-इंदु बाला सिंह
दुकान के सामने से गुजरते हुए एक दुबली पतली सी औरत को गोद में सात - आठ महीने के बच्चे को पकड़े अपनी तरफ आते देख मैं उसे पहचानने की चेष्टा करने लगी | जब तक मैं तक उसे पहचानूं वह अपने बच्चे समेत झुक कर मेरे चरण स्पर्श कर ली ...
एकाएक मेरे दिमाग में उसका नाम कौंधा ..'' अरे ! जयिता ! ''
यह मेरी पुरानी विद्यार्थी थी |
दुकानों की कतारों के सामने उसे इस प्रकार अभिवादन करते देख जहाँ मुझे थोड़ी खुशी हुयी वहीं झेंप भी लगी |
...''अरे ! तेरी शादी हो गयी ? ...कहाँ रहती है ? ''
...''यहीं ..पास में ही घर है | ''
...'' चलो अच्छा है ...मैका और ससुराल एक ही शहर में है | ''
मैं आगे बढ़ चली |
No comments:
Post a Comment