Tuesday, October 24, 2023

बचपन- 1 स्टील की थाली

 


#इन्दु_बाला_सिंह


पिता परिवार को गाँव में छोड़ कर शहर टीचर की ट्रेनिंग करने चले गये ।


 ताई ने अपने  बेटे को चाँदी सी स्टील में ख़ाना परस के दिया। 


नीलू को पीतल की थाली में ख़ाना मिला ।


छः वर्षीय नीली ललच उठी ।


उसे भी उस चाँदी वाली थाली में ख़ाना था ।


वह माँ से ज़िद करने लगी उसे भी  उसी चाँदी वाली थाली में ख़ाना था ।


थाली पड़ी रहती थी पर नीली को उस चाँदी वाली थाली में ख़ाना न मिलता था ।


दादा  पोते को अपने पास बिठा कर दालान में पढ़ाते थे ।

नीली दादा के पास जाने को तरसती थी ।


माँ चुप रहती थी ।


गाँव की लड़कियां मिट्टी से रगड़ के पोखरी में बर्तन धोतीं थीं।


एक दिन एक जूठा बर्तन ले के नीली भी भाग गयी पोखरी बरतन माँजने ।


दादी को पता चल गया  न जाने कैसे । 


वे दौड़ती हुई आयीं ।


‘ अरे ! बप्पा रे ! मैं अपने बेटे को मुँह दिखाने लायक़ नहीं रहती। पानी में डूब जाती लड़की  ।’


बगीचे में उसके हमउम्र लड़के खेलते थे ।


वह उन्हें केवल देख सकती थी । उनके साथ खेल नहीं सकती थी ।


और एक दिन दालान में खड़ी थी नीलू ।


सफ़ेद झक्क कपड़ों में कोई आ रहा था ।


आश्चर्य से वो उसे देख रही थी ।


पास आने पर लहक उठी बिटिया - अरे ! ये तो उसके अपने पिता हैं ।


एक वर्ष बाद नीली अपने घर शहर में आ गयी ।


और आज उसकी माँ ने चाँदीवाली थालियों और गिलासों से घर भर दिया  है ।


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