Wednesday, October 25, 2023

बेटी का पिता और गाँव

 


12/11/22 


#इन्दु_बाला_सिंह


गाँव के खेत खलिहान छोड़ के शहर कमाने चले गये थे राम प्रसाद। खेत कम और मकान छोटा पड़ गया था परिवार बढ़ने के कारण । पैसों की आमदनी तो अब शहर से ही हो सकती थी।


शहर में अनपढ़ क्या कमाता। सूद का धंधा आसान था ।

 घर के एक सदस्य को लठैत बना लिया उसने पैसों की वसूली के लिये । उसका काम था दिन भर अखाड़े में अपनी सेहत बनाना और रामप्रसाद का सिक्का चलाना । इस तरह बस काम चल निकला था उनका ।


राम प्रसाद साल में एक बार गाँव जाते थे अपने घर ।खूब आवभगत होती थी उनकी ।


राम प्रसाद बाल बच्चेदार हो गये पर उन्होंने कभी अपने खेत खलिहान और मकान में हिस्सा न माँगा। गाँव के घर के रिश्तेदार खुश रहते थे और जब वे शहर में राम प्रसाद के घर जाते थे तो वहीं छः छः महीने रह जाते थे ।


राम प्रसाद का गाँव मोह न छूटा । वे बहुएं गाँव से लाए और बेटियाँ गाँव में ब्याहे ।


राम प्रसाद जी की बहुएँ तो शहर के बिजली और घर के अंदर शौचालय के कारण खुश थीं तो बेटियाँ उन्हीं चीजों के अभाव के कारण  त्रसित थीं । इसके अलावा गेंहू जाँत में पीसने पर  आंटा मिलता था  । चना जाँती में दरने से दाल मिलती थी ।

रामप्रसाद की सबसे छोटी तेरह वर्षीया बेटी सुलभा ससुराल में अपने  मैके के कपड़ों में चमकती रहती थी और दौड़ दौड़ के घर के सारे काम करती रहती थी । घर में सास से मिलने आयी   हर बूढ़ी के सामने आँचल फैला के गोड़ पड़ती और आशीर्वाद लेती थी । सुलभा पूरे गाँव में शहरी बहू के नाम से प्रसिद्ध थी । सास ससुर को नाज था अपने शहरी पतोहू पर ।


राम प्रसाद बेटी के ब्याह के एक माह बाद आये अपनी बेटी के घर। उस जमाने में बेटी के घर का पकाया ख़ाना बेटी का पिता नहीं खाता था ।


राम प्रसाद दुआर में आग जला के ख़ाना पका के खाये और बेटी से मिल कर चले गये। 


कुछ दिनों के बाद राम प्रसाद के गुजर जाने की खबर आयी ।


पंद्रह वर्षीय पति  देवेंद्र अपनी पढ़ाई पूरी कर चले गये कमाने शहर और सुलभा अपने सास ससुर के पास रही ।


घर में एक जेठ जेठानी तो थे पर घर में पति की उपस्थिति न थी ।


आख़िर बदली जीवन शैली कितने दिन सुलभा का शरीर सह पाता ।


सुलभा पाँच दिन तक बुख़ार में तमतमाती अपने कमरे में पड़ी रही । 


अब सास परेशान ।


एक दिन एक साधू दान माँगने द्वार पर आया। 


सास अपनी छोटी बहु सुलभ की साधु के पास ले गयी और बोली - महाराज इसे थोड़ा झाड़। दीजिये । शायद इसे नज़र लगी है ।  शहर की लड़की है ।अब क्या बोलूँ । बेटे को कौन सा मुँह दीखाऊँगी ।


साधु ने अपने हाथ के मोर पंखों से सुलभा को झाड़ा और चला गया 


विश्वास में शक्ति होती है । ईश्वर पर असीम विश्वास वाली सुलभा का बुख़ार धीरे धीरे  स्वयं ठीक हो गया । 

घर के कामों में शहरी बहू फिर से लग गयी ।


 #memories

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