऊनी कपड़े की दूकान में गयीं । खूब देख परख कर उन्होंने एक सुंदर सा कोट ख़रीदा।हालाँकि उन्हें साड़ी के अंदर पैरों में भी ठण्ड लग रही थी पर वे थर्मोकॉटनहीं ख़रीदीं ।
पैक करने को कहने के बाद वे सहज ढंग से अपने मन की भावना सेल्सगर्ल से कह उठीं।
‘ घर से चली तो ठण्ड न लग रही थी । रास्ते में ठण्ड लगने लगी तो ऊनी कपड़ा ख़रीदना पड़ा ।’
सेल्सगर्ल ने अपनी ठण्डी हथेली मिसेज़ मिश्रा जी हथेली पर रख कर धीरे से कहा - ‘देखिये मेरी हथेलियाँ कितनी ठण्डी हैं । हमें स्वेटर पहनना एलाऊड नहीं है।
एक पल के लिये मिसेज़ मिश्रा अपराधबोध से ग्रसित हो गयीं। फिर उन्होंने सोंचा ... यह इतनी ब्रांडेड दूकान है ! और जाड़े के मौसम में अपनी सेल्सगर्ल के साथ ऐसा व्यवहार!
उस सेल्सगर्ल का चेहरा वे भूल गयीं पर उस सेल्सगर्ल की दूबली पतली काया व उसके शिकायती बोल रह रह कर उनके मानस पटल पर आजीवन टकराते रहे ।