Wednesday, January 29, 2025

फूलवाला

 


-इंदु बाला सिंह 


' फूलवाला !....फूलवाला ! '


एक छोटे डंडे में मल्ली फूल छोटी छोटी लड़ी लटका कर वह हर रोज शाम के पांच से साढ़े पांच के बीच हमारे मोहल्ले में आवाज लगाया करता था | उसकी आवाज आँखों में मेरी चमक ला देती थी | एक लड़ी का मूल्य था पचास पैसे | हर रोज मैं उस से फूल की एक लड़ी खरीदती थी और अपनी दो वर्षीय बिटिया के बालों में क्लिप से लगा देती थी | उसका खिला चेहरा देख मन प्रसन्न हो जाता था |

कुछ ही दिनों में हर रोज पचास पैसे खुचरा फूल के नाम से अलग रखना मुझे कठिन लगने लगा |


' सुनो ! ऐसा करो हर महीने एक साथ पैसे ले जाना | ' ---- एक दिन मैंने फूलवाले से कहा |

' ठीक है ..दीदी ! ' ----- वह खुश हो गया था | उसे एक ऐसा ग्राहक मिल गया जो उससे पूरे महीने फूल खरीदेगा |


तीन माह तक फूलवाला आता रहा | एक दिन मैंने सुना दंगा छिड़ा है | फूलवाला भी आना बन्द हो गया | दिन बीते मास बीते वर्ष भी बीत गया पर वो फूलवाला न आया | मै सोंचने लगी कहीं चला गया शायद | अवचेतन मन में डर सा लगा | कहीं किसी ने मार तो नहीं दिया !

फूलवाला न आया कभी |

याद आता है आज भी वो फूलवाला |

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