Tuesday, December 31, 2013

टके सेर भाजी टके सेर खाजा ( लोक कथा )

एक साधू अपने दो शिष्यों के साथ भ्रमण के लिए निकला |
घूमते घूमते वह एक ऐसे राज्य में पहुंचा जहां सब वस्तु का मूल्य एक टका था |
दोनों शिष्य बाजार से लौट कर प्रसन्नचित हो यह बात गुरु को बताये और बोले कि अब हम यहीं बसेंगे |
साधू ने कहा अब हम यहां एक पल भी नहीं रहेंगें | जहां सभी वस्तु का एक मोल होता है वह जगह रहने लायक नहीं होती |
पर एक शिष्य जिद कर के रह गया और साधू अपने एक शिष्य को साथ ले आगे बढ़ गया |
खूब आनन्द से इस राज्य में खा पी के शिष्य रहने लगा | कुछ महीनों में यह शिष्य मोटा तजा हो गया |
एक बार राज्य में चोरी हो गयी और चर पकड़ा गया |
चोर के लिए फांसी की सजा नियत हुयी |
नियत समय पर चोर को जब फांसी के फंदे के पास लाया तो पता चला कि फंदा बड़ा है |
अब राजा  ने आज्ञा दी कि शहर में ढूंढ कर सबसे मोटे ताजे व्यक्ति को लाया जाय और उसे फंदे में लटका दिया जाय |
पूरे राज्य में यह खबर आग की तरह फ़ैल गयी |
साधू तक भी यह बात पहुंची |
साधू अपने शिष्य के साथ अपने पुराने शिष्य का हालचाल  लेने इस राज्य में लौटा |
इधर खा  पी के मोटा हुए शिष्य को राजा के सिपाहियों ने पकड़ कर जेल में डाल दिया |
नियत समय पर मैदान में फांसी के मैदान में शिष्य को लाया गया फिर उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी गयी |
शिष्य ने कहा कि मैं अपने मित्र से मिलना चाहता हूँ |
शिष्य का मित्र आया और शिष्य के कान में कुछ कहा |
अब वे दोनों लड़ने लगे |
राजा अचंभित हुए उन्होंने उनसे आपस में लड़ने का कारण पूछा | तो शिष्य ने बताया कि यह मुहूर्त मृत्यु का बहुत अच्छा है इसलिए मेरा मित्र बोलता है कि वह फांसी पर चढ़ेगा | इस समय जो मरेगा वह सीधे स्वर्ग जाएगा |
इतना सुनते ही राजा ने जल्लाद से कहा ........ मुझे फांसी पर लटकाया जाय | यह व्यक्ति कल फांसी पर चढ़ेगा |

और राजा को फांसी दे दी गयी |


साधू अपने दोनों शिष्यों के साथ उस राज्य से निकल गया |

Sunday, December 29, 2013

एक गधे की कामना ( लोक कथा )

एक गधे के दो बच्चे थे |

जब वे गधे के बच्चे थोड़ा बड़े हुए तो गधे के मालिक ने उन्हें बेच दिया |

मालिक ने एक बच्चे को धोबी के घर बेचा और दुसरे को सर्कस में | इस प्रकार वे दोनों भाई एक दुसरे से बिछड़ गये |

दस वर्ष बाद वे दोनों गधे के बच्चे फिर एक दुसरे से मिले | अब वे दोनों बड़े हो चुके थे |

" अरे ! तुम कितने दुबले हो गये हो ? " सर्कसवाला गधा अपने भाई को देख दुखी मन से कह उठा |

" पर तुम कितने मोटे ताजे हो | " धोबी के घरवाला गधा कह उठा |

" हां .. जहाँ मैं रहता हूँ वहां बहुत से जानवर रहते हैं | सबको भरपेट खाना मिलता है | हमारे यहां डाक्टर भी आता है | हम बीमार होते हैं तो हमें दवा भी देता है | .... पर हमें यहां वहां बहुत भटकना पड़ता है .. देखो मेरे  खुर कितने घिस गये हैं पर तुम्हारे खुर कितने चमकीले हैं | "

" हां .. सचमुच तुम्हारे खुर घिस गये हैं ... ऐसा करो तुम सर्कस छोड़ कर मेरे पास आ जाओ ...हमलोग साथसाथ रहेंगे | "

" हां ... तुम्हारी बात सही है ...मैं कुछ दिन बाद तुम्हारे पास आ जाऊँगा .... असल में न हमारे सर्कस में एक सुन्दरी है ... वह हवा में उड़ती है ...एक बार जब वो गिरी नीचे तो हमारे मास्टर ने उसे जाल में बचा लिया .. पर वह उसे एक चपत मारते हुए बोला  कि अब दुबारा वह इस प्रकार गिरेगी तो उसकी शादी वह एक गधे से करा देगा ... वो मास्टर बहुत जिद्दी है ...जो बोलता है उसे कर के  दिखाता है .... इस बार जब वो लड़की नीचे गिरेगी तो मेरी शादी जरुर उस लड़की से हो जायेगी फिर मैं आ कर तुम्हारे साथ रहूँगा | "


फिर मिलने की आशा में दोनों गधे अपने अपने मालिक के पास चले गए 

Saturday, December 28, 2013

एक स्नेहिल परिचय नन्हे बच्चे से

" किस क्लास में पढ़ते हो ? "

" वन क्लास में | "

" तुम्हारे क्लास टीचर का क्या नाम है ? "

" सुप्रभा मैम | "

" तुम्हारे प्रिंसिपल का क्या नाम है ? "

कुछ समय सोंचने के बाद बच्चा बोला .... " पता नहीं | "

" तुमको कौन सा विषय सबसे अच्छा लगता है ? "

" सब विषय अच्छा लगता है | "

" ऐसे कैसे  ......... एक विषय ज्यादा अच्छा लगता होगा न | "

" अलग अलग टीचर पढ़ाती हैं न ...मुझे रेनू मैम अच्छी लगती हैं ..... जिस दिन वो नया  कपड़ा पहन  कर आती हैं उस दिन  .... हाँ मुझे गणित अच्छा लगता है | "

" अच्छा .......तुमको टेबल कितने तक याद है ? "

" ग्यारह तक  | "

" तुमको स्कूल की प्रार्थना याद है ? "

