#इन्दु_बाला_सिंह
पिता परिवार को गाँव में छोड़ कर शहर टीचर की ट्रेनिंग करने चले गये ।
ताई ने अपने बेटे को चाँदी सी स्टील में ख़ाना परस के दिया।
नीलू को पीतल की थाली में ख़ाना मिला ।
छः वर्षीय नीली ललच उठी ।
उसे भी उस चाँदी वाली थाली में ख़ाना था ।
वह माँ से ज़िद करने लगी उसे भी उसी चाँदी वाली थाली में ख़ाना था ।
थाली पड़ी रहती थी पर नीली को उस चाँदी वाली थाली में ख़ाना न मिलता था ।
दादा पोते को अपने पास बिठा कर दालान में पढ़ाते थे ।
नीली दादा के पास जाने को तरसती थी ।
माँ चुप रहती थी ।
गाँव की लड़कियां मिट्टी से रगड़ के पोखरी में बर्तन धोतीं थीं।
एक दिन एक जूठा बर्तन ले के नीली भी भाग गयी पोखरी बरतन माँजने ।
दादी को पता चल गया न जाने कैसे ।
वे दौड़ती हुई आयीं ।
‘ अरे ! बप्पा रे ! मैं अपने बेटे को मुँह दिखाने लायक़ नहीं रहती। पानी में डूब जाती लड़की ।’
बगीचे में उसके हमउम्र लड़के खेलते थे ।
वह उन्हें केवल देख सकती थी । उनके साथ खेल नहीं सकती थी ।
और एक दिन दालान में खड़ी थी नीलू ।
सफ़ेद झक्क कपड़ों में कोई आ रहा था ।
आश्चर्य से वो उसे देख रही थी ।
पास आने पर लहक उठी बिटिया - अरे ! ये तो उसके अपने पिता हैं ।
एक वर्ष बाद नीली अपने घर शहर में आ गयी ।
और आज उसकी माँ ने चाँदीवाली थालियों और गिलासों से घर भर दिया है ।
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