घर में भूतनाथ नामक साधु आए थे । पिता ने बुलाया था ।
घर में वे आए पूजा हुआ । वे खाना खाए और चले गए।
मां ने रात में स्वप्न देखा शंकर भगवान आए हैं घर में और बोल रहे हैं - तूने किसे बुलाया था घर में ।
सबेरे मां डर कर उठी ।
My 2nd of 7 blogs, i.e. अनुभवों के पंछी, कहानियों का पेड़, ek chouthayee akash, बोलते चित्र, Beyond Clouds, Sansmaran, Indu's World.
घर में भूतनाथ नामक साधु आए थे । पिता ने बुलाया था ।
घर में वे आए पूजा हुआ । वे खाना खाए और चले गए।
मां ने रात में स्वप्न देखा शंकर भगवान आए हैं घर में और बोल रहे हैं - तूने किसे बुलाया था घर में ।
सबेरे मां डर कर उठी ।
-इंदु बाला सिंह
माता पिता मस्त थे बेटा सुधीर भी अपनी दुनियां में खुश था | मेट्रिक भी न पास कर सका वह |
ठगी और चोरी चमारी भी न सीख सका सुधीर | सीधा सादा युवा आज की दुनिया का स्वाभिमानी मूर्ख बन गया था |रिश्तेदार उसे पागल कहते थे | पत्नी रख न पाया माँ की भी मृत्यु हो गयी | वैसे लगभग चार करोड़ मकान का मालिक सुधीर और उसके बड़े भाई थे |
खुद काम ढूंढ न पाया और पिता भी उसे किसी काम में लगवा न पाए |
एक दिन देखा मैंने सड़क के किनारे बैठ कर सुधीर किसी की हजामत बना रहा है | वैसे कोई काम छोटा नहीं होता पर उस क्षत्रिय पुत्र को हजामत बनाते देख दुख हूआ |
फिर सुना शहर के एक क्लब में बेयरे की नौकरी लग गयी है उसे | पी ० एफ ० और मेडिकल फैसिलिटी भी मिल रही है उसे | पी ० एफ ० का नामिनी उसने अपने भाई के पुत्र को बना दिया है |
-इंदु बाला सिंह
" हमें कुछ नहीं चाहिए ...केवल लड़की चाहिए | " मंडप में समधी का ये वाक्य सुनते ही पिता ने एक सूटकेस कपड़े के साथ विदा कर दिया बेटी |
पति निकम्मा ,सास ससुर मौन ,जेठ जेठानी शेर | कुछ ही दिनों बाद लड़ाई झगड़ा के बाद हाथ भी चलने लगा जेठ का | पोस्टमैन पिता की बेटी सुरुची बिलबिला उठी | मैके गयी तो वापस लौटने का नाम न ली |
कुछ माह पश्चात ससुर विदा कराने गए बहु तो सुरुची दौड़ पड़ी गंगा की ओर डूबने |
" बिटिया नहीं जाना चाहती तो मैं क्या करूं | " दुखी मन से बोले लड़की के पिता |
किसी तरह हाथ जोड़ कर विदा किया सुरुचि के पिता ने शहरी समधी को |
सुरुचि के पति को तो कोई लड़की न मिली व्याहने को पर एक पुत्र पैदा हुआ सुरुचि को और कालान्तर में सैनिक बन उसने देश की सेवा की व माँ की शान भी वह रखा |
-इंदु बाला सिंह
स्निग्धा चार बच्चों की माँ थी ... तीन बेटी और एक बेटा |
पति महोदय दस वर्ष पहले ही कहीं चले गये थे | और किसी ने खोजा भी नहीं था उन्हें |
स्निग्धा नौकरी कर के अपने चारों बच्चों का लालन पालन कर रही थी | वह काम पर जाते वक्त साधारण कपड़े पहनती थी | उसके चेहरे पर इतनी गरिमा रहती थी कि कोई उससे व्यक्तिगत प्रश्न पूछ ही नहीं पाता था |
भाई का विवाह तय हुआ | विवाह में बाराती बन कर जाना था उसे |
सज धज कर जब निकली वह अपने बच्चों के साथ |
