Friday, October 27, 2023

यह मेरा घर है



16/06/22


Indu Bala Singh


‘ तुम नहीं ले के आओगे तो स्वाति घर नहीं आयेगी ? यह मेरा घर है ।’ पिता ने डपटा अपने ब्याहता पुत्र को ।


और सत्तर वर्षीय सूर्य प्रताप अपनी पुत्री को अपने स्कूटर पर बैठा कर अपने घर ले आये। सामान और बच्चे पीछे आये।


दामाद अपनी पत्नी और बच्चों को किराये के मकान में छोड़ ग़ायब हो गया था।काम नहीं आमदनी नहीं। और वह लौटा भी नहीं अपने परिवार के पास।



बेटी

 


22/06/22


Indu Bala Singh


अस्सी वर्षीय श्वेता के कष्ट को महसूस करने वाला कोई न था । श्वेता को उसका भाई फूटी आँखों नहीं देखना चाहता था अपने पैतृक घर में ।

कभी न रोनेवाली अपने पिता का हाथ पकड़ कर रो रही थी। उसके पिता कह रहे थे - क्या हुआ ? … क्या हुआ ?


पर श्वेता के मुँह से बोल न फूट रहे थे ।


रोते रोते नींद खुल गयी श्वेता की। नींद खुलने पर हालाँकि उसे ज्ञान हो गया था कि वह सब स्वप्न था। पिता को गुजरे तो बीस वर्ष हो गये थे। स्वप्न में महसूस किया कष्ट तो सत्य था । 


नींद खुलने पर भी श्वेता दो मिनट तक रोती रही।



फ़्लैट

 


03/07/22


10:36 PM


Indu Bala Singh


रात के नौ बजे थे ।


किसी एक फ़्लैट से आवाज़ आ रही थी …. 


पापा …. पापा …..


एक औरत  के  रोने की आवाज़ आई ।


पापा ….. पापा …. 


औरत की चिल्लाने की आवाज़ आई ।


पापा …. पापा …..


बच्चे की आवाज़ से लग रहा था कि वह छोटा बच्चा था क्योंकि वो आगे कुछ नहीं बोल रहा था ।


छोटा सा फ़्लैट बालकनी विहीन ।इंसान उसी में कुहुस जाता है । 


आख़िर पापा की आवाज़ क्यों नहीं आ रही है ? मैंने सोंचा ।


कोई फ़्लैट किसी फ़्लैट से बात नहीं करता । आख़िर मेट्रो सिटी का फ़्लैट है ।



मेरा पढ़ने को बहुत मन करता



#इन्दु_बाला_सिंह 


उस बुजुर्ग महिला से मिली मैं यू ही एक दिन पार्क के ट्रैक पर चलते चलते ।


कभी कभी दिखती थी वह मुझे ।


एक दिन वह खुद बढ़ कर मुझसे बात की।


मध्यवर्गीय घर में  बुजुर्गों का  काम बच्चों को पार्क ले जाना और देखते रहना कि कहीं उनके नाती या पोते को चोट तो न लग गयी ।


बहुत दिन के बाद वह बुजुर्ग महिला फिर मिली और हम दोनों ने अपने अपने मूल घरों का परिचय दिया और लिया ।


‘ मुझे पढ़ना नहीं आता।’ - एक दिन उसने कहा। 


मैं चौंक गयी ।


मैंने उसका मनोबल बढ़ाया । 


‘ -हाँ । आपके पिता को कोई समस्या होगी । इसलिये वे आपको स्कूल न भेज पाये होंगे । अब पढ़ लीजिये अपनी पोती की किताब देख देख कर ।’


वह चुप रह गयी।


कुछ दिन बाद मुझे वह बुजुर्ग महिला   मुझे पार्क में फिर मिल गयी।


 ‘ मेरा बेटा कहता है क़ि क्या करेगी तुम पढ़ कर।……. पर मुझे पढ़ना है ।  मुझे बस और दुकानों  के नाम पढ़ना  है ।’


