Wednesday, July 15, 2020

लिपि का धागा


-इंदु बाला सिंह
क्या ही अच्छा होता अगर भारत की सभी भाषायें देवनागरी लिपि में लिखी जातीं । भाषायें तो समझ आती हैं पर उन्हें पढ़ने के लिये उसकी लिपि को जानना जरूरी होता है । आखिर कितनी लिपियों को सीख जाये । उदाहरण के लिये बंगाली साहित्य पढ़ने के लिये बंगाली लिपि पंजाबी साहित्य के लिये पंजाबी साहित्य पढ़ने के लिये गुरुमुखी , ओड़िया साहित्य के लिये ओड़िया लिपि इत्यादि ।
देवनागरी लिपि में लिखा विभिन्न क्षेत्रीय साहित्य पूरे भारत को एक विचारधारा में बांध सकता है ।
अब आप कहेंगी भला उत्तरभारतीय दक्षिण भारतीय बोली नहीं समझ पाता तो देवनागरी लिपि में लिखा साहित्य क्या खाक समझेगा । पर दक्षिण भारत में रहनेवाले उत्तरभारतीय बोलचाल की भाषा तो समझ ही लेते हैं ।
इसवक्त हिंदी या अंग्रेजी छोड़ कर पूरे भारत
को बांध पानेवाली कोई भाषा मुझे सुझाई नहीं देती । मतलब या तो विभिन्न भाषाओं को हम देवनागरी लिपि में लिखें या लैटिन लिपि में ।
अब अंग्रेजी के जानकार आखिर कितने है ?
कुछ मित्रों को लगेगा कि इस तरह तो उन भाषाओं की लिपि का अस्तित्व मिट जायेगा ।
पर मुझे ऐसा नहीं लगता । मुझे नहीं लगता कोई बंगाली अपना साहित्य देवनागरी लिपि में पढ़ कर सन्तुष्ट होगा पर दूसरे क्षेत्र के निवासी देवनागरी लिपि का बंगाली साहित्य पढ़ लेंगे ।

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