" मैं हर महीने चार सौ पुजारी को देती हूं । हमारे मुहल्ले के मंदिर में हर सोमवार को भगवान की पूजा होती है शाम को छः से सात बजे के बीच में । भगवान को भोग लगता है । फिर बच्चे खाते हैं खाना । जिसकी जितनी इच्छा उतना पैसा देता है । जो कम पैसा देता है उसके लिए पंडित देर से रात आठ नौ बजे तक आते हैं । अब सोचिए भगवान बोल नहीं सकते पर भूख तो उनको भी लगती है । और उसके बाद रात में बहुत से बच्चे सो भी जाते हैं ।"
मैं सुन रही थी अपनी कामवाली की बातें ।
" मैं तो मंदिर में पंखा भी दान की हूं । भगवान को भी तो गर्मी लगती है।
भगवान को दान करती हूं इसीलिये तो मेरे बेटा बेटी अच्छा से हैं । "
मैं सोंच रही थी कि यह कामवाली के विचार हैं । गरीब है पर भूखी नहीं है । आमदनी है । और लोग बोलते हैं कि हमारे पास काम नहीं है । बेरोजगार हैं वे । निठल्ले से पान सिगरेट की दुकान पर बैठे रहते हैं ।
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