" सुनाओ | "

आधी प्रार्थना सुनाने के बाद वह बच्चा बोला ... " आगे याद नहीं | "

धूप में सूखती हरी मटर पर बच्चे की निगाहें बार पड़ रहीं थीं |

" क्या आप मटर देंगी ? "

" जरूर | " एक मुट्ठी मटर नये नन्हे मित्र की छोटी हथेली में भर दिया |

नन्हा मित्र खुशी से अपने घर की ओर दौड़ पड़ा |






Monday, December 23, 2013

कुत्ता और कांच का घर ( लघु कथा )

एक कुत्ता था |

वह एक दिन एक कांच के घर में भूल  से घुस गया | जिस तरफ वह देखे उसे एक कुत्ता दिखाई दे | गुस्सा से वह उस पर भूँकने लगा | भूंकते भूंकते  वह थक गया और हार कर बैठ गया |

कुत्ते ने देखा कि सामनेवाला कुत्ता भी बैठ गया है | थोड़ी देर बाद वह कुत्ता उठ खड़ा हुआ और कांच में के कुत्ते को देख अपनी दुम हिलाने लगा | अब दूसरा कुत्ता  भी दुम हिला रहा था |

कुत्ते को बड़ा मजा आया | वह जोर जोर से कूद कर कांच में के कुत्ते को छूने लगा | उसने देखा कांच के अंदर वाला  कुत्ता भी उसे छू रहा है |

इस प्रकार वह देर तक खेलता रहा कुत्ता | फिर वह कांच के घर से बाहर निकल आया |


अब वह हर रोज जाता था उस कांच के घर में क्योंकि उसे वहां मजा आने लगा था |

Sunday, December 22, 2013

ग्राफ कापी ( स्कूल की कहानियाँ )

" ग्राफ कापी निकालो " ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश करते ही टीचर ने आदेश दिया |

" जमा करो अपनी कापी यहाँ मेरे सामने टेबल पर | "

टाफी खरीदने के लिए पैसे हैं कापी खरीदने के लिए नहीं | टीचर यह जानती थी | इसलिए आज वह देखना चाहती थी बच्चे कापी लाये हैं कि नहीं |

सारी कापियां जमा हो गयीं टेबल पर |

टीचर ने गिना कापियों को | कक्षा में छात्र साठ थे आज कापियां भी पूरी साठ थीं |

जब नाम देख देख कर उसने एक एक कापी चेक किया तो पाया छ: कापियां दुसरे सेक्शन के बच्चों की हैं |
एक एक का  नाम पुकार कर टीचर ने बच्चों को कापियां वापिस कर दिया |

अब छ कापियां रह गयीं टीचर के पास |

" टीचर ! कापी दे दीजिये ... और कभी नहीं मांग कर लाऊंगा | " एक बच्चा चिल्लाया |

" बिलकुल नहीं ! "

पीरियड खत्म होने पर कक्षा से निकल दो मीटर चली थी टीचर कि दूसरे सेक्शन का छात्र विमल दौड़ा आया |

" टीचर ! वो मेरी कापी थी ..प्लीज टीचर दे दीजिये "

" तुमने दी क्यों थी अपनी कापी श्रद्धा को ?...तुम्हें भी सजा मिलेगी | "

" नहीं टीचर ! और नहीं दूंगा | "

" बिलकुल नहीं ..ये कापी मेरे पास रहेगी ... ज्यादा परेशान करोगे तो फाड़ दूंगी कापी और डस्टबीन में दाल दूंगी  "

" फाड़ के देखिये तो .. " पीछे से एक मद्धिम आवाज आयी |

" अच्छा टीचर ...नये साल में दे दीजियेगा ...हैप्पी न्यू इयर | " और विमल झुक कर टीचर के पैर छू लिया |


पनडब्बा ( लोक कथा }

एक औरत थी | वह खूब पान खाती थी | उसके पास एक ख़ूबसूरत पनडब्बा था | वह चाहती थी लोग उसके पनडब्बा के बारे में जानें | उस पनडब्बा को लोग देखें | पर कैसे दिखाए वो सबको | लोगों को जबरदस्ती तो दिखा नहीं सकती थी |
एकाएक उस औरत के दिमाग में एक उपाय आया | उसने अपने घर में आग लगा दी |

घर जलते देख कर अगल बगलवाले दौड़े | कोई आग बुझा रहा था तो कोई सामान निकल रहा था |

वह औरत चिल्लाई ...अरे मेरा पनडब्बा निकालो !

कुछ लोग पूछे ...अरे आप पान खाती हैं ?


वह औरत बोल पड़ी ....आगे पूछे होते तो क्या मैं अपने घर में आग लगाती |

Tuesday, December 17, 2013

आलसी भालू और मेहनती भालू ( लोक कथा }

दो भालू थे |
एक आलसी भालू था और एक मेहनती भालू था |
मेहनती भालू दिन भर घूमता था और शहद इकठ्ठा करता रहता था | वह शहद खाता था और भविष्य के लिए अपने कमरे के ड्रम में डाल देता था |
आलसी भालू दिन भर धूप सेंकता रहता था | अपने घर के सामने लेटा रहता था |
आलसी भालू ने अपने कमरे से मेहनती भालू के कमरे तक जमीन के अंदर अंदर एक सुरंग खोद दी थी |उस सुरंग से उसने एक पतली पाईप का एक छोर शहद वाले ड्रम में डाल दी थी और दूसरी छोर अपने कमरे में रक्खी थी | जब मेहनती भालू घर से बाहर जाता था तब आलसी भालू मेहनती भालू के ड्रम से शहद मुंह से पाईप की सहायता से सोख कर पी जाता था |
एक दिन मेहनती भालू जब अपने ड्रम को देखने गया  | वह सोंचा था कि काफी शहद इकठ्ठा हो गया होगा पर उसका ड्रम दस प्रतिशत ही भरा था शहद से |
आलसी भालू बहुत दुखी हुआ |
उसने अपनी समस्या अपनी मित्र लोमड़ी को बताई |
लोमड़ी मेहनती भालू के घर पहुंची | उसने उसके घर का मुआयना किया | बाहर सोये आलसी भालू को देख उसकी भौं चढ़ गयी  |
लोमड़ी ने मेहनती भालू से निश्चिन्त हो जंगल जाने को कहा | वह खुद  भालू के घर में अकेली रह गयी |
लोमड़ी ने घर में चूल्हे एक डेकची में पानी चढ़ा दिया |
मेहनती भालू को जाते देख आलसी भालू अपने घर में घुसा और शहद सोखने के लिए पिप में मुंह लगाया |
उधर लोमड़ी ने खौलता  पानी ड्रम में डाल दिया |
और शहद सोखने लगे आलसी  भालू का मुंह जल गया |
इस घटना के बाद से आलसी भालू ने कभी शहद नहीं चुरायी  और वह खुद शहद इकट्ठा करने जंगल जाने लगा |






