#इंदु_बाला_सिंह
पंद्रह वर्षीय ऋद्धि को हरी मटर खाना बहुत पसंद था ।उसने अपनी माँ से मटर लिया स्टील के कटोरे में और एक स्टील के छोटी थाली ले कर अपने घर के बाहर के बरामदे में बैठ गयी ।
माँ रसोईं घर में खाना पका रही थी ।
ऋद्धि मटर छिल रही थी और दाने खाती जा रही थी ।
मटर के फलियों के छिलके जमा होते जा रहे थे थाली में और कटोरा खाली हो रहा था ।
मटर छिलते समय एक मटर का दाना थाली के छिलकों के ढेर में जा गिरा ।
‘ अरे! एक मटर का दाना गिर गया ।… जाने दो एक दाना गिर गया तो क्या हुआ ।’ - ऋद्धि ने सोंचा ।
फिर उसे कहानी की वह चिड़िया याद आयी जिसका एक डाल का दाना पेड़ के ठूँठ में गिर गया था । उस चिड़िया ने अपना दाना पाने के लिये कितना परिश्रम किया ।और वह थाली के छिलकों के बीच से अपना दाना नहीं ढूँढ सकती है ।
ऋद्धि थाली के छिलकों को हटाने लगी । बीच में उसे मटर का दाना दिखा ।
ऋद्धि मटर का दाना खा ली ।
फिर से कटोरे के बची मटर की फलियों को छील कर खाने लगी ।
No comments:
Post a Comment