 मैं दुःखी हुईं उसकी बातें सुनकर ।


फिर वह कहने लगी - ‘ हमारा अपना मकान था । मेरे पति के गुजरने पर मेरी बेटी ने वह मकान ख़रीद लिया मुझसे । उसने मेरे हिस्से का पैसा मुझे दे दिया। और मैंने वह पैसा अपने बेटे को दे दिया। बेटे ने  उस पैसे से यहाँ  एक छोटा मकान ख़रीद लिया ।’


मैं मौन सुन रही थी उसकी बातें ।


फिर वह कहने लगी - 


‘ मेरा बेटा कहता है तुम यहीं रहो । पर मेरी बहु मुझसे  बात नहीं करती है ।’ 


पर मुझे पढ़ना है । मेरी पोती कहती है कि आज़ी ! जब मैं पहली कक्षा में जाऊँगी तब तुम्हें पढ़ाऊँगी ।’


दिल मेरा दुःखी था। नया शहर था । 


शायद उस बुजुर्ग महिला का मुझसे मिलना मेरे नसीब में था ।


और मुझे अपनी माँ याद आयी। 


  मैंने सुना था उसे  पिता को कोसते हुये  - सबको पढ़ाते हैं । मुझे अंग्रेज़ी पढ़ाते तो कम से कम मैं बसों और  दुकानों पर अंग्रेज़ी में लिखे नाम तो पढ़ पाती ।



संस्मरण , पिता के संग यात्रा का -1

 #संस्मरण 


यात्रा का -1


23/07/22


6:27PM


#इन्दु_बाला_सिंह 


घर की बड़ी बेटी थी मैं और पिता के बहुत क़रीब थी । कहीं जाना हो तो वे मुझे साइकल पर बैठा कर ले जाते थे वे मुझे अपने साथ ।


मेरे पिता घूमने के खूब शौक़ीन थे । टीचर थे जबतक पिता मेरे  गर्मी जी छुट्टियाँ होतीं थीं और हम छुट्टी के दूसरे दिन ही शहर के घर में ताला मार कर निकल पड़ते थे अपने गाँव यानि कि दादा के घर। 


जौनपुर स्टेशन पर हम केराकत के लिये पैसेंजर ट्रेन पकड़ते थे। एक बार दो ट्रेनों के बीच काफ़ी समय था। और मुझे पिता जौनपुर घुमाने ले चले। मुझे इस समय मात्र एक घटना याद है - मस्जिद में जाना। मैं कौतूहल से उस मस्जिद को देख रही थी। 



संस्मरण , किचेन के - 1



25/07/22


3:20 PM


Indu Bala Singh


होश सम्हाला है जबसे मुझे अकेले काम करना अच्छा लगता है। 


कितनी ख़ुशी होती है जब कोई अपना काम खुद अकेले ही कर ले किसी के आदेश या मार्गदर्शन के बिना ।


उम्र पाँच वर्ष थी होगी मेरी । बस न जाने कैसे लगा कि दाल बनाना बड़ा आसान है। देखती थी माँ बटुली में दाल धो कर बैठा देती है। बस कुछ समय के बाद दाल पक जाती है। 


उस समय पीतल की बटुली होती थी घर में। 


तो भई ! बटुली में दाल धो कर लकड़ी के चूल्हे पर बैठाया मैंने। पानी अन्दाज़ से डाला बटुली के दाल में। हल्दी और नमक भी डाला मैंने। किचेन में बैठ के पकायी दाल मैंने। बीच में माँ झांक कर जा रही थी बार बार। 


´ मैं बना लूँगी ´ 


मेरा स्लोगन था।


दाल पक गयी।


अब चूल्हे से पकी दाल उतारनी थी। कपड़े से पकड़ कर दाल की बटुली चूल्हे से उतारने से हाथ के जलने का भय था।