" अरे ! मांग सूनी है बिटिया की .. सिन्दूर लगा दो भई !..." चाची ने कहा और लपक के स्निग्धा की मांग में सिन्दूर लगा दी |
चेहरा दमक गया स्निग्धा का पर मन भींग गया |
-इंदु बाला सिंह
" मैंने मित्रता कर ली है अपने भूत से | " श्रेया ने हंस कर कहा |
" वो भला कैसे ? "
" अरे ! छोटी सी बात है ...मैं अपने घर में सदा एक बुजुर्ग रिश्तेदार रखी रहती हूँ | "
-इंदु बाला सिंह
छठ पर्व की छुट्टी मात्र एक दिन होती थी विद्यालय में |
सुबह विद्यालय का यूनिफार्म ले कर परिवार के साथ छठ का अर्ध्य देने गया था सुधीर | वहां से उसका सीधे विद्यालय जाना चाहता था |
एकाएक उसने देखा नहाते समय उसके भाई को नदी की लहर बहा ले गयी है | उसने अव देखा न ताव भाई को बचाने के लिए कूद पड़ा नदी में |
सुधीर पानी के चक्रवात में फंस गया और डूब गया , पर उसके छोटे भाई को औरों ने बचा लिया |
इस घटना के बाद से छठ त्यौहार की छुट्टी विद्यालय में दो दिन की होने लगी |
छठ त्यौहार का अर्ध्य तो पहले दिन शाम को और दूसरे दिन सुबह दिया जाता है | अतः छुट्टी तो दो दिन ही दी जानी चाहिए |
-इंदु बाला सिंह
" तुमने गाली नहीं दी है तो कोई बात नहीं ...अगर गाली दी है तुमने तो भविष्य में मत देना | " प्रिंसिपल ने समझा बुझा कर दसवीं कक्षा के छात्र को विदा कर दिया था |
पिटाई तो अब की नहीं जा सकती थी |
कल तीन लडकियों ने रितेश के बारे में कम्पलेन किया था प्रिंसिपल को |
आज फिर एक लड़के को ले कर पहुँच गया था आफिस में ..." मैडम ! पूछिये इस लडके से मैंने नहीं दी थी गाली उन लड़कियों को |"
" तुम मेरे पास सबूत क्यों लाये हो ? " प्रिंसिपल गर्म हो गयी |
छात्र भी अकड़ गया .." तो मैडम आप मेरे माता पिता को क्यों बुलाई हैं ?"
अब प्रिंसिपल नर्म हुयी .." मैंने ऐसे ही बुलाया है | ... जानते हो ये लडकियां थाने में कम्पलेन कर देंगी तो तुम्हे कोई नहीं बचा पायेगा | "
" तो मैं क्या करूं ? " छात्र डर गया |
" कुछ नहीं ..तुम क्लास में जाओ ..और लड़कियों से कम बात करना | "
-इंदु बाला सिंह
गरीब पढ़ी लिखी प्रतिभा को पिता ने अपने पास अपने घर में रख लिया था | एक ही पुत्री थी प्रतिभा की | पिता ने सोंचा ठीक है नतिनी तो ब्याह कर अपने घर चली जायेगी | उनको सहारा रहेगा प्रतिभा का और प्रतिभा का भी जीवन कट जायेगा | नौकरी तो प्रतिभा करती ही है |
आदमी जो सोंचता है वह होता नहीं है |
पिता की मृत्यु हो गयी | लोकलाज हेतु माता की देखभाल हेतु विदेशी पुत्रों ने सहायिका रख ली घर में |
कानून घर की हकदार बहन किसी को फूटी आँखों न सहायी |
" यहां क्यों रहती है प्रतिभा ?....उसकी बेटी तो इतने बड़े अफसर की पत्नी है |...बेटी के पास रहना चाहिए न |.....अच्छी मुसीबत है घर में |.....इसके रहते हम घर बेच भी नहीं सकते |....." भाई आपस में खुसपुसाते |
निरीह माँ तो बेटों आश्रित ही थी |
माँ की मृत्यु के बाद घर बिक सकता था | करोड़ की संपत्ति के घर पर बहन बैठ गयी थी |
" कुछ तो करना होगा ...."
