#कोरोना
05:20 PM
21/07/20
-इन्दु बाला सिंह
कोरोना का प्रकोप था । स्कूलों में जूम के सहारे ऑनलाइन कक्षायें चल रही थी।
हर कक्षा के बच्चों को इन्विटेशन मेसेज में भेजा जाता था । कक्षा शुरू होते ही शिक्षिका बच्चों को उनके नाम पहचान कर अपनी ऑनलाइन कक्षा के अंदर बुलाती थी ।
शैतानी और क्षात्र का अटूट सम्बन्ध है । हर कक्षा में एक दो क्षात्र ज़रूर शैतानी करते हैं ।
नेट के बचत के लिये क्षात्रों को अपना चेहरा छुपा क़र रखने की अनुमति थी ।
मोबाइल से एक नाम दो क्षात्र रख कर ऑनलाइन कक्षा में प्रवेश करना चाहते । फलस्वरूप जो क्षात्र आगे आता वह प्रवेश कर जाता कक्षा में और असली नामवाला बंदा बाहर ही रह जाता । बच्चों का दुस्साहस देखिये एक एक बच्चा तो किसी टीचर का नाम रख के प्रवेश कर लेता कक्षा में । हार कर उस नामधारी टीचर का नाम पुकार कर विषय शिक्षिका को उसके मौखिक उत्तर से जानना पड़ता कि वह शिक्षक के नामवाला क्षात्र है या शिक्षक ।
कभी कोई क्षात्र ट्रांज़िस्टर का गाना बजा देता तो कभी कोई क्षात्र कक्षा में अनुपस्थित क्षात्र की शिकायत करने लगता ।
चालीस मिनट के क्लास में से पाँच मिनट टीचरको क्षात्रों को डाँट के या प्यार से कक्षा के मूल्यवान समय बर्बाद न करने को समझाने में बीत जाता था । पर क्षात्र आये दिन नित नयी शैतानी करते रहते थे ।
ऑनलाइन कक्षा टीचर के लिये जितनी नयी थी क्षात्रों के लिये भी नयी थी ।
क्षात्र चतुर होते हैं वे शैतानी के नये नये तरीके ढूँढ ही लेते हैं । उन्हें ऑनलाइन कक्षा में मज़ा आता था । और तो और ऑनलाइन टेस्ट में तो उन्हें और ही मज़ा आता था ।आराम से नकल कर के वे टेस्ट में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर भी लिख देते थे ।
No comments:
Post a Comment