तो भई! हमने सड़सी से पकड़ कर बटुली चूल्हे से उतारना बेहतर समझा।


बस सड़सी से बटुली उठाते ही टेढ़ी हुई बटुली। पूरे पके दाल की नदी बन गयी।


अब दाल ज़मीन पर गिर गयी तभी तो वह घटना याद है मुझे।


पाँच पैच्छे दो

 


Wednesday, 27 July 2022


1:43 AM


Indu Bala Singh


न जाने कैसे फ़ेसबूक के स्टेटस पढ़ते पढ़ते वह दो  या तीन वर्षीय बिखरे बालों वाली स्टेशन के प्लेटफ़ार्म पर भीख माँगनेवाली लड़की याद आ गयी मुझे ।


वह मेरे पास आ कर बोली - ´ पाँच पैछे  दो ।´


पुरानी घटना है । आज से पचास साल पुरानी … उस समय पाँच पैसे के सिक्के चलते थे । उस दिन मैं होस्टल से घर लौट रही थी। 


उस बच्ची से मैंने ढेर सारी बातें की थी और उसे पाँच पैसे का सिक्का दिया था। 


 स्टेशन तो वही आज भी है पर वह नहीं और बहुत से बच्चे माँगते अब भी दिख जाते हैं । अब वे पाँच पैसे नहीं एक रुपये माँगते हैं ।


क्या हमारी गरीबी बढ़ती  जायेगी ? 


आज जीवन की संध्याकाल में निरुत्तर हूँ ।



बड़ी बहन



27/07/22


Indu Bala Singh


रम्या जी अपनी बहन से मिलने के लिये तरसती रहतीं थी । उनकी बड़ी  कुन्नो का ब्याह गाँव में हुआ था। खूब जायदाद थी गाँव में उसके पति की। कुन्नो की एक बेटी थी। उसके पति  ब्याह के कुछ वर्षों बाद ही गुज़र गये थे । 


कुन्नो की बिटिया की तेज क़िस्मत थी । उसका ब्याह सरकारी कालेज के लेक्चरर से हुआ था। 


कुन्नो के दामाद सुमित को रम्या जी का फ़ोन नम्बर मिल गया। चूँकि रम्या जी बम्बई शहर में रहतीं थी तो सुमित उनसे खूब बातें करते थे ।


एक बार सुमित ने कहा रम्या जी से - ‘ मौसी आपसे मिलने का मन करता है ।’


रम्या जी खुश हुईं।उन्होंने कहा - ‘  आना तो अपने बच्चों को ले आना और अपनी सास को भी ले आना । बहन से मिले कितने बरस हो गये।’


उसके बाद से सुमित का फ़ोन आना बंद हो गया ।



माँ के सपने

 


Saturday, 13 August 2022


11:PM


#इन्दु_बाला_सिंह


माँ चल नहीं पाती थी। 


पर नहाने के बाद दीवाल पकड़ पकड़ कर आलमारी के पास पहुँचती थी।


आलमारी के एक रैक पर उसके आराध्य शिव थे ।


 मुश्किल से वह धूप बत्ती जला कर अपने आराध्य  के सामने हाथ जोड़ती थी। 


‘ बच्चे जहां रहें खुश रहें ।´


यही प्रार्थना कर  वह अपने ईश्वर के सामने फिर से हाथ जोड़ देती थी ।


माँ के सपने अपने पति से जुड़े थे। 


पति के गुजरने के बाद उसने अपनी स्थिति से समझौता कर लिया था।


उसे अपने बेटों से कोई आकांक्षा नहीं थी ।


सेविका के सहारे अपने मकान में कट गयी उसकी जीवन संध्या ।

लिफ्ट टॉक -1, ख़राब मौसम



02/11/22


#इन्दु_बाला_सिंह


‘ कितना ख़राब मौसम है।मुझे ब्रेड लेना था इसलिये 


नीचे गयी। वरना आराम से बिस्तर में सोयी रहती।’