-इंदु बाला सिंह
श्रीधर और द्वारिका दो सहकर्मी आपस में मित्र थे |
" उम्र बढ़ चली है | अब हम लोगों को वालंटरी रिटायरमेंट ले लेना चाहिए | " श्रीधर ने कहा |
दोनों ने एक साथ वालंटरी रिटायरमेंट के लिए अप्लाई कर दिया |
दूसरे दिन चुपके से श्रीधर ने अपना वालंटरी रिटायरमेंट वाला अप्लिकेसन वापस ले लिया |
प्रिंसिपल बनने के राह का काँटा हट गया |
कुछ ही दिनों में श्रीधर का प्रोमोशन हो गया |
-इंदु बाला सिंह
" तुम अपने पापा को बोलो कि हम उपर वाले फ्लैट में रहेंगे | आखिर तुम भी तो हकदार हो घर की | तुम्हारे पापा के न रहने पर घर तो तुम्हें ही मिलेगा |...तुम समझती नहीं हो | ..हम दोनों की तनख्वाह इतनी कम है कि घर का भाड़ा देना मुश्किल हो जाता है | "
सुरुचि का भाई नहीं था | यथाशक्ति बेटी के विवाह में खर्च करने के बाद अपने मकान में पिता अपनी जीवन संध्या काट रहे थे | ऊपर का फ्लैट किराये में दिया गया था |
आये दिन घर में झगड़ा होता था | बेटी की बीमारी का खर्च पिता उठा रहे थे | इसी बीच सुरुचि एक बेटे का माँ बन गयी | सुरुचि की नौकरी तो चलती रही साथ में घर के अंदर झगड़ा भी चलता रहा | सुरुचि के पति की नौकरी भी छुट गयी | परेशान पिता ने बेटी को अपने घर में रख लिया |
आखिर सुरुचि का अपने पति से तलाक हो ही गया |
सुरुचि का पति गाँव चला गया |
-इंदु बाला सिंह
" सुपू ! सुपू ! " नानी की आवाज दुसरे कमरे से आयी |
परेशान हो अपने बगल के बिस्तर में सोयी अपनी माँ को देखा उसने |
इसी तरह उसके नाना भी आवाज लगाते थे अपने बगल में सोये अटेंडेंट के न उठने पर |
परेशान थकेहाल उसकी माँ बीमार पड़ जाती थी और उसे अपनी माँ को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता था | खर्च तो होता ही था परेशानी अलग से होती थी उसे |
" सुपू ! सुपू ! "
उसने देखा कि उसकी माँ बेसुध सो रही थी |
उसे भय था कि अगर अभी माँ जग जायेगी तो उसे अनिद्रा हो जायेगी |
" कर र र .. " अलार्म बजा |
जल्दी से उसने अलार्म बंद किया और मन ही मन अपने अपने शहरों में स्थित नानी के बेटे बहुओं के लिए उसने अपशब्द निकाले और बाथरूम में घुस गयी वह |
उसे ड्यूटी जाने की जल्दी थी |
-इंदु बाला सिंह
हम बिना को बारोअर के बीस लाख रूपये देते हैं लिख कर बैंक ने इ मेल कर दिया सभी मैनेजमेंट के छात्रों को |
ऋषिकेश ने सीट कन्फर्मसन मनी एक लाख रूपये जमा कर दिया कालेज को | इस पैसों को दस तारिख तक वापस लिया जा सकता था |
ग्यारह तारिख को ऋषिकेश को बैंक का इ मेल आया हम ने अब निर्णय लिया है कि बिना को बारोअर के हम स्टडी लोन नहीं दे पाएंगे |
-इंदु बाला सिंह
स्वेता बैंक कर्मचारी थी | हाल में ही उसका विवाह हुआ था |
" जानती हैं आप ! स्वेता के ससुर उसका सैलेरी पासबुक अपने पास रख लिए हैं | सोंचते हैं कि बहू कहीं अपनी तनख्वाह अपने पिता के घर में न दे दे | " बगल के टेबल पर कापी चेक करते करते धीमे से मिसेज शर्मा ने कहा |
मेरी कलम रूक गयी |
" हां ! ...अरे ? ...." कलम फिर छात्रों की कांपी जांचने लगी |
-इंदु बाला सिंह
इन्जीनियर मिश्रा जी ट्रान्सफर हो कर हमारी कालोनी में आये थे |
मिसेज मिश्रा दुबली पतली सांवली चौबीस या पच्चीस वर्षीय बी . ए . पास महिला थी | वह अपने पति से उम्र में पन्द्रह वर्ष छोटी थी | उनके पिता पोस्टमॉस्टर थे |
