-इंदु बाला सिंह
कालेज के कैम्पस में बैंक वाले ने लोन के सैंक्शन का कागज हाथ में थमा दिया था निखिल के | उसका सपना अब पूरा होने वाला था | उसके पिता ने मित्र से पचास हजार रूपये मांग कर बेटे के पसंद के ब्रांच की सीट बुक करवा ली थी इंजीनियरिंग कालेज में | सोंचा था बाकी तो लोन से मिल ही जायेगा |
निखिल लोन सैंक्सन का कागज ले कर बैंक गया |
" बेटे इस कागज का अर्थ नहीं है कि तुम्हें लोन मिल गया है | " बैंक वाले ने समझाया निखिल को |
अब विभिन्न डाक्यूमेंट्स के साथ उसे अपने पिता का रेसिडेंसियल सर्टिफिकेट जमा करना था |
बाकी डाक्यूमेंट्स तो जमा हो गए पर रेसिडेंसियल सर्टिफिकेट बनवाना अवसर न था |कोर्ट के कम तो जल्दी ही नहीं होते |
फिर उसके पिता को अपने गाँव में जा कर सर्टिफिकेट बनवाना पड़ता |
निखिल हताश हो चूका था |
मैंने भी सोंचा गया सौभाग्य बेचारे का |
फिर मैंने सुना शहर के एस . पी . महोदय खुद बैंक जाकर उस लड़के का लोन सैंक्सन करवाए |
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