-इंदु बाला सिंह
वह अटेंडेंट था | अस्पताल में भर्ती बीमार जब डिस्चार्ज होता था तब घर के सदस्य उसे अपने घर ले जाते थे | बीमार की मृत्यु हो गयी तो बीमार के कपड़े लत्ते उसे दान में मिल जाते थे |
करीब एक वर्ष बाद भेंट हुयी उससे |
" और कैसे हो ? "
" ठीक हूँ | आजकल एक सौ दस वर्ष के बुड्ढे का काम पकड़ा है मैंने | "
मैंने मुस्कुरा कर उसका समर्थन किया |
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