आ जाती थी वह कभी कभी हमारे घर |
" मेरे पिता की इच्छा मेरा व्याह इंजीनियर से करने का था | और उन्होंने अपनी इच्छा पूरी कर ली | " बात बात में उनके मुंह से निकल पड़ा |
बड़ी बदनामी थी उस परिवार की | सब नए परिवार जो आते थे वे अपना खाना हीटर पर बनाते थे , पर वह महिला खाना बिल्डिंग के बाहर लकड़ी का चूल्हा जला कर बनाती थी | मैं सोंचती थी कैसा आदमी है इसका | जरा सी शर्म भी नहीं है उसे |
मिसेज मिश्रा के दो बेटे थे | एक तीन साल का और दूसरा दो साल का था | दोनों गोल मटोल प्यारे और दुष्ट थे |
" मेरे हसबैंड न मुझ पर बिलकुल विश्वाश करते हैं | वे दूध एक किलो लेते हैं और खुद खड़े हो कर अपने सामने पिलवाते हैं बच्चों को | उनको लगता है मैं बच्चों को दूध न पिला स्वयं ही पी जाउंगी | " मैं चुप थी पर मेरा अंतर्मन रो रहा था |
मिश्रा जी पता नहीं कौन सा पाठ पढ़ा रहे थे अपने बच्चों को |
-इंदु बाला सिंह
कालेज के कैम्पस में बैंक वाले ने लोन के सैंक्शन का कागज हाथ में थमा दिया था निखिल के | उसका सपना अब पूरा होने वाला था | उसके पिता ने मित्र से पचास हजार रूपये मांग कर बेटे के पसंद के ब्रांच की सीट बुक करवा ली थी इंजीनियरिंग कालेज में | सोंचा था बाकी तो लोन से मिल ही जायेगा |
निखिल लोन सैंक्सन का कागज ले कर बैंक गया |
" बेटे इस कागज का अर्थ नहीं है कि तुम्हें लोन मिल गया है | " बैंक वाले ने समझाया निखिल को |
अब विभिन्न डाक्यूमेंट्स के साथ उसे अपने पिता का रेसिडेंसियल सर्टिफिकेट जमा करना था |
बाकी डाक्यूमेंट्स तो जमा हो गए पर रेसिडेंसियल सर्टिफिकेट बनवाना अवसर न था |कोर्ट के कम तो जल्दी ही नहीं होते |
फिर उसके पिता को अपने गाँव में जा कर सर्टिफिकेट बनवाना पड़ता |
निखिल हताश हो चूका था |
मैंने भी सोंचा गया सौभाग्य बेचारे का |
फिर मैंने सुना शहर के एस . पी . महोदय खुद बैंक जाकर उस लड़के का लोन सैंक्सन करवाए |
-इंदु बाला सिंह
....माँ जी !....भैया का फोन आया था |
....अच्छा !
....पूछ रहा था ... माँ कैसी है ?
...अच्छा !....मुझे तो नहीं आया ?...
मकान के आउट हॉउस में नौकर का परिवार रखा गया था माँ की देखभाल के लिये |
-इंदु बाला सिंह
" मैं ये रोटी कैसे खाऊँगी ? " छ: वर्षीय बालिका मचल पड़ी सूखी रोटी देख कर |
दादी उसे फुसलाई |
" देख मैं खा कर बता रही हूँ | "
वह एक कौर रोटी का दांतों से काट लेती थी फिर गिलास से एक घूंट पानी पी लेती थी |
बालिका मुंह बिदोर कर अपनी दादी का मुंह देखने लगी |
-इंदु बाला सिंह
सातवीं में पढ़ता था सिद्धार्थ | वह अपनी माँ , नाना , नानी और विदेश में रहनेवाले मामा , मामी को ही अपना समझता था | वह सोंचता था कि उसके पिता कमाने के लिये दूर कहीं गये हैं और वे ढेर सारा पैसा कमा कर लायेंगे |
सिद्धार्थ के नाना रिटायर्मेंट के बाद दुसरे शहर में नौकरी करते थे |
वह नाना के घर में अपनी माँ और , नानी के साथ रहता था |
सिद्धार्थ की माँ श्क्षिका थी | वह सिद्धार्थ को अपने साथ ही स्कूल ले जाती थी | माँ के स्कूल में पढ़ने के कारण उसकी स्कूल फीस माफ़ थी |
नानी हमेशा उसे सिखाती थी की उसे बड़े होकर अपनी माँ और नानी की देखभाल करनी है |
