बिजली चले जाने पर उस छोटे से घर की खिड़की से झांकती मोमबती की रोशनी
में टेबल पर झुकी आकृति ने सरिता के मन में सदा एक उत्सुकता बनायी रखी |
इसका भी एक
कारण था बगल में उस युवा के चाचा का विशाल मकान था जो कि अँधेरे में भी जनेरेटर की
रोशनी से जगमगाया रहता था |
कैसे लोग रहते
हैं ? काश उस लड़के को बरामदे में ही पढ़ने की जगह दे देते |....वह सोंचती थी
शहर छूटा पर
वह खिड़की वाली आकृति याद रही |
चार वर्ष
पश्चात् सरिता ने एक पुराने परिचित से
उस युवा
के बारे में पूछा |
"
अरे भाभी ! वो तो आई ० ए ० एस ० बन गया है
| "
सरिता की
आंखें सजल हो उठीं |
वह आकृति सदा उसकी आंखो में बसी रही |
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