" हमें
कुछ नहीं चाहिए ...केवल लड़की चाहिए | " मंडप में समधी का ये वाक्य सुनते ही
पिता ने एक सूटकेस कपड़े के साथ विदा कर दिया बेटी |
पति निकम्मा
,सास ससुर मौन ,जेठ जेठानी शेर | कुछ ही दिनों बाद लड़ाई झगड़ा के बाद हाथ भी चलने लगा जेठ का | पोस्टमैन पिता की
बेटी सुरुची बिलबिला उठी | मैके गयी तो
वापस लौटने का नाम न ली |
कुछ माह
पश्चात ससुर विदा कराने गए बहु तो सुरुची दौड़ पड़ी गंगा की ओर डूबने |
" बिटिया
नहीं जाना चाहती तो मैं क्या करूं | " दुखी मन से बोले लड़की के पिता |
किसी तरह हाथ
जोड़ कर विदा किया सुरुचि के पिता ने शहरी समधी को |
सुरुचि के पति
को तो कोई लड़की न मिली व्याहने को पर एक पुत्र पैदा हुआ सुरुचि को और कालान्तर में
सैनिक बन उसने देश की सेवा की व माँ की
शान भी वह रखा |
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