Friday, August 9, 2013

मोमबत्ती में पढ़ती आकृति

 बिजली चले जाने पर उस  छोटे से घर की खिड़की से झांकती मोमबती की रोशनी में टेबल पर झुकी आकृति ने सरिता के मन में सदा एक उत्सुकता बनायी रखी |
इसका भी एक कारण था बगल में उस युवा के चाचा का विशाल मकान था जो कि अँधेरे में भी जनेरेटर की रोशनी से जगमगाया रहता था |
कैसे लोग रहते हैं ? काश उस लड़के को बरामदे में ही पढ़ने की जगह दे देते |....वह सोंचती थी
शहर छूटा पर वह खिड़की वाली आकृति याद रही |
चार वर्ष पश्चात् सरिता ने  एक पुराने परिचित से उस  युवा  के बारे में पूछा |
" अरे  भाभी ! वो तो आई ० ए ० एस ० बन गया है | "
सरिता की आंखें सजल हो उठीं | 

वह आकृति  सदा उसकी आंखो में बसी रही | 

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