Thursday, December 5, 2013

अनाथ दादी

" दादी बोली , मैं कहां जाउंगी इस उमर में " बगल घर से आती पोते की आवाज ने जी कचोट दिया |

हाय रे अबला जीवन क्या तेरी यही कहानी
आंचल में है दूध और आँखों में है पानी |

आज भी भी सजीव है यह भाव हर घर में | आज भी न बदली महिला की स्थिति |

बगल घर में दादा जी को गुजरे एक वर्ष हो गया था | अपने मकान में रहते हुए भी दादी जरूर एक छत की तलाश में व्याकुल हो रही होगी उसने सोंचा |

दादी दादा के पहले ही गुजर गयी होती तो समस्या ही न थी |

दादा के सामने बेटों के खड़े होने की मजाल न थी |

आरक्षण और कानून की फाईल ऑफिस में ताक में पड़ी थी |


और पड़ोसन दादी के दुख में मैं तड़प रही थी |

बिटिया मेरा घर भी तेरा है !

ठेकेदारी मिट गयी थी ध्यान वर्मा की | शहर में काम का अभाव था | कर्ज कर्ज पर कर्ज चढ़ रहा था वर्मा जी पर | आखिर मकान बेच कर कर्जमुक्त हुए वर्मा जी |

मकान खरीदा पाकिस्तान से विस्थापित सरदार जी ने अपनी बेटी दामाद के लिए |
चार वर्ष में ही मकान बना ध्यान वर्मा का विवाह हुआ , दो बच्चे हुए और मकान भी बिक गया |

सरदार जी ने विस्थापन का कष्ट झेला था |


" बिटिया ! मेरा घर भी तेरा घर है ..जब भी इस शहर में आना मेरे घर में ठहरना | " मकान खाली करवाते वक्त सरदार जी वर्मा जी की पत्नी के सर पर आशीर्वाद के लिए हाथ फेरते वक्त कह उठे |

Monday, December 2, 2013

पगली भिखारिन

पगली भिखारिन ने घर के गेट पर खड़े  हो गृह स्वामिनी से हाथ के इशारे से खाने का सामान मांगा |

दोपहर का समय था |
मिसेज वर्मा  ने सोंचा भूखी होगी बेचारी और केले के पत्ते पर दाल चावल सब्जी परस कर ले आई और रख दिया उस भिखारिन  के सामने |

" No ... only biscuits !.... " अंग्रेजी में मिले नकारात्मक उत्तर से हतप्रभ रह गयी मिसेज वर्मा |

इस शहर में नया आया था उनका परिवार |

शाम को मिसेज वर्मा ने जब पड़ोसन मिसेज सुन्दरम को दोपहर का वाकया सुनाया तो वे  झट बोल पडीं  ......
" अरे ! उसका आदमी उसे छोड़ दिया है ...ये भिखारिन पढ़ी लिखी औरत है ....दुःख से इसका दिमाग फिर गया है ...यह किसी के घर का खाना नहीं खाती है ...भीख में मिले पैसों से होटल में खाती है ..और ऐसे ही फाटे चीथड़े कपड़ों में घूमती रहती है सडकों पर ..रात को कहीं भी सो जाती होगी | "

" इस बार मेरे बर्थ डे में मेरी माँ ने एक साड़ी भेजी है ..बीस हजार की है वो साड़ी ...आईये देखिये | " मिसेज सुन्दरम ने अपने घर का गेट खोलते हुए कहा |

Tuesday, November 12, 2013

झूठी शान

छोटे भाई के ब्याह के पांच बरस बाद  सरिता मैके आयी थी चचेरी बहन के ब्याह के अवसर पर | उसने भाई की आर्थिक स्थति  विषय में अपने पिता से सुना था | भाभी के अपने एक एक जेवर बिक गये थे | कष्ट से घर चल रहा था |
" भाभी ! ....मैं लाई हूं अपना एक एक्स्ट्रा सेट तुम्हारे लिए .... तुम पहन लेना ब्यह के दिन ... " सरिता को भाई के इज्जत की चिंता थी |

" मैं क्यों पहनूं  तुम्हारा सेट ...तुमने तो मेरे चारों सेट रख लिए .... " भाभी भड़क गयी |
" मैंने रख लिए !.... भला कब ? " आश्चर्य से सरिता ने पूछा |
" तुम्हारे भैय्या तो बोले थे मेरे ब्याह में यहां से जो सेट मिले थे वे सब आपके पास हैं ... " भाभी ने तमक कर कहा |

" अरे ! वे चारों  सेट तो उधार लाये गए थे दुकान से भैय्या ब्याह के अवसर पर  ...... फिर सुनार को वापस लौटने की बात हुई थी ..... मैंने तो भैय्या को कहा था कुछ दिन बाद भाभी को बता देना ... माँ बाबूजी को भी पता है ... " तमतमाते हुए सरिता ने कहा |

" क्या माँ , बाबूजी ! आपने मुझे इतना गिरा दिया भाभी की नजरों में ..... " और सरिता फूट फूट कर रो पड़ी |


सरिता के माता पिता मौन रहे |

Monday, November 11, 2013

बुजर्ग मित्र

लाठी के सहारे  सुबह की सैर को निकले  थे जयराम जी |
अपने घर के गेट के पास खड़े खड़े उसने  उस बुजुर्ग को पहचानने की चेष्टा की | कितने दिनों बाद यह चेहरा दिखा था उसे |
" कहीं ये जयराम जी नहीं ! ... "
" किसी का चेहरा किसी से मिलता जुलता भी तो हो सकता है ...पास आने पर पता चलेगा ..." मन ही मन सोंचा उसने |

" कुमार जी कैसे हैं ? " बगल से गुजरते हुये जब वे बोल पड़े तो उसकी हथेलियां स्वत: प्रणाम की मुद्रा में जुड़ गयीं |

" जयराम जी ! " उसकी आँखों में प्रश्नवाचक चिन्ह था |

" हां ! " जब जयराम जी के मुख से निकला तब विश्वास हुआ उसे खुद पर |

उसका अनुमान गलत न था |

" बहुत दिन बाद देखे ?"

