- इन्दु बाला सिंह
वह साड़ी हरे और नीले रंग के मिश्रण रंगोंवाले थी । यूँ कहिये वह साड़ी कुछ कुछ तूतिये जैसे रंग की थी । उसका कपड़ा चमकीला था । उस साड़ी में जंगह सुनहरे तार की जाले बनीं हुयी थी । कहीं पारदर्शी पत्थर भी जड़े हुये थे । मेरी नानी ने वह साड़ी मुझे दी थी ।
' ले ले तेरी शादी में तुझे काम आयेगी । '
इतनी सुंदर साड़ी पा कर मैं ख़ुश थी ।
मेरी नानी गिरवी रखा करती थी सामान । घर की सभी महिलायें बर्तन , कपड़े गिरवी रखा करते थे । यह उनकी आमदनी का एक ज़रिया था । गिरवी रखनेवाले पैसा न जुटने पर अपना सामान छोड़ देते थे । बेड़े शान से घर की महिलायें कहा करतीं थीं ।
' आज सामान ख़रीदते हैं घर के मर्द और कल गिरवी रख जाती हैं उनकी पत्नियाँ । '
आज समझ में आता है कितना गरीब था वह मुहल्ला ।
यह कैसी टीन एज थी मेरी जो मुझे यह सब धंधा आकर्षक लगता था ।
तो वह सुंदर साड़ी मुझे मिली जिसे मैं अपने ब्याह के बाद बड़ें शौक़ से पहनी और मैंने पाया हर तह से वह साड़ी फट रही है ।
कुछ वर्ष मैंने वह साड़ी अपनी नानी की यादगार की रूप में अपने पास रखी फिर उसे कूड़ेदान में डाल दिया ।
मेरी आँखों के सामने वह पत्थर जड़ी साड़ी अब भी कौंध जाती है । आख़िर मुझे उपहार में मिलनेवाली पहली वह सुंदर सी साड़ी जो थी ।
आज सोंचती हूँ मेरी नानी ग़रीब थी या स्वाभिमानी !
इतनी सुंदर साड़ी पा कर मैं ख़ुश थी ।
मेरी नानी गिरवी रखा करती थी सामान । घर की सभी महिलायें बर्तन , कपड़े गिरवी रखा करते थे । यह उनकी आमदनी का एक ज़रिया था । गिरवी रखनेवाले पैसा न जुटने पर अपना सामान छोड़ देते थे । बेड़े शान से घर की महिलायें कहा करतीं थीं ।
' आज सामान ख़रीदते हैं घर के मर्द और कल गिरवी रख जाती हैं उनकी पत्नियाँ । '
आज समझ में आता है कितना गरीब था वह मुहल्ला ।
यह कैसी टीन एज थी मेरी जो मुझे यह सब धंधा आकर्षक लगता था ।
तो वह सुंदर साड़ी मुझे मिली जिसे मैं अपने ब्याह के बाद बड़ें शौक़ से पहनी और मैंने पाया हर तह से वह साड़ी फट रही है ।
कुछ वर्ष मैंने वह साड़ी अपनी नानी की यादगार की रूप में अपने पास रखी फिर उसे कूड़ेदान में डाल दिया ।
मेरी आँखों के सामने वह पत्थर जड़ी साड़ी अब भी कौंध जाती है । आख़िर मुझे उपहार में मिलनेवाली पहली वह सुंदर सी साड़ी जो थी ।
आज सोंचती हूँ मेरी नानी ग़रीब थी या स्वाभिमानी !
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