पर सिद्धार्थ का बालमन नहीं मानता था नाना के देखभाल करने के लिए |
" भला क्यों ? नाना तो कमाते हैं ..उनकी क्यों देखभाल करूं मैं | .......मेरे पापा कब आयेंगे ? " सिद्धार्थ आये दिन अपनी माँ से प्रश्न करता रहता था |
और नाना की मौत के बाद उनकी वसीयत खुली तो उसमें सिद्धार्थ के नाम की एक पाई भी नहीं थी |
-इंदु बाला सिंह
" मैं भी एक कमरे में रहती हूँ | " उसकी सहकर्मी लड़की माया ने कहा |
एक वर्ष पहले उसकी माँ ने फांसी लगा ली थी और कुछ महीने पश्चात उसके पिता का देहांत हार्ट अटैक से हो गया था |
" तुम अलग खाना बनाती हो ? " आश्चर्य से वह पूछ बैठी |
" और क्या ! मैं तो अपने कमरे का भाड़ा भी भाभी को देती हूँ | पास में अपने लोग रहने से सुरक्षा रहती है | "
माया का समझदार उत्तर पा कर चुप रह गयी वह |
-इंदु बाला सिंह
" मैडम ! हमारे पास लाइसेंस है .. हेलमेट है फिर भी पुलिस गेट पर हमें पकड़ रही है | हमारी गाड़ी की चाभी ले ली है | "
छात्र प्रिंसिपल के आफिस में घुस गए |
" जाओ शर्मा सर को कम्पलेन करो | " परेशान प्रिंसिपल ने कहा |
हर विद्यालय के सामने पुलिस जा कर छात्र सुधार कर रही थी |
छात्रों के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी | प्रिंसिपल और टीचर परेशान थे |
बच्चों को टाईट करने से माता पिता बौखला रहे थे |
-इंदु बाला सिंह
छात्रों की भीड़ स्कूल के गेट पर देख कर एक खाकीवर्दी वाली पलिस आ गयी गेट पर |
" ये क्या है ? " स्कूल बैग से झांकते लम्बे ड्राइंग के कागज को निकले देख कर पुलिस पूछी
" प्रोजेक्ट " छात्र ने उत्तर दिया |
फिर पुलिस ने दूसरे छात्र से वही प्रश्न पूछा |
" प्रोजेक्ट " दूसरे छात्र ने भी कहा |
" तुम लोग यहाँ क्या भीड़ लगाये हो ? " अब अन्य छात्रों की और मुखातिब हो पुलिस ने पूछा |
" देखिये न अंकल ! गेट ही नहीं खुला | "
" तुमने गेट क्यों नही खोला ? " दरबान की और मुड़ी पुलिस |
" सर ! गेट खोलने का समय नहीं हुआ है |....प्रिंसिपल ने जल्दी गेट खोलने मना किया है | "
" तुम्हारा प्रिंसिपल बड़ा है या मैं ?.....मैं बोलता हूँ गेट खोलो | "
और गेट खुल गया | छात्रों की भीड़ प्रवेश कर गयी स्कूल में |
-इंदु बाला सिंह
स्कूल की गली खचाखच छात्रों से भरी थी | प्रतिदिन ओवर लोडेड आनेवाला ऑटो रिक्शा बच्चों को गली के मुहाने से ही छोड़ कर भाग रहा था |
एक ट्रैफिक पुलिस एक मोटर साईकिल सवार छात्र का पीछा करते गुजरा उसके बगल से और स्कूल गेट के सामने उस छात्र को रोक दिया | पल भर में तीन चार ट्रैफिक पुलिस और आठ दस खाकी वर्दीधारी पुलिस मोटर साईकिल पर दनदनाते हुए आये और मोटर साईकिल सवार छात्रों से मोटर साईकिल और स्कूटी वालों से स्कूटी चाभी समेत ले कर रख लिए | जिनकी मोटर साईकिल छिनी गयी थी उनके मित्र अभी स्कूल आ रहे थे | उन छात्र मित्रों को छात्रों ने यह खबर मोबाइल से पहुंचा दी | वे पेट्रोल पम्प के पास ही गाड़ी छोड़ कर आ गये |
प्लस टू के छात्रों को बिना गीयर वाली गाड़ी चलाने का लाइसेंस मिलता है | हेलमेट पहनना भी जरूरी है |
मोटरसाइकिल वो भी बिना हेलमेट के चलाना तो हिरोगिरी रहती है न |
बच्चे परेशान हो टीचरों से प्रश्न पूछने लगे ...