" बेटा ! बीमार रहता हूं ..किडनी खराब हो गयी है | "

" और कुमार जी कैसे हैं ? " उन्होंने पिता के बारे में पुनः पूछा |

" वो तो तीन साल हो गया चले गए | " वह आकाश की और इशारा कर के बोल पड़ी |

" अरे ! मुझे तो पता ही न चला ! .... कितनी मित्रता थी उनसे ....मैं तो यहीं दो सड़क के पार रहता हूँ ........ " वे धीरे से बोले |

" मोबाइल नम्बर नहीं था मेरे पास आपका .... नहीं तो मैं जरूर खबर करती आपको ..... " उसने अपनी मजबूरी प्रकट की |

" क्रिया कर्म यहीं हूआ क्या ? " जयराम जी फिर कुछ सोंचते सोंचते बोल पड़े |

" जी .... दरअसल कार्ड किसको किसको भेजना है .. यह सलाह मशविरा मुझसे किसी ने नहीं हुआ ....."

" ओह !....सुबह सुबह खबर मिली .... हां ....अकेली को कौन पूछता है बिटिया .......................... अच्छा नमस्कार ! ...."


और जयराम जी  आगे चल पड़े | सुबह की सैर मिलाती है मित्रों से ...उनकी खबरें भी देती है |

Tuesday, October 29, 2013

कितना ख्याल रखते हैं बेटे !

रोटी बनाते वक्त गर्म तवा से हाथ लग जाने वहां  की  चमड़ी काली पड़ गयी | पास में रहनेवाली बेटी ने  नियोस्प्रिन लगा दिया था |

छोटा बेटा सुन कर दुसरे शहर से आया | उसने डाक्टर को दिखाया | डाक्टर ने खाने को टेबलेट दिया और हाथ में लगाने को मलहम |

बड़ा बेटा दूर देश में था | उसने अपने पैतृक शहर में रहनेवाले मित्र को माँ के पास भेजा माँ का हाल चाल लेने | वह  मित्र  दूकानदार से पूछ कर एक मलहम और टेबलेट लाया और दिया माँ को |

तीनों की दवा बारी से अपने जले स्थान पर लगा कर माँ खुश हुयी |

पास में रहनेवाली बेटी की आवश्यकता माँ को महसूस न हुयी |

" कितना ख्याल रखते हैं बच्चे मेरा ! " माँ पड़ोसन से अपने बच्चों बच्चों करने लगी |

माँ के हाथ की चमड़ी ठीक होने में दो माह लग गये |





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Monday, October 28, 2013

लड़की भाग गई !

" क्या हुआ ? .....क्या थाना पुलिस लगा हैं घर में ! " पत्नी ने घबरा के पति से पूछा |

" मिस्टर शर्मा की लड़की अपने मुहल्ले के लड़के के साथ भाग गयी है | "

" लड़का क्या करता है ? " पत्नी ने उत्सुकता से पूछा |

" किसी कम्पनी में काम करता है ...लड़के का बाप नहीं है ....केवल माँ है ....अपना घर है | "
" अरे वाह ! तब तो अपनी ही पार्टी है ... " पत्नी ने ताली बजाते हुए कहा |


पति महोदय पत्नी को खा जानेवाली निगाहों से देखते हुए घर से निकल गये |

Sunday, October 27, 2013

अकेलापन सरक आया जीवन में

उसने बस यूँ ही कल्पना को फोन किया था | गप्पें मरने का दिल कर रहा था उससे |


" सुना तुमने ! सुलभा के पिता का एक्सीडेंट में स्पॉट डेथ हो गया है ? " कल्पना फोन उठाते ही कहा था | वह घबरा गयी थी सुन कर  यह खबर |

सुलभा दस वर्ष पूर्व उसकी सहकर्मी थी | उसका भाई कैंसर के लास्ट स्टेज में था |

" बेटे के वे अस्पताल में भर्ती कर के लौट रहे थे तभी राह में एक पैदल सवार को बचाने में उनका स्कूटर डगमगा गया  और वे गिर पड़े | ब्रेन में चोट लग गयी |...हास्पिटल में ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया |... आई०  सी०  यू० से बेटे को पिता के अंतिम दर्शन के लिए लाया गया तो बेटे के भी प्राण पखेरू उड़ गये | .....कल ही दाह संस्कार हुआ है पिता पुत्र दोनों का | " कल्पना ने आगे बताया |

वह सन्न थी इस खबर पर | घर में मात्र माँ और सुलभा | कैसे कट रहे होंगे दिन ?...इसके आगे वह सोंच नहीं पाई | शाम भारी हो गयी थी उसकी |




               

गन्दी कार

" हाय ! कितनी गन्दी हो गयी है कार ! ....शर्म नहीं आती ! " पत्नी के मुख से निकल  पड़ा |

पति को दहेज में मिली थी कार |

पति तो चुप रहा पर चुभ गये शब्द मुझे | उस समय मैं छत पर टहल  रही थी |

Saturday, October 26, 2013

व्यापार में भी इमानदारी ( लोक कथा )

विक्रम संवत 1740 की कथा है | एकबार गुजरात और सौराष्ट्र में अकाल पड़ा | खेत सूख गये | पशु - पक्षी सूखे के कारण मरने लगे | कितने यज्ञ व धार्मिक अनुष्ठान किये गये पर बर्षा न हुयी | किसी ने राजा से कहा  कि  अमुक व्यापारी चाहे तो वर्षा करवा सकता है | राजा उस व्यापारी के पास पहुंचे और उससे वर्षा करवाने की प्रार्थना करने लगे | अब व्यापारी बड़ा परेशान हुआ |

" हे राजन ! मैं एक आम आदमी हूं | मैं कैसे बरसा करवा सकता हूं | " उस व्यापारी ने राजा को समझाया

