Friday, October 27, 2023

रीता के पापा

 


11/11/22


#इन्दु_बाला_सिंह


हमारा जमाना कुछ और था। दिन में पत्नी से बात 


करना मुश्किल था। 


अरे ! रीता के पिता तो बाहर दुआरे में रहते थे। 


हंस के श्रीमती राधा जी ने कहा ।


बिजली तो हमारे  गाँव में थी नहीं । मिट्टी की बखरी 


थी । शाम का समय था। न जाने कहाँ से एक 


बिच्छू आया और मुझे काट दिया कुहनी और 


हथेली के बीच। हमारे गाँव में बिच्छु के ज़हर 


उतारने का तरीक़ा था काटे स्थान पर चीरा 


लगा के खून बहा देना । इस प्रकार  बिच्छू का 


ज़हर निकल जाता था।


अब बहू के हाथ को पकड़ के चीरा कौन लगायेगा? 


रीता के पापा को बुलाया गया ।


वे झेंपते हुये आये  ब्लेड से ज़ोर लगा चीरा लगाये और 


भाग गये बाहर ।खून बहने लगा ।


हालाँकि इस समय श्रीमती राधा शहर के 


सुविधापूर्ण घर में थी पर मित्र के नाम पर 


उसके पास केवल  घरेलू सहायिका ही थी ।


 घरेलू सहायिका से  मालकिन अपने गाँव के 


कष्ट बाँट रही थी । घरेलू सहायिका का 


काम एक श्रोता का भी रहना ज़रूरी है ।


बग़ल के रूम में पेईंग गेस्ट के रूप रहते युवा 


सरकारी इंजीनियर के लिये रविवार के दिन  


मकान मलकिन  का कमरा  रेडियो बन जाता था ।



No comments:

Post a Comment