" टीचर ! हम लोगों को गाड़ी मिल जायेगी न |.. " घर में डांट का भय था उन्हें |
इसी बीच प्रार्थना की घंटी बज गयी |
स्कूल की प्रार्थना खत्म हुयी |
माइक पर प्रिसिपल की आवाज गूंजी ....
" जिन बच्चों की गाड़ी सीज हुयी है ट्रैफिक पुलिस के थाना से अपने माता पिता के साथ जा कर वापस पा सकते हैं | ..... और जिन्होंने गाड़ी पेट्रोल पम्प के पास रखा है वे याद रखें कि पेट्रोल पम्प गाड़ी स्टैंड नहीं है | "
1998
" ओ पेपरवाले ! "
साईकिल चलाकर गुजरता पेपरवाला रुक गया |
" कांच की बोतल लेते हो ? " श्वेता ने प्रश्न किया |
" कौन सी बोतल है ?...बीयर की बोतल एक रूपये में लेता हूँ | "
" अरे नहीं | स्क्वैश और दवा की बोतल है | " श्वेता के मुंह से सहज ही निकल गया |
पेपरवाला बिना जवाब दिए बेशर्मी से चला गया |
-इंदु बाला सिंह
वह अटेंडेंट था | अस्पताल में भर्ती बीमार जब डिस्चार्ज होता था तब घर के सदस्य उसे अपने घर ले जाते थे | बीमार की मृत्यु हो गयी तो बीमार के कपड़े लत्ते उसे दान में मिल जाते थे |
करीब एक वर्ष बाद भेंट हुयी उससे |
" और कैसे हो ? "
" ठीक हूँ | आजकल एक सौ दस वर्ष के बुड्ढे का काम पकड़ा है मैंने | "
मैंने मुस्कुरा कर उसका समर्थन किया |
-इंदु बाला सिंह
" टीचर ! मैं बड़ी हो कर पुलिस बनूंगी | " पढ़ते पढ़ते एकाएक एक छठी कक्षा की छात्रा ने कहा |
" क्यों ? " टीचर चौंक पड़ी उस छात्रा के कथन पर
" मेरा भाई नहीं है न | हमलोग केवल दो बहनें हैं | मेरे माता पिता बूढ़े हो जायेंगे तो मुझे उन्हें देखना पड़ेगा न | "
-इंदु बाला सिंह
'' कितने हुए मैडम ! स्पीड पोस्ट के | "
काउन्टर पर बैठी महिला मौन रही |
सौ का नोट देने पर पोस्ट आफिस पर बैठी महिला ने 60 रूपये और और 39 रूपये की रसीद पकड़ा दी |
'' मैडम ! और एक रुपया | ''
'' खुचरा नहीं है | ''
'' मैडम ! एक रूपये का टिकट दे दीजिये | ''
और काउन्टर पर बैठी महिला कर्मचारी ने एक रूपये का टिकट दे दिया |
-इंदु बाला सिंह
दुकान के सामने से गुजरते हुए एक दुबली पतली सी औरत को गोद में सात - आठ महीने के बच्चे को पकड़े अपनी तरफ आते देख मैं उसे पहचानने की चेष्टा करने लगी | जब तक मैं तक उसे पहचानूं वह अपने बच्चे समेत झुक कर मेरे चरण स्पर्श कर ली ...