" क्या तुम्हें मूक पशुओं पर दया नहीं आती ? खेत सूख गये हैं | मुझे विश्वास है तुम प्रार्थना करोगे तो वर्षा जरूर होगी | " राजा ने व्यापारी से विनम्रता पूर्वक कहा |
परेशान व्यापारी घर से अपनी तराजू ले आया और खुले आकाश के नीचे खड़े हो कर प्रार्थना करने लगा |

" देवगण और लोकपाल साक्षी हैं , यदि इस तराजू से मैंने किसी को ठगा नहीं है , यदि इस तराजू से मैंने सदा ही सत्य और धर्म से वस्तुओं को तौला है तो हे देवराज इंद्र ! आप शीघ्र वर्षा कीजिये | "

व्यवसायी के मुंह से यह वाक्य निकलते ही आकाश मेघाछ्न्न हो गया | मेघों का गर्जन सुनाई देने लगा | कुछ ही मिनट में मूसलाधार वर्षा हुई | धरती शीतल हो गयी |

Monday, October 14, 2013

पहले हम खा लेब

 " बचवन के जिन खाए दे ! ... हम आवत हयीं ..... पहले हम खा  लेब तब केहू के दीहे  | " ताई सब्जी काट रही थी |

गांव में पड़ोसी तिवारी जी के घर से बैना ( मिठाई ) आया था | तिवारी जी की बहू शहर से आई थी |

माँ ने मिठाई की कुरई ऊपर ताख पर रख दी थी |

माँ ने समझाया लोग कुछ टोना कर के देते हैं न तो जो पहले खाता  है उस पर ही उस टोने का असर होता है |


आज लग रहा है क्या दिन थे और क्या बुजुर्ग थे | टोना के अस्तित्व को तो मन मानता नहीं पर बुजुर्गो के उस त्याग को याद कर आंख आज भी भर आती है |

Friday, October 11, 2013

बैंक में रूपये जरूर रखियो

1990


" अरी कुंती ! क्या करेगी इतना पैसा जमा करके ? " मै ने एक दिन हंस कर कहा कुंती से |

" अरी मेरी सहेली ! सच में तू है बड़ी भोली | बुढ़ापे का सहारा तो पैसा है | पैसा तेरे पास न रहा तो दुनिया को क्या अपनों को भी भारी पड़ने लगेगी तू | मेरी मान भले एक कपड़ा पहन तू पर बैंक में रपये जरूर रखियो तू | " कुन्ती ने समझाया मुझे |

दो माह बाद  मैंने सुना | घर की सीढियां उतरते वक्त पैर फिसलने के कारण कुंती की मौत हो गयी है |


इस खबर ने  मुझे सन्न कर दिया |

Monday, September 30, 2013

सीमा

सीमा का घर मेरे घर के सामने था  |

पिता ने लिख दिया था अपनी बेटी के नाम एक कमरा | उसका भी एक कारण था | पिता ने निकम्मे दामाद को यह कह कर भगा दिया था कि तुम जाओ मैं तुम्हारी पत्नी और तुम्हारी बेटी को अपने घर में रख कर उन की अच्छी तरह देख भाल करूंगा |

 पिता को भय था कहीं दामाद घर में रह कर मकान का हकदार न बन जाय |

इस तरह सीमा आजीवन पितृ गृह  में रह सकती थी |

भला किसे भाए बेटी का  उस धनाढ्य इलाके में रहना | भरे पूरे घर के सदस्यों के  ताने सुन जीवन काटती सीमा मुहल्ले की महिलाओं के तो छोड़िये कामवालियों  की आंख की भी किरकिरी थी | जिन्दगी भर प्राईवेट संस्थान में नौकरी की आमदनी से अपना घर बनाना तो सीमा के लिए असम्भव था |
इकलौती बेटी ने घर भाग कर घर बसा लिया था अपना |

बुढौती बोझ थी सीमा के लिए |

अपना अलग खाना बना कर अपने कमरे में सोने पर भी घर में आये दिन किसी न किसी से तू तमार होती रहती थी | पर बला की जीवट महिला थी सीमा इतना झेलने के बाद भी  न तो वह घर से भागी न ही ईश्वर से मौत मांगी |

कोई  उसे मान न देता था पर वह स्वयं की पीठ ठोकती थी कि वह  भगोड़ी नहीं जीवन युद्ध के मैदान की |

एक दिन धूम धाम से अर्थी निकली सीमा की उस घर से |

मृत्यु भोज हुआ |

भाईयों भाभियों ने वाहवाही बटोरी बहन के देखभाल की |

मेरी खिड़की से दिखता एक चरित्र अतीत के गर्भ में समा गया था  ?

                                   

                      

Thursday, September 19, 2013

ये कैसे रक्त सम्बन्ध हैं !

दो कमरे का घर भाड़े पर लेकर श्रीधर सर अकेले रहते थे |

श्रीधर सर के घर के दो गली पीछे उनकी बेटी अपने पति व बच्चों के साथ रहती थी और बेटा अपनी पत्नी और बच्चों के साथ दुसरे शहर में रहता था |

श्रीधर सर की दुनिया उनके अपने ट्यूशन के बच्चे ही थे | बच्चे  ही उनके मित्र और सम्बन्धी  थे | उन्हें वे पिकनिक भी ले जाते थे |
" दीदी श्रीधर सर को न रात को दिल का दौरा पड़ा था | मेरा भाई उस समय उनसे ट्यूशन पढ़ रहा था | रात को सब ट्यूशन के छात्रों ने  मिल कर उन्हें अस्पताल में भर्ती किया था और उनकी बेटी को खबर भी कर दिया था | " एक बच्चे ने स्मिता से कहा |

स्मिता उस बच्चे की बातें सुन  सोंचती रह गयी ...फिर उसने सोंचा .....चलो श्रीधर सर को किसी पर निर्भर तो न रहना पड़ा |

