26
November 2015
22:11
-इंदु बाला
सिंह
रह
रह कर याद आती है मुझे अपने स्वजन की कहावत -
' यही मुंह
पान खिलाता है और यही मुंह लात | '
और मैं बात
चीत में शब्दों की शालीनता नहीं खोती |
देखती हूं
कड़वी बोली बोलनेवाले उंची आवाज में बोलनेवाले जीतते दीखते हैं जीवन में | एकपल को
मन डगमगाता है |
बुद्धि थाम
लेती है मन -
' गलत बात
...टीचरी की जीवन भर ....गलत काम को प्रश्रय देना अच्छी बात नहीं | '
' काश टीचरी
का पेशा न अपनाया होता ! ' - दुखी मन अफ़सोस कर बैठता है |
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