माता
पिता मस्त थे बेटा सुधीर भी अपनी दुनियां में खुश था | मेट्रिक भी न पास कर सका वह |
ठगी और चोरी
चमारी भी न सीख सका सुधीर | सीधा सादा युवा आज की दुनिया का स्वाभिमानी मूर्ख बन
गया था |रिश्तेदार उसे पागल कहते थे | पत्नी रख न पाया माँ की भी मृत्यु हो गयी |
वैसे लगभग चार करोड़ मकान का मालिक सुधीर और उसके बड़े भाई थे |
खुद काम ढूंढ
न पाया और पिता भी उसे किसी काम में लगवा न पाए |
एक दिन देखा
मैंने सड़क के किनारे बैठ कर सुधीर किसी की हजामत बना रहा है | वैसे कोई काम छोटा
नहीं होता पर उस क्षत्रिय पुत्र को हजामत बनाते देख दुख हूआ |
फिर सुना शहर
के एक क्लब में बेयरे की नौकरी लग गयी है उसे | पी ० एफ ० और मेडिकल फैसिलिटी भी
मिल रही है उसे | पी ० एफ ० का नामिनी उसने अपने भाई के पुत्र को बना दिया है |
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