Sunday, November 29, 2015

पुरानी आंटी और याद



-इंदु बाला सिंह


आज मेरे घर आयी थी मेरी एक पुरानी आंटी ( फ्रेंड आंटी ,दीदी कुछ भी कह  भी सकते हैं ) ।

' क्या करती है तुम दिन भर आती नहीं मेरे घर । क्या करती हो तुम दिन भर ? '

' ऐसे ही  , थोड़ा बहुत लिखा करती हूं । कहानी वैगरह । '

आंटी जी ने बड़ी बड़ी आँख कर मेरा चेहरा देखा । फिर बोली -

' तुम तो नाटक लिखी थी न । हम लेडीज लोग नाटक किये थे । '

मैं चौंक गयी । फिर याद आया -

कालेज डेज में मैंने लिख  के दिया था उन्हें एक  नाटक  क्लब में एक्ट करने के लिये ।




Thursday, November 26, 2015

शब्दों की शालीनता


26 November 2015
22:11

-इंदु बाला सिंह

रह रह कर याद आती है मुझे अपने स्वजन की कहावत -

' यही मुंह पान खिलाता है और यही मुंह लात | '

और मैं बात चीत में शब्दों की शालीनता नहीं खोती |

देखती हूं कड़वी बोली बोलनेवाले उंची आवाज में बोलनेवाले जीतते दीखते हैं जीवन में | एकपल को मन डगमगाता है |

बुद्धि थाम लेती है मन -

' गलत बात ...टीचरी की जीवन भर ....गलत काम को प्रश्रय देना अच्छी बात नहीं | '


' काश टीचरी का पेशा न अपनाया होता ! ' - दुखी मन अफ़सोस कर बैठता है |

Tuesday, November 17, 2015

प्रसाद छठ मैय्या का


18 November 2015
11:03

-इंदु बाला सिंह



-आप दुखी दिख रही हैं ......छठ मैय्या का प्रसाद ले लीजिये |

-लेकिन मैं आपको पहचानती नहीं |

-मैं पहचानता हूं आपको |

-माफ़ कीजिये .... मैं आपको नहीं पहचानती |

-छठ मैय्या का प्रसाद मना करती है .......


उस ने आँख तरेरी और निकल गया साईकिल से |

Monday, November 16, 2015

गेंद और बच्चा


17 November 2015
07:42


-इंदु बाला सिंह


बच्चा रबर बाल खेल रहा है पोर्टिको में |


1

ठप्प ..ठप्प ....ठप्प

अरे ! घर में मत खेलो गेंद ...... बाहर खेलो | - नाना

बाहर तो सड़क पर गाडियां चलती हैं | - पितृहीन बच्चे ने सोंचा

और एक दिन गेंद जा लगी पोर्टिको में खुलने वाली कांच पे | टूट गया कांच टुकड़े टुकड़े में |

बच्चे के मां की सांस उपर की उपर नीचे की नीचे |

बच्चे की सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली बहन ने जमीन पर गिरे एक एक कांच चुना ......फेविकोल से जोड़ कर खिड़की के पल्ले में वापस चिपकाया |

बच्चे की मां की जान में जान आयी |

2

ठप्प .....ठप्प ....ठप्प

बच्चा गेंद खेल रहा था पोर्टिको में |
दोपहर के तीन बजे थे |
गेंद खेलता है ....... सोने नहीं देता है | - बगल घर की खिड़की खुली ........ चीखा पड़ोसी  |

डर गया बच्चा |

उसने गेंद खेलना रोक दिया |

डर गयी बच्चे की मां |


बच्चे की बहन कुढ़ गयी |

Saturday, November 14, 2015

छोटी बच्ची 1


16 July 2015
15:43
-इंदु बाला सिंह


चार साल की छोटी बच्ची अपनी गोद में छ: महीने की बहन लिये खड़ी थी सड़क पर | पास में शादी हो रही थी |
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आधी रात को नींद खुल गयी बच्ची की |

माँ उसकी बहन को गोद में लिये रो रही थी |

बगल कमरे से बड़ी माँ आयी और उस बच्ची को ले कर अपने कमरे में चली गयी | डरी हुयी बच्ची दुसरे  कमरे में सो गयी |

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उस बच्ची की बहन मर चुकी थी |

बरसों बाद उस बच्ची को पता चला कि उस की बहन को दिफ्थेरिया हुआ था |

उस बच्ची के पिता दुसरे शहर में नौकरी करते थे |


पांच साल की बच्ची पिता के साथ पैदल स्कूल जा रही थी | वह खुश थी | पिता के कदम से कदम न मिला पा रही थी वह बच्ची | बार बार पीछे छूटी जा रही थी वह |



: साल की बच्ची माँ के पास कमरे में ज्यों ही घुसने लगी एक खून से सने हाथवाली औरत ने उसे रोक दिया | हाथ का खून देख डर गयी वह बच्ची |

उस बच्ची की माँ ने एक बेटी पैदा की थी


' नहीं मैं नहीं खाऊंगी भात दाल | मुझे खिचड़ी खानी है | ' बच्ची को केवल खिचड़ी भाती थी |

भाभी लकड़ी के चूल्हे के सामने लकड़ी के जलते कोयले को बाहर निकाल उसी पर एक छोटी बटुली में थोड़ा पका दाल और चावल डाल कर रख देती थी | बस छोटी बच्ची को खिचड़ी मिल जाती थी रोज खाने में |


' मेरे पास क्यों घुसती है ... जा अपने भतार के पास | ' 

भाभी चिपकी ननद को हर समय छेड़ती थी |
|

छोटी बच्ची सोंचती थी |

' कितनी गलत बात बोलती है भाभी | मेरा चचेरा भाई क्या मेरा भतार है ? '

उस छ: वर्षीय बच्ची को भतार शब्द का मतलब समझ आ चूका था |

पूजा का प्रसाद हाथ में ले कर लौट रही छोटी बच्ची और पीछे पीछे प्रसाद के लालच में चलता कुत्ता कितना भयभीत पल था |

उस प्रसाद को घर अपनी माँ तक पहुंचाना था उस बच्ची को |

वह भय आज भी महसूस कर सकती हूँ मैं |


और आज सोंचती हूं क्यों नहीं फेंक दी वह छोटी बच्ची अपने हाथ का प्रसाद सडक पर | कम से कम कुत्ते के भय से तो मुक्त हो जाती वह |

Thursday, November 12, 2015

सासु माँ गुम गयी


13 November 2015
11:37

-इंदु बाला सिंह


--भाभी ! भैय्या कहां गये हैं ?
--अपनी माँ को ले के अस्पताल |

और मैंने सोंचा शायद वह ' अपनी माँ ' भाभी की कुछ नहीं लगती |

आजकल सासु माँ का सम्बोधन विलुप्त है |