Monday, July 30, 2018

अपना मकान


-इंदु बाला सिंह


पति गुजर गये । मकान पत्नी के नाम लिख गये । पति मरने से पहले बेटे बेटी का ब्याह कर अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो अपनी जीवन -सन्ध्या में सदा निश्चिंत रहे ।
पत्नी विमला देवी के लिये अपनी जीवन सन्ध्या अकेले ही गुजारनी लिखी थी शायद विधाता ने ।
विमला देवी के पास अपना मेडीकल कार्ड था ।
जब चाहे वह बीमारी में अस्पताल में भर्ती हो सकती थी । दवायें मुफ्त थी । इलाज मुफ्त था ।
पर मुफ्त न थे सेवक व सेविका ।
मेहनताना ले कर भी अपनी मर्जी से काम करते थे वे ।
पूरा घर बदबूदार था विमला देवी का ।
सेविकाएं काम कर के डट के खा पी के चलीं जातीं थीं अपने घर ।
पति के गुजरते ही हित -मित्र भी ग़ायब हो गये थे ।
बेटों ने अपने पास अपनी मां को न रखा । आखिर कौन सेवा करता उस बूढ़े इंसान की ।
कुत्ता रखो घर में तो वो चोर को काट डालता है पर बूढ़े इंसान की रखवाली और सेवा से बड़ा खर्चीला कोई काम नहीं ।
विमला देवी खुश थीं । वे अपने घर में थीं । यहां वे किसी पर बोझ नहीं थीं ।
मकान जर्जर था विमला देवी की तरह । दीवारें सहारा थीं , मित्र थीं उनकीं ।
बेटे खोज खबर रखते थे अपनी माँ का अपने मित्रों के माध्यम से
एक दिन उन्हें खुशखबरी मिली ।
माँ अस्पताल के   आई o सी o यू o में  भर्ती है ।
बच्चे जुट गये ।
सात दिन के इंतजार के बाद मां गुजर गयी ।
शान से तेरही हुई मां की ।
पिता व पुत्र दोनों के मित्र मृत्यु -भोज में जुटे ।
मां को साथ न रखनेवालों ने मकान बेच कर अपने हिस्से का पैसा अपनी पत्नियों के नाम कर दिया ।

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