उम्रदार महिला ने अफ़सोस के साथ  कहा ।


बग़ल में खड़े पुरुष ने हुंकारी भरी । वह रात के आठ


 बजे ऑफ़िस से लौट रहा था ।



नन्ही जान का जाड़ा

 


05/11/22


#इन्दु_बाला_सिंह


पोती पैदा हुई।


नाना नानी से बच्ची को सोने की चेन , नया 


कपड़ा , मामा के बचपन का वार्निश से चमका 


के नया सरीखा बनाया झूला उपहार में मिला 


। दादा ने  अपने दूसरे बेटे को कह के सोने की 


चेन दिलवाया। दादी ने घर में प्रयोग होनेवाली 


थाली दी। बुआ ने नये कपड़े संग अपनी 


बिटिया के बचपन के पुराने एक सूटकेस भर 


कपड़े दिये।


कट गया जाड़ा नन्ही जान का ।


रीता के पापा

 


11/11/22


#इन्दु_बाला_सिंह


हमारा जमाना कुछ और था। दिन में पत्नी से बात 


करना मुश्किल था। 


अरे ! रीता के पिता तो बाहर दुआरे में रहते थे। 


हंस के श्रीमती राधा जी ने कहा ।


बिजली तो हमारे  गाँव में थी नहीं । मिट्टी की बखरी 


थी । शाम का समय था। न जाने कहाँ से एक 


बिच्छू आया और मुझे काट दिया कुहनी और 


हथेली के बीच। हमारे गाँव में बिच्छु के ज़हर 


उतारने का तरीक़ा था काटे स्थान पर चीरा 


लगा के खून बहा देना । इस प्रकार  बिच्छू का 


ज़हर निकल जाता था।


अब बहू के हाथ को पकड़ के चीरा कौन लगायेगा? 


रीता के पापा को बुलाया गया ।


वे झेंपते हुये आये  ब्लेड से ज़ोर लगा चीरा लगाये और 


भाग गये बाहर ।खून बहने लगा ।


हालाँकि इस समय श्रीमती राधा शहर के 


सुविधापूर्ण घर में थी पर मित्र के नाम पर 


उसके पास केवल  घरेलू सहायिका ही थी ।


 घरेलू सहायिका से  मालकिन अपने गाँव के 


कष्ट बाँट रही थी । घरेलू सहायिका का 


काम एक श्रोता का भी रहना ज़रूरी है ।


बग़ल के रूम में पेईंग गेस्ट के रूप रहते युवा 


सरकारी इंजीनियर के लिये रविवार के दिन  


मकान मलकिन  का कमरा  रेडियो बन जाता था ।



Wednesday, October 25, 2023

बेटी का पिता और गाँव

 


12/11/22 


#इन्दु_बाला_सिंह


गाँव के खेत खलिहान छोड़ के शहर कमाने चले गये थे राम प्रसाद। खेत कम और मकान छोटा पड़ गया था परिवार बढ़ने के कारण । पैसों की आमदनी तो अब शहर से ही हो सकती थी।


शहर में अनपढ़ क्या कमाता। सूद का धंधा आसान था ।

 घर के एक सदस्य को लठैत बना लिया उसने पैसों की वसूली के लिये । उसका काम था दिन भर अखाड़े में अपनी सेहत बनाना और रामप्रसाद का सिक्का चलाना । इस तरह बस काम चल निकला था उनका ।


राम प्रसाद साल में एक बार गाँव जाते थे अपने घर ।खूब आवभगत होती थी उनकी ।


राम प्रसाद बाल बच्चेदार हो गये पर उन्होंने कभी अपने खेत खलिहान और मकान में हिस्सा न माँगा। गाँव के घर के रिश्तेदार खुश रहते थे और जब वे शहर में राम प्रसाद के घर जाते थे तो वहीं छः छः महीने रह जाते थे ।


