Sunday, September 29, 2024

बुढ़ापे की असहायता



#इन्दु_बाला_सिंह


‘ यहाँ नहीं रहेंगे कहाँ जायेंगे ? ‘ दुःखी मन से सुलेखा ने कहा ।


वह कहती जा रही थी - अपने पेंशन का पैसा खा रहे हैं हमलोग ।

जरा सा बेटे से बात कर लेती हूँ तो बहू की त्योरी चढ़ जाती है ।

गाँव में घर तो जॉइंट का है । एक कमरे में हमलोग अपना सामान 

रख कर ताला लगा दिये हैं । बेटी का आदमी भी काम नहीं करता 

है ।बेटी थोड़ा कमाती है मैं भी उसको हर महीने पैसे भेजती हूँ ।

अभी तो मेरा हाथ पैर चल रहा है । बीमार हो जाऊँगी तो क्या होगा ?


मैं मूक श्रोता थी ।


सुलेखा पति के साथ अपने बेटे बहू के पास रह रही थी ।


सोंच रही थी बुढ़ौती कितनी अपमानजनक और कष्टदायक होती है ।



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