Sunday, November 23, 2025

माड़ दो मां

 

 

 

वह दिखती थी मुझे यादों में हर कुछ दिन के बाद। वह कहती थी -

मुझे भूल गई क्या । मेरा जिक्र नहीं तेरी रचनाओं मे

 

आज भी याद है वह मुझे

 

हमारे घर के सामने की बस्ती में रहता था उसका कुनबा कु महीनों से चांद की रोशनी तले ।

भोर भोर एक बड़ा सा एल्युमिनियम का कटोरा ले निकल पड़ती थी वह।

घर घर - मां माड़ दो कह कर भीखांगती थी।

हमारे घर में माड़ बेसिन में बहाना सुविधाजनक था ।

 

दिन मेरी सासूमां ने उससे कहा - तू हमारा बर्तन मांज। तुझे पैसा मिलेगा

 

सूखे बिखरे बालवाली भीख मांगनेवाली को घर में घुसानाभाया मुझे । पर जाड़े में कामवाली मिलना मुश्किल था मुझे । मेरा मन मान गया ।

 

बाहर आंगन मे बैठ कर बर्तन मांज सकती थी वो

धीरे धीरे उसके सिर में तेल पड़ने लगाहमें देख कर औरों ने भी उसे काम पर रख लिया

 

अब वह भीखमांगनेवाली नहीं कामवाली थी ।

 

देखते देखते उसका कायाकल्प हो गया

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