विद्यालय में सेक्स एजुकेशन

" बच्चों को पर्सनल मोबाइल न दें | आप अपना मोबाइल दे सकते हैं कुछ घंटों के लिए हर रोज | इससे ये फायेदा होगा कि आपका बच्चा किससे किससे बात कर रहा है आपको ज्ञान रहेगा | बच्चे सेक्स के बारे में प्रश्न पूछते हैं आपसे तो आप सहजता से उसकी समस्या का समाधान करें | आप उसके प्रश्नों के उत्तर टालेंगे तो आपका बच्चा किसी बाहरी व्यक्ति  से पूछेगा  और वह व्यक्ति आपके बच्चे को गुमराह होगा |.... " अध्यापिका मीटिंग में बोलती जा रही थी |

आठवीं ,नवीं ,दसवीं कक्षा के छात्रों को अपने अभिभावकों के साथ विद्यालय में मीटिंग के लिए बुलाया गया था | स्टेज पर मुख्याध्यापक और आठवीं नवीं और दसवीं कक्षा के अध्यापक व अध्यापिकाएं बैठे थे |

अभिभावक व छात्र दोनों चुप चाप सुन  रहे थे सेक्स एजुकेशन  विषय पर |

स्कूल में कैंटीन

" नानी ! हमारे स्कूल में कैंटीन खुल गया है | वहां आलू चाप , समोसा और बड़ा सस्ते में मिलता है | अब तुमको नाश्ता बनाने का झमेला नहीं रहेगा | " नाती ने स्कूल से लौटते ही खबर सुनाई |

" मेरे स्कूल में तो टिफिन  में फ्री विटामिन सी टेबलेट , एक केला , एक संतरा और दो बिस्कुट मिलता था और जिसके पापा की तनख्वाह कम थी उन्हें साल में एक बार फ्री चार सेट यूनिफार्म  भी मिलता था " नानी ने हंस कर कहा |


" समोसा नहीं मिलता था न | " नाती ने हार न मानते हुए कहा |

जूलियस ( लम्बी कहानी )

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उसका नाम जूलियस था | वह एक आदिवासी बालक था | जब मास्टर बन कर स्कूल में मैंने नौकरी पकड़ी तब वह सातवीं कक्षा में पढ़ता था | आदिवासी बच्चों का भी दिमाग इतना तेज हो सकता है यह मुझे उसी समय पता चला |
उससे किसी भी विषय की किसी भी पुस्तक के किसी अंश से  प्रश्न मैं पूछता था तो  उत्तर उसकी जुबान पर  रहता था | उसकी हस्त लिपि गोल गोल व सुंदर  थी | उसकी मैली कमीज के कारण  उसका काला चेहरा , चिपटी नाक , और छोटी छोटी आंख बड़ी घृणास्पद लगती थी |
कक्षा में वह हमेशा चुपचाप अपनी पुस्तक में डूबा रहता था | उसके साथी हमेशा शोर गुल मचाते  रहते थे | मैंने उसे कभी किसी से गप्पें मरते न देखा था |
एक दिन वह मेरा दिया गृह कार्य कर के नहीं लाया |
" जाओ ! धूप में खड़े रहो | " मैंने उसे सजा दी |
वह चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा | उसकी आंख से आंसू टपटप धरती पर गिरते रहे | मैं उसे अनदेखा कर के कक्षा में पढ़ाता रहा |
पीरियड खतम होने पर मैंने उसे चपरासी द्वारा कामन रूम में बुलवाया |
" देखो ! तुम इतने अच्छे बच्चे हो | तुम्हारा दिमाग इतना तेज है | फिर तुम गृह कार्य क्यों नहीं कर के लाये ? यह कितनी गलत बात है | " मैंने उसे समझाने की चेष्टा की |
अपना सिर उठा कर कुछ क्षण तक वह मुझे देखता रहा |
" कल शाम को जब मैं स्कूल का गृह कार्य कर रहा था तब मेरे बापू आये और मुझे खूब पीटे | मेरी कापी फाड़ डाले वे | फिर बोले जब देखो पढ़ता रहता है | ये नहीं कि जरा बकरी ही चरा लायें | " रुक रुक कर बोला जूलियस |
" ओह ! ....ठीक है | कल कर के लाना गृह कार्य | "
" अच्छा | "
पर  दुसरे दिन भी गृह कार्य नहीं कर के लाया जूलियस |
मैंने फिर उससे पूछा - " अब क्या हो गया ? "
" कापी तो बापू फाड़ दिए थे फिर कापी कहाँ से आती | बापू बोलते हैं - मत पढ़ो | क्या होगा पढ़ कर | " पूछने पर जूलियस बोल पड़ा |
" तुमलोगों को तो स्कूल से पैसा मिलता है | तुम्हारे पास तो पैसा होगा ही | "
" वो पैसा तो मिलते ही छीन  कर ले जाते हैं और शराब पी जाते हैं | "
मैंने कापी खरीदने के लिए जूलियस को रूपये दिए | वह मना करता रहा पर मैंने उसे जबरन थमा दिए रूपये |