एकाएक मेरे दिमाग में उसका नाम कौंधा ..'' अरे ! जयिता ! ''
यह मेरी पुरानी विद्यार्थी थी |
दुकानों की कतारों के सामने उसे इस प्रकार अभिवादन करते देख जहाँ मुझे थोड़ी खुशी हुयी वहीं झेंप भी लगी |
...''अरे ! तेरी शादी हो गयी ? ...कहाँ रहती है ? ''
...''यहीं ..पास में ही घर है | ''
...'' चलो अच्छा है ...मैका और ससुराल एक ही शहर में है | ''
मैं आगे बढ़ चली |
-इंदु बाला सिंह
निमन्त्रण पत्र पर नाम लिखा जा रहा था |
श्रीमती विमला प्रसाद .....लिख दूं ....घर की तो वही बड़ी है |
सामनेवाले ने मेरे हाथ से कार्ड ले कर पुत्र का नाम लिख दिया |
वैवाहिक समारोह में पुत्र सपत्नीक पधारे थे |
दस से ग्यारह के बीच वॉक पर निकलती हूँ कॉलोनी के पार्क के ट्रैक पे ।
सबेरे काम रहता है । दोपहर में बहुत गर्मी होती है ।वैसे रात को एक बार फिर निकलती हूँ वॉक पे । इस तरह हर दिन एक हज़ार के आसपास स्टेप्स हो जाते हैं ।
आज मैं निकली ग्यारह बजे फ्लैट से और लिफ्ट का बटन दबाते ही लिफ्ट का दरवाजा खुला और मैं अंदर लिफ्ट में । ग्राउंड के लिये ‘ G ‘ बटन दबाई तो लिफ्ट टस से मस नहीं हुई ।
ऊपर देखी ब्लिंक कर रहा था ‘ क्रास ‘ मतलब बटन नहीं काम कर रहा था । अब लिफ्ट का दरवाज़ा तो खुल नहीं सकता था । तो मैंने फिर से ‘ G ‘ बटन दबाया ग्राउंड फ्लोर के लिये ।लिफ्ट घड़ घड़ आवाज के साथ चली फिर आवाज बंद हुई और लिफ्ट की लाइट चली गयी और लिफ्ट रूक गई । एक सेकेण्ड में लाइट आ गई ।
लिफ्ट के अंदर रोशनी और लिफ्ट का बटन काम न करे ।
एक पल को लगा मैं लिफ्ट में ऐसे ही बंद रहूँगी । दूसरे पल मैंने लिफ्ट के दोनों इमरजेंसी बटन दबाया ।
मुझे पता ही नहीं चल रहा था कि इमरजेंसी बटन काम भी कर रहा है कि नहीं
फिर मैं लिफ्ट का दरवाज़ा ज़ोर ज़ोर से पीटने लगी । मुझे पता तो नहीं था कि कोई सुन रहा या नहीं पर मैं लिफ्ट का दरवाज़ा पीट रही थी ।
शायद चार पाँच बार पीटी होऊँगी । इसी बीच लिफ्ट का दरवाजा खुल गया ।
पांचवा या सातवां फ्लोर था होगा । अपने फ्लैट के दरवाजे के सामने एक महिला अल्पना बना रही थी और जिस महिला ने लिफ्ट का दरवाजा खोला वो शायद नहा के निकली थी क्यों कि उसने बालों को टॉवल से बांधा था और मैक्सी में थी ।
मैंने पूछा - आपने लिफ्ट के दरवाजे को पीटने की आवाज से लिफ्ट खोला ?
उस महिला ने कहा- हाँ ।
और मैं सोंच रही थी कि अगर वो महिला अपना फ्लैट खोल कर बाहर अल्पना न बना रही होती तो main लिफ्ट के अन्दर बंद ही रहती ।
मैंने उन्हें भी बताया मैने कि लिफ्ट बंद हो गई थी ।
वह महिला मेरी सहायता करना चाह रही थी ।
उसने पूछा - किस फ्लोर में जाना है आपको ?
मैंने बताया कि जा तो मैं रही थी ग्राउंड फ्लोर ।
वह महिला फिर लिफ्ट का बटन दबाने लगी ग्राउंड फ्लोर के लिये और मैं सोंच रही थी कि भले मुझे तकलीफ़ हो मैं जाऊँगी ग्राउंड फ्लोर सीढ़ियों से ही ।अब लिफ्ट में नहीं घुसनेवाली मैं ।
इसी समय दो सिक्योरिटी वाले आ गये ।
मैंने कहा - लिफ्ट ख़राब है ।
वे बोले - इसीलिये तो हम आये हैं ।
और वे मुझे अपने साथ दूसरीवाली लिफ्ट से मेरे फ्लैट में छोड़ गये ।
लौट के बुद्धू घर को आये ।
मेरा वॉकिंग गया तेल लेने ।
-इंदु बाला सिंह
....माँ जी !....भैया का फोन आया था |
....अच्छा !
....पूछ रहा था ... माँ कैसी है ?
...अच्छा !....मुझे तो नहीं आया ?...
