Sunday, June 16, 2019

वह सुंदर साड़ी


- इन्दु बाला सिंह


वह साड़ी हरे और नीले रंग के मिश्रण रंगोंवाले थी । यूँ कहिये वह साड़ी कुछ कुछ तूतिये जैसे रंग की थी । उसका कपड़ा चमकीला था । उस साड़ी में जंगह सुनहरे तार की जाले बनीं हुयी थी । कहीं पारदर्शी पत्थर भी जड़े हुये थे । मेरी नानी ने वह साड़ी मुझे दी थी ।

' ले ले तेरी शादी में तुझे काम आयेगी । '

इतनी सुंदर साड़ी पा कर मैं ख़ुश थी ।

मेरी नानी गिरवी रखा करती थी सामान । घर की सभी महिलायें बर्तन , कपड़े गिरवी रखा करते थे । यह उनकी आमदनी का एक ज़रिया था । गिरवी रखनेवाले पैसा न जुटने पर अपना सामान छोड़ देते थे । बेड़े शान से घर की महिलायें कहा करतीं थीं ।

' आज सामान ख़रीदते हैं घर के मर्द और कल गिरवी रख जाती हैं उनकी पत्नियाँ । '

आज समझ में आता है कितना गरीब था वह मुहल्ला ।

यह कैसी टीन एज थी मेरी जो मुझे यह सब धंधा आकर्षक लगता था ।

तो वह सुंदर साड़ी मुझे मिली जिसे मैं अपने ब्याह के बाद बड़ें शौक़ से पहनी और मैंने पाया हर तह से वह साड़ी फट रही है ।

कुछ वर्ष मैंने वह साड़ी अपनी नानी की यादगार की रूप में अपने पास रखी फिर उसे कूड़ेदान में डाल दिया ।


मेरी आँखों के सामने वह पत्थर जड़ी साड़ी अब भी कौंध जाती है । आख़िर मुझे उपहार में मिलनेवाली पहली वह सुंदर सी साड़ी जो थी ।

आज सोंचती हूँ मेरी नानी ग़रीब थी या स्वाभिमानी !



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