राम प्रसाद का गाँव मोह न छूटा । वे बहुएं गाँव से लाए और बेटियाँ गाँव में ब्याहे ।


राम प्रसाद जी की बहुएँ तो शहर के बिजली और घर के अंदर शौचालय के कारण खुश थीं तो बेटियाँ उन्हीं चीजों के अभाव के कारण  त्रसित थीं । इसके अलावा गेंहू जाँत में पीसने पर  आंटा मिलता था  । चना जाँती में दरने से दाल मिलती थी ।

रामप्रसाद की सबसे छोटी तेरह वर्षीया बेटी सुलभा ससुराल में अपने  मैके के कपड़ों में चमकती रहती थी और दौड़ दौड़ के घर के सारे काम करती रहती थी । घर में सास से मिलने आयी   हर बूढ़ी के सामने आँचल फैला के गोड़ पड़ती और आशीर्वाद लेती थी । सुलभा पूरे गाँव में शहरी बहू के नाम से प्रसिद्ध थी । सास ससुर को नाज था अपने शहरी पतोहू पर ।


राम प्रसाद बेटी के ब्याह के एक माह बाद आये अपनी बेटी के घर। उस जमाने में बेटी के घर का पकाया ख़ाना बेटी का पिता नहीं खाता था ।


राम प्रसाद दुआर में आग जला के ख़ाना पका के खाये और बेटी से मिल कर चले गये। 


कुछ दिनों के बाद राम प्रसाद के गुजर जाने की खबर आयी ।


पंद्रह वर्षीय पति  देवेंद्र अपनी पढ़ाई पूरी कर चले गये कमाने शहर और सुलभा अपने सास ससुर के पास रही ।


घर में एक जेठ जेठानी तो थे पर घर में पति की उपस्थिति न थी ।


आख़िर बदली जीवन शैली कितने दिन सुलभा का शरीर सह पाता ।


सुलभा पाँच दिन तक बुख़ार में तमतमाती अपने कमरे में पड़ी रही । 


अब सास परेशान ।


एक दिन एक साधू दान माँगने द्वार पर आया। 


सास अपनी छोटी बहु सुलभ की साधु के पास ले गयी और बोली - महाराज इसे थोड़ा झाड़। दीजिये । शायद इसे नज़र लगी है ।  शहर की लड़की है ।अब क्या बोलूँ । बेटे को कौन सा मुँह दीखाऊँगी ।


साधु ने अपने हाथ के मोर पंखों से सुलभा को झाड़ा और चला गया 


विश्वास में शक्ति होती है । ईश्वर पर असीम विश्वास वाली सुलभा का बुख़ार धीरे धीरे  स्वयं ठीक हो गया । 

घर के कामों में शहरी बहू फिर से लग गयी ।


 #memories

पितृसत्ता की तलाश - 1 और उसने कहा था



#इन्दु_बाला_सिंह


शादी में बोले थे कि नौकरी करता है लड़का। 


यहाँ आने पर मालूम हुआ लड़का ड्राइवर है । 


-  एम० ये ० पास महिला ने कहा ।


फिर कुछ रुक कर उसने कहा -


“ बदक़िस्मती थी मेरी कि मुझे बेटी हुई पैदा । 


अब मुझे इसका ख़्याल रखना है । एक दिन 


मुझे मेरे पति ने घर से बाहर निकाल दिया था 


। रात भर बच्ची समेत मैं घर के दरवाज़े के 


बाहर बैठी रह गयी। अब किसी से क्या 


बोलूँ । पुरुष की चलती घर में । पड़ोसी सब 


सुन रहे थे पर वे सुन कर भी अनसुने रहे । “


न जाने क्यों वह आज मेरे सामने खुल गयी थी ।



Tuesday, October 24, 2023

लोक_कथा -1 माँ का दिल

 #लोक_कथा 


माँ का दिल 


08/02/23


प्रेमिका ने प्रेमी से कहा -


‘ अगर तुम अपनी माँ का दिल मुझे ला कर दे 


सकते हो तो मैं मान लूँगी कि तुम मुझे बहुत 

प्यार करते हो।’