मकान के आउट हॉउस में नौकर का परिवार रखा गया था माँ की देखभाल के लिये |
-इंदु बाला सिंह
' फूलवाला !....फूलवाला ! '
एक छोटे डंडे में मल्ली फूल छोटी छोटी लड़ी लटका कर वह हर रोज शाम के पांच से साढ़े पांच के बीच हमारे मोहल्ले में आवाज लगाया करता था | उसकी आवाज आँखों में मेरी चमक ला देती थी | एक लड़ी का मूल्य था पचास पैसे | हर रोज मैं उस से फूल की एक लड़ी खरीदती थी और अपनी दो वर्षीय बिटिया के बालों में क्लिप से लगा देती थी | उसका खिला चेहरा देख मन प्रसन्न हो जाता था |
कुछ ही दिनों में हर रोज पचास पैसे खुचरा फूल के नाम से अलग रखना मुझे कठिन लगने लगा |
' सुनो ! ऐसा करो हर महीने एक साथ पैसे ले जाना | ' ---- एक दिन मैंने फूलवाले से कहा |
' ठीक है ..दीदी ! ' ----- वह खुश हो गया था | उसे एक ऐसा ग्राहक मिल गया जो उससे पूरे महीने फूल खरीदेगा |
तीन माह तक फूलवाला आता रहा | एक दिन मैंने सुना दंगा छिड़ा है | फूलवाला भी आना बन्द हो गया | दिन बीते मास बीते वर्ष भी बीत गया पर वो फूलवाला न आया | मै सोंचने लगी कहीं चला गया शायद | अवचेतन मन में डर सा लगा | कहीं किसी ने मार तो नहीं दिया !
फूलवाला न आया कभी |
याद आता है आज भी वो फूलवाला |
१९७२
-इंदु बाला सिंह
श्रीमती जी ने दूध माप कर बर्तन में डालती हुयी दूधवाली से पूछा - तेरी लडकी की शादी ठीक ठाक हो गयी न ?
--- हाँ बीबी जी |
--- दामाद क्या करता है ?
--- मास्टरी करता है |
--- मैट्रिक पास करके ?
--- नहीं जी ! बी. ए. पास कर के |
मारे आश्चर्य के श्रीमती का मुंह खुला का खुला रह गया |
--- उसके पास जमीन जायदाद है ?
--- तीस बीघा जमीन है |
--- क्या क्या दिया लड़की को ?
--- तीन ठो चांदी की सिकड़ी |
--- तुम लोग रूपया नहीं देते ?
--- नहीं बीबी जी |
--- हम लोगो का तो शादी पर बहुत खर्चा होता है | हमने तो अपनी लड़की को कंगन , चूडियाँ , हार , अंगूठी , रेडियो ,
सोफा , पलंग और ऊपर से तीन हजार रुपया भी दिया है |
--- तब तो आपका दामाद बहुत पढ़ा लिखा होगा | बड़े बड़े खेत खलिहान होंगे उसके पास|
श्रीमती जी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया | दूधवाली से अपना बरतन पकडती हुयी बोली --- आज तो दूध पतला लग रहा है |
#इंदु_बाला_सिंह
पंद्रह वर्षीय ऋद्धि को हरी मटर खाना बहुत पसंद था ।उसने अपनी माँ से मटर लिया स्टील के कटोरे में और एक स्टील के छोटी थाली ले कर अपने घर के बाहर के बरामदे में बैठ गयी ।
माँ रसोईं घर में खाना पका रही थी ।
ऋद्धि मटर छिल रही थी और दाने खाती जा रही थी ।
मटर के फलियों के छिलके जमा होते जा रहे थे थाली में और कटोरा खाली हो रहा था ।
मटर छिलते समय एक मटर का दाना थाली के छिलकों के ढेर में जा गिरा ।
‘ अरे! एक मटर का दाना गिर गया ।… जाने दो एक दाना गिर गया तो क्या हुआ ।’ - ऋद्धि ने सोंचा ।
फिर उसे कहानी की वह चिड़िया याद आयी जिसका एक डाल का दाना पेड़ के ठूँठ में गिर गया था । उस चिड़िया ने अपना दाना पाने के लिये कितना परिश्रम किया ।और वह थाली के छिलकों के बीच से अपना दाना नहीं ढूँढ सकती है ।
ऋद्धि थाली के छिलकों को हटाने लगी । बीच में उसे मटर का दाना दिखा ।
ऋद्धि मटर का दाना खा ली ।
फिर से कटोरे के बची मटर की फलियों को छील कर खाने लगी ।