#इन्दु_बाला_सिंह
‘ यहाँ नहीं रहेंगे कहाँ जायेंगे ? ‘ दुःखी मन से सुलेखा ने कहा ।
वह कहती जा रही थी - अपने पेंशन का पैसा खा रहे हैं हमलोग ।
जरा सा बेटे से बात कर लेती हूँ तो बहू की त्योरी चढ़ जाती है ।
गाँव में घर तो जॉइंट का है । एक कमरे में हमलोग अपना सामान
रख कर ताला लगा दिये हैं । बेटी का आदमी भी काम नहीं करता
है ।बेटी थोड़ा कमाती है मैं भी उसको हर महीने पैसे भेजती हूँ ।
अभी तो मेरा हाथ पैर चल रहा है । बीमार हो जाऊँगी तो क्या होगा ?
मैं मूक श्रोता थी ।
सुलेखा पति के साथ अपने बेटे बहू के पास रह रही थी ।
सोंच रही थी बुढ़ौती कितनी अपमानजनक और कष्टदायक होती है ।
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