Wednesday, December 17, 2025

शहर में मजदूर

 

 

 

काम करवाते हैं पर पी० एफ० नहीं । पेंशन की गुंजाइश नहीं । आठ हजार रुपए तनख्वाह पर । सच्चिदानंद नाम था उसका। लोग उसे सची कह के बुलाते थे । वह हमारे घर कुकिंग गैस का सिलेंडर पहुंचाता था । गैस चूल्हा भी इतवार को आ कर रिपेयर कर देता था ।

 

इस बाची जब सिलेंडर पहुंचाने आया तो मायूस था ।

 

' दीदी अगले महीने मैं रिटायर हो जाऊंगा । '

 

मैं चौंक गई

 

तो अब क्या करोगे ?- मैंने पूछा

 

' गांव चला जाऊंगा । गांव मे मेरे पिता है '

 

' और वहां करोगे क्या ? '

 

' गांव में हमारा खेत है । घर है । '

 

मैने सोचा कितना खेत होगा ? छोटा सा खेत होगा मकान होगा जिसमें बहुत से रिश्तेदार रहते होंगे ।

 

सची की पत्नी तो जल कर मर गई थी किचेन मेएक बेटा है अब जो काम मिले तो करता है वरना घर में बैठा रहता है । मतलब पिता पर निर्भर है । पांच छः साल पहले एक्सीडेंट में पैर दोनों टूट गए थे उसके । दयालु व्यक्तियों की सहायता से जिंदगी बचीकमजोर टांगों से साइकिल खींचता है वह

 

बुढ़ापा कितना कष्टदायक होगा सची का मैसमझ सकती हू

 

 

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