प्रेमी दुःखी हुआ सुन कर अपनी प्रेमिका की शर्त ।


पर वह अपनी प्रेमिका को खोना नहीं चाहता था ।


वह अपने घर गया। अपनी माँ को मार कर 


उसका दिल ले के अपनी प्रेमिका के पास चला ।


रास्ते में उसे ठोकर लगी तो वह लड़खड़ा गया ।


तभी प्लेट पर रखे दिल से आवाज़ आयी -


‘ बेटा चोट तो नहीं लगी ।’



पार्क में - 5 आदेश


#इन्दु_बाला_सिंह


भाई बहन साइकिल चला रहे हैं । भाई आगे है बहन पीछे है । हर थोड़ी देर बाद भाई रुक जाता है । पीछे मुड़ कर बहन को देखता है । बहन रुक गयी है । बहन भाई के आदेश का इंतज़ार कर रही है । भाई को  अपनी बहन को अपना आदेश मानते देख तृप्ति मिलती है । थोड़ी देर में भाई बोलता है - चल ।


बहन पीछे पीछे साइकिल चलाने लगती है ।

पार्क में - 5 दबाव



#इन्दु_बाला_सिंह


दादा जी चिल्लाये -


“ अरे ! अपने चप्पल  ले जाओ । “


बहन की उम्र पाँच वर्ष और भाई की तीन वर्ष महसूस होती है ।


भाई मुड़ा ।


चुप से देखता रहा ।


दादा जी ने पोते की चप्पल उठा ली और पोती अपनी चप्पल ले कर आयी ।



पार्क में - 6 मेरी मम्मी



#इन्दु_बाला_सिंह 


मेरी मम्मा  को तुमने डाँटा !


दो साल की बच्ची को मम्मी ने काफ़ी देर तक 


झूला झुला दिया था । 


अब बच्ची पार्क से लौटने को तैयार नहीं ।


मम्मी बोली - मैं जा रही हूँ । बाई ।


बच्ची सी- सा के एक साइड पर चुप से बैठ गई ।


मैं वॉकिंग कर रही थी ट्रैक पर और यह सब देख 


रही थी ।


अब मम्मी आई और अपनी बच्ची की पीठ पर 


दो चाँटा लगाई ।उसे खींच कर ले जाने को वह 


आतुर थी पर बच्ची टस से मस न हुई ।


 अरे न मारिये ।- मेरे मुँह से अनायास निकल 


पड़ा ।


देखिये न ! यह चलती ही नहीं है । कितने देर 


तक खेल चुकी है ।- मम्मी जी के मुँह से निकल 


पड़ा ।


बच्ची को लगा मैं उसकी मम्मी को डाँट रही हूँ ।


वह तुरंत सी सा से उठ गयी और अपनी मम्मी के 


पास आ गयी ।


आंटी को बाई करो । - मम्मी जी ने अपनी 


बिटिया से कहा ।


और बच्ची ने मुझे अपनी नन्ही हथेली से चट से 


मारा । अब वह अपनी शिकायती आँखों से मुझे 


देख रही थी ।


अरे ! तुमने क्यों मारा आंटी को  ? 