एक दिन मैंने उसका अकाउंट पोस्ट आफिस में खुलवा दिया | उसे  समझाया कि उसे कहीं से भी रूपये मिलें तो वह उन्हें पोस्ट आफिस में ही जमा कर दे |
धीरे धीरे अपनी सरलता और विद्याध्ययन के प्रति सुरुचि के कारण जूलियस ने मेरे हृदय में अपना एक स्थान बना लिया |
उसे कुछ भी पूछना होता तो वह मेरे घर बेहिचक आ जाया  था |
मेरी श्रीमती जी भी उसे संतानवत प्रेम करती थी | मेरे घर आने पर वे उसे बिना कुछ खिलाये जाने न देती थी |
                एक दिन मैं रात में खाना खा  रहा था तभी दरवाजा खटका | श्रीमती जी ने दरवाजा खोला | बाहर जूलियस था | मैं खाना छोड़ उठ खड़ा हुआ |
" अरे जूलियस ! आओ | क्या हुआ ? "
" मैं पढ़ रहा था उसी समय बापू पी कर घर में आये | मुझे पढ़ते देख कर एकदम बिगड़ गये | बोले - इतना बड़ा लड़का बैठ कर खाता  है | स्साला विलायत जायेगा | घर में एक पैसा नहीं है | ठहर मैं तेरी पढाई निकलता हूँ | वे फरसा उठा कर मुझे मारे | मैं बाल बाल बच गया | उनका फरसा  जा कर दीवाल से टकराया | उनका गुस्सा और बढ़ गया | वे फरसा ले कर मुझे मरने के लिए फिर दौड़े | मैं जान बचा कर भाग आया | "
     मैं सोंच ही रहा था कि किसी के पारिवारिक झमेले में पड़ना कहां तक उचित है तबतक मेरी श्रीमती जी बोल पडीं -
" अच्छा किये तुम यहां आ कर | नहीं तो तुम्हारे पिता क्रोध में आ कर न जाने क्या कर बैठते | ... चलो हाथ मुंह धो कर खाना कहा लो | "
वह सिर झुकाए श्रीमती जी के पीछे चला |
मैं अपनी खाने की थाली के सामने फिर से बैठ गया |
दुसरे दिन जूलियस का बाप उसे खोजते हुए मेरे घर आया | मैंने उसे प्यार से बैठाया और समझाया |
" देखो ,तुम्हारा बेटा जूलियस पढ़ने लिखने में बहुत तेज है | तुम उसको पढ़ने क्यों नहीं देते ? "
" बाबु ! हम लोगों को तो पेट को खाने को नहीं अंटता है | हम लोग पढ़ लिख कर क्या करेंगे ? हम लोग कितना भी पढ़ लिख लें क्या आप लोग की बराबरी कर सकेंगे ? हम लोग का जन्म ही मिट्टी का काम करने के लिए हुआ है  |"
" ऐसा क्यों सोंचते हो ? वह पुराना जमाना गया | अब सब बराबर हैं | मुझमें और तुममें अंतर ही क्या है ? मेरी तरह तुम भी मनुष्य हो | "
" बाबु जी ! आपके बोलने से क्या होगा ? दुसरे लोग तो हमें नीचा समझते हैं न | "
" किसी के नीच कहने से कोई नीच नहीं हो जाता है | अब तुम खुद सोंचो तुम अपने लड़के को पढ़ने दोगे तो तुम्हारा लड़का पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनेगा | तब दुनिया खुद तुम्हे सम्मान देगी | ये जो लोग तुम्हें देख कर हंसते हैं वे तुम्हें आदर पूर्वक घर में बुला कर बैठाएंगे | फिर तुम्हें कुछ खर्च भी नहीं करना है | अभी तो उसे किताब कापी के लिए सरकार पैसा सरकार देती है | तुम्हारा लड़का कालेज में हास्टल में रहेगा तो सरकार उसे और अधिक पैसा देगी | "
" अच्छा SS ! मुझे इतना नहीं मालूम था | "
" और नहीं तो क्या !...सरकार तुम लोगों  को ऊँचा उठाने के लिए कितना काम करती है | "
" ठीक है बाबू जी ! जब आप कहते हैं तो जुलियस को मैं आपके घर में ही छोड़ दूंगा | आप लोगों की संगति रहेगी तो वह कुछ कर सकेगा | नहीं तो मेरे पास तो वो कुछ न पढ़ सकेगा | "
मैंने सोंचा - अजीब मुसीबत गले पड़ गयी | अपने तो तीन बच्चे वैसे ही मौजूद हैं | अपनों की जिम्मेदारी तो उठाई नहीं जाती अब चौथे को भी गोद ले लूं |
" नहीं उसे अपने पास ही रखो | उसे कुछ पूछना होगा तो आ कर मेरे घर पूछ लिया करेगा | " मैंने कहा |
" वैसे तो आपके घर  ही रहना ठीक था उसका | पर जब आप कहते हैं तो अपने पास ही रखूंगा उसे | "
और वह जूलियस को साथ ले मुझे नमस्कार कर चला गया |
मैंने राहत की सांस ली | सोंचा - यहाँ तो होम करते वक्त भी हाथ जल रहे थे |
उसके बाद से जूलियस के सामने कोई समस्या नहीं आयी |
समय पंख लगा कर उड़ गया |
जुलियस मेट्रिक  फस्ट डिविजन में पास किया |

जूलियस का बाप मेरे पैरों पर माथा रख दिया |
" अरे रे ! यह क्या करते हो | उठो ! उठो ! " मैंने उसे बांह पकड़ कर उठाते हुए कहा |
" नहीं बाबूजी ! अपने मेरी आंखें खोल दी हैं | यह सब आप ही के कारण हुआ है |
जूलियस ने शहर में कालेज में दाखिला ले लिया |
समय बीतता गया | मैं अपने दैनिक कार्यक्रम में इतना व्यस्त हुआ कि जूलियस को भूल गया |

शनिवार का दिन था |
आठवीं कक्षा में मैं हिदी साहित्य पढ़ा रहा था |
" दिनकर का पूरा नाम क्या है ? "मैंने एक लड़के से पूछा |
"......" लड़का चुप |
" हिन्दी साहित्य पढ़ते हो दिनकर का पूरा नाम याद नहीं ! ......." क्रोध में चपत मारने को उठा मेरा हाथ हवा में ही रह गया |
दरवाजे पर एक युवक खड़ा था | चेहरा कुछ परिचित सा लगा |
" सर ! नमस्कार ! ....मुझे पहचाने नहीं ....... मैं हूँ आपका जूलियस | "
" ओह ! जूलियस तुम !
आनंदवेग में मै कक्षा से बाहर निकल आया |
जूलियस बिलकुल बदल गया था | मेरी आंख के सामने उसकी मैली कमीज चिपटी नाक व छोटी छोटी आंख वाला चेहरा कौंध गया |
आज उसकी लम्बी नुकीली मूंछ रोबदार चेहरा उसके बचपन के चेहरे का उपहास कर रहा था |

" सर ! मैं इस जिले का जिलाधीश नियुक्त हुआ हूँ | "
" अच्छा ! " मेरी आंखे आश्चर्य से फ़ैल गयीं | तो अब वो आई० ए० एस० आफिसर बन गया था |
विद्यालय के सभी शिक्षक उसे कौतुहल से देख रहे थे |

विद्यालय की छुट्टी के बाद वह मेरे साथ मेरे घर पैदल ही गया |
" इनसे मिलो हमारे जिलाधीश ..मिस्टर जूलियस | " मैंने अपनी पत्नी से परिचय कराया युवक का |
जूलियस ने बढ़ कर मेरी पत्नी का चरण  स्पर्श किया | आज शिक्षक के रूप में मेरा सीना गर्व से फूल गया था |






           
                                                               