जाने दीजिये ।- मेरे मुँह से निकल पड़ा ।


मैंने मुस्कुरा कर बच्ची का चेहरा देखा और कहा 


- कल फिर मिलेंगे ।

सांध्यबेला के बाद

 


#इन्दु_बाला_सिंह


पिता  के पास जीवन की सांध्यबेला में पुस्तकों के नाम पर केवल गीता और और अपनी डायरी थी । 


उनके गुजरने के बाद गीता और डायरी  अलमारी में ताले के अंदर पड़ी रही ।


कपड़े मुश्किल से चार पाँच थे । गर्म कपड़ों के नाम पर  स्वेटर और  कोट थे ।उन्हें कि किसी नौकर को दान कर दिया गया ।


माँ के गुजरने के बाद अलमारी की चाभी बेटे के पास पहुँची ।


 पिता की  गीता और डायरी स्टोर में कबाड़ बन गयी ।


माँ - 1 स्वावलंबन



#इन्दु_बाला_सिंह 


पिता ने अपनी बेटी   को कमरा दे दिया अपने घर में और कहा अपना ख़ाना अलग बनाओ ।उसका राशन कार्ड भी बनवा दिया । वे चाहते थे कि उनकी बेटी अपनी अपने बच्चों की ज़िम्मेवारी ख़ुद सँभाले । कल को वे न रहें तो कम से कम उनकी बिटिया में अकेले जी पाने की सामर्थ्य तो रहेगी ।


और जूझती रही चार बच्चों की माँ अकेली समय से ।

पिता तो कुछ समय बाद गुजर गये पर अकेली जी पाने की सामर्थ्य कूट कूट कर भर गया उस अकेली माँ में ।



बचपन- 1 स्टील की थाली

 


#इन्दु_बाला_सिंह


पिता परिवार को गाँव में छोड़ कर शहर टीचर की ट्रेनिंग करने चले गये ।


 ताई ने अपने  बेटे को चाँदी सी स्टील में ख़ाना परस के दिया। 


नीलू को पीतल की थाली में ख़ाना मिला ।


छः वर्षीय नीली ललच उठी ।


उसे भी उस चाँदी वाली थाली में ख़ाना था ।


वह माँ से ज़िद करने लगी उसे भी  उसी चाँदी वाली थाली में ख़ाना था ।


थाली पड़ी रहती थी पर नीली को उस चाँदी वाली थाली में ख़ाना न मिलता था ।


दादा  पोते को अपने पास बिठा कर दालान में पढ़ाते थे ।

नीली दादा के पास जाने को तरसती थी ।


माँ चुप रहती थी ।


गाँव की लड़कियां मिट्टी से रगड़ के पोखरी में बर्तन धोतीं थीं।


एक दिन एक जूठा बर्तन ले के नीली भी भाग गयी पोखरी बरतन माँजने ।


दादी को पता चल गया  न जाने कैसे । 


वे दौड़ती हुई आयीं ।


‘ अरे ! बप्पा रे ! मैं अपने बेटे को मुँह दिखाने लायक़ नहीं रहती। पानी में डूब जाती लड़की  ।’


बगीचे में उसके हमउम्र लड़के खेलते थे ।


वह उन्हें केवल देख सकती थी । उनके साथ खेल नहीं सकती थी ।


और एक दिन दालान में खड़ी थी नीलू ।


सफ़ेद झक्क कपड़ों में कोई आ रहा था ।


आश्चर्य से वो उसे देख रही थी ।


पास आने पर लहक उठी बिटिया - अरे ! ये तो उसके अपने पिता हैं ।


एक वर्ष बाद नीली अपने घर शहर में आ गयी ।


और आज उसकी माँ ने चाँदीवाली थालियों और गिलासों से घर भर दिया  है ।


बचपन - 2. वह चार वर्षीय बच्चा



#इन्दु_बाला_सिंह 


सुधीर किण्डर गार्टेन में के० जी० का छात्र था । 


उसकी माँ ने एक बार मुझसे बात क्या कर ली वह मुझे अपना दोस्त मान लिया । 


कहाँ मेरी अधेड़ उम्र और वो नन्हा सा बच्चा ।


दूसरी बार जब वह मुझे पार्क में देखा  तो खुश हो गया । और ख़ुशी में दौड़ लगाने लगा ।


तीसरा दिन 


वह मुझे देखते ही मुझे हथेली से पिस्तौल बना कर मेरा ध्यान आकर्षित करने लगा ।


मैंने कहा - अरे तुम मुझे गोली मारोगे ?


और वह भाग गया ।


मैंने सोंचा - कैसी माँ है इसकी ? यह बच्चा कैसा खेल 


खेल रहा है । कहाँ से सीखा इसने गोली चलाने का 


खेल । 


चौथे दिन फिर उसने ख़ाली हथेली से  गोली चलाने  


का अभिनय किया । 


थोड़ी देर में वह  ख़ुद दौड़ने लगा ।


चौथे दिन वह अपनी माँ के साथ था । 


इस बार उसने कहा मैं आप दोनों को जेल में बंद कर दूँगा ।


 फिर उसे याद आया अपनी माँ को जेल में बंद 


करना ग़लत बात है ।


उसने  अपनी माँ से कहा - मैं आपको जेल में नहीं 


बंद करूँगा ।


फिर मेरी और देख कर उसने कहा - मैं आपको जेल 


में बंद कर दूँगा ।


उच्च पदस्थ अधिकारी माँ अपने बच्चे की बातें सुन 


आवक् रह गयी ।


और मैं सोंच रही थी -  


यह  बच्चा कैसा  युवा बनेगा ?



एक रेलयात्रा



#इन्दु_बाला_सिंह


इलाहाबाद से उसे गंतव्य तक पहुँचाने वाली ट्रेन 


दो घंटे लेट थी ।


दो दिन की ट्रेन यात्रा वह औरत कर चुकी थी 


गोद में था ग्यारह माह का बच्चा 


और साथ में था एक रिश्तेदार ।


उन्हें किसीकी   ग़मी में पहुँचना था ।


 कम से कम छः बजे तेरही में शामिल तो होना ही था ।


बड़ी मुश्किल से मिले बस के दो टिकट ।


पुरुष तो बस के पीछे धक्का खाते खाते पहुँचा और 


महिला चतुराई से बस ड्राइवर के पास पहुँच गयी 


गोद बच्चा ले खड़ी महिला को एक घंटे बाद पहली  


क़तार के युवा ने अपनी सीट दे दी।


सीट मिलने पर उसकी जान में जान आई ।


बात बात में उसे पता चला कि सारे यात्री किसी एक 


समुदाय के हैं । बंबई में कोई तनाव हुआ है 


इसलिये सब एक बस रिज़र्व कर केअपने घर  

जा रहे हैं ।


सुन कर औरत की जान सूख गयी ।


बस रात आठ बजे उसे उसके गंतव्य पर उतार दी ।


औरत की जान में जान आई ।


दंगा पीड़ित मर्दों से भरी बस उसकी यादों में 


सदा बसी रही ।



पार्क में - 7. अकेलापन

 


#इन्दु_बाला_सिंह


पच्चीस छब्बीस वर्षीया महिला टी शर्ट और ट्रैक 


पैंट में अपनी ग्यारह बारह माह के बच्चे को एक 


छोटी सी गाड़ी में घुमा रही थी ।


महिला के कान से मोबाइल लगा था । वह 


किसी से बात कर रही थी ।


गाड़ी में बैठा बच्चा कौतुक से देख रहा था अग़ल 


बग़ल ।


थोड़ी देर में वह रोने लगा ।


महिला ने बच्चे को गाड़ी से निकाल कर खड़ा 


कर दिया ।


शायद वह चाह रही थी बच्चा अब चले । 


और चलने से बच्चा खुश हो जायेगा ।


पर बच्चा और ज़ोर से रोने लगा ।


परेशान हो के महिला ने अपना मोबाइल ऑफ़ 


किया और बच्चे को वापस गाड़ी में बैठा दिया ।


महिला और  बच्चा दोनों अपने फ्लैट में चले गये ।