Friday, September 13, 2013

हिन्दी प्रेम

" तुम हिन्दी विषय नहीं ले सकती M.I.L.में | तुम्हारी मातृभाषा ओड़िया है | तुम्हें ओड़िया  कक्षा में ही बैठना होगा | " कक्षा के मुख्य अध्यापक ने कहा |
शिक्षक तैयार ही नहीं थे विनीता को हिन्दी कक्षा में बैठने देने को | 
" नहीं सर !  हिन्दी   में मेरे नम्बर अच्छे आते हैं | मैं हिन्दी विषय ही चुनुंगी | " नवम कक्षा की छात्रा विनीता ने जिद किया | 
नवम कक्षा से ही दो सेक्शन  बन जाता था विद्यालय में - ओड़िया सेक्शन और हिन्दी सेक्शन | हिन्दी सेक्शन में जिन छात्रों की मातृभाषा ओड़िया नहीं है वे बैठते थे और वे हिन्दी विषय ही पढ़ते थे M.I.L. में |
विनीता की जिद विद्यालय के प्रिंसिपल तक पहूंची |
" ठीक है | तुम अपने पिता से आप्लिकेसन  लिखवा कर लाओ कि तुम्हें हिन्दी विषय पढ़ने दिया जाय M.I.L. में | "  प्रिंसिपल ने विनीता को समझाया |

दुसरे दिन विनीता ने विद्यालय विनीता ने पिता के हाथ का लिखा हिन्दी पढने देने के लिए  अनुरोध पत्र    प्रिंसिपल को दे दिया |
अब विनीता हिन्दी सेक्शन में बैठने लगी |


Saturday, September 7, 2013

बाबा ! मुंह खोलिए

" बाबा ! मुंह खोलिए | "  छठी कक्षा में पढ़नेवाली पोती श्रेया ने कहा | उसके बाबा हमेशा घर के बरामदे में लेटे रहते थे आंख बंद कर के | श्रेया की कमाई उसे स्कूल में मिला मुफ्त का नाश्ता था | उसे हर रोज स्कूल में दो केला और चार बिस्कुट मिलते थे | बिस्कुट वो कापी के पन्नों के बीच में रख कर लाती थी अपने दादा के लिए |
" क्या है ? " 
" दादा जी ! बिस्कुट है | मैं आपके लिए स्कूल से लाई हूँ | "
दादा जी मुंह खोल देते थे | उस खुले मूंह में बिस्कुट डालने में उसे बड़ा आनंद आता था |

इस घटना की मिठास बीस वर्ष बाद आज के दिन भी श्रेया के मन  में मौजूद है |

Friday, September 6, 2013

चाभी

" बेटा ! लाकर की चाभी कहां रख कर गये ? " सुनीता देवी परेशान हो कर बोली |
" क्या करोगी लाकर की चाभी ? " फोन से आवाज आयी दिवेश की |
" मुझे दूसरा कान का पहनना है | "

फोन कट गया |

पिता  के गुजर जाने के बाद उसकी अलमारी दिवेश ने ठीक से जमा दिया था | अब आलमारी के लाकर की चाभी जिसमें सुनीता देवी ने अपने जेवर रखे थे मिल ही नहीं रही थी |


खुद खाना बना लो !



दसवीं कक्षा की छात्रा श्वेता ने अपने पिता के कथन को हुबहू कहा मुझसे ...." मैं परेशान हो गया हूँ इस किच किच से ....तुम्हारे लिए खाना नहीं रहता है तो खुद बना लो | " 
राम दास की पहली पत्नी से दो संतानें थी ...एक पुत्र और एक पुत्री | दुसरी पत्नी से दो पुत्र थे | विमाता को श्वेता के विद्यालय की पढ़ाई बिलकुल नहीं सुहाती थी |
मैं अवाक् और निरुत्तर थी उस छात्रा की बात सुन |

Monday, August 26, 2013

नियति से युद्ध

दामाद के गुजर जाने के बाद पिता ने अपने घर में इकलौती बेटी राजश्री को रख लिया |

पिता  की मृत्यु के बाद भाई ने बहन को आउट हाउस में जगह दे दी | घर में रहने से घर के हक की समस्या थी | फिर आउट हाउस तो गैरेज के उपर छोटा सा एक कमरे का मकान था | गैरेज ऐसी जगह बना था जहां कमरा  बनाने का परमिशन ही नहीं था | जब वह गैरेज टूटता तो राजश्री को स्वयं उस कमरे को छोड़ना ही पड़ता | लोगो की निगाह में भी अच्छा बना भाई | वैसे भी महिलाओं की समस्या से निगाह मोड़ने  की सबकी आदत है |
 प्राइवेट संस्थान में कम तनख्वाह थी मुश्किल से चला घर और मान अपमान ताक पर रख के बीमारी आरामी झेलते झेलते अपनी दोनों बेटियों की राजश्री ने देख रेख की  |

" माँ ! मैंने एक मकान देख लिया है | तीन कमरे का मकान है |..हमलोग वहीं शिफ्ट हो जायेंगे |...सम्मान पूर्वक मुहल्ले में तो रहेंगे |...चिंता न करो माँ हम दोनों काम कर रहे हैं |...प्राईवेट नौकरी ही सही | एक की छूटेगी तो दुसरे की तो रहेगी न | "

तीनों प्राणी एक नई जिन्दगी की आशा में उस आउट हाउस को छोड़ दिए |


उस आउट हाउस  में भाई ने नौकरानी के परिवार को जगह दे दी |

Wednesday, August 21, 2013

बड़े लोग

" माँ जी ! हम लोग तो काम न करें तो चले न ...सबेरे उठ कर मेरा आदमी घर का काम करता है ..बच्चों को तैयार कर स्कूल भेज कर ही साढ़े सात बजे अपने काम पर निकलता है ....और मैं उठ कर सबेरे साढ़े पांच बजे से ही सबके घर झाड़ पोंछ और बर्तन धोने के काम में निकल जाती हूँ ....रात में मेरा आदमी सिलाई का काम करता है और मैं खाना बनाती हूँ अपने घर में .. " शनिवारी अपने रौ में बोलती जा रही थी और डस्टिंग करती जा रही थी | मिसेज वर्मा उसकी बातें बेमन से पीती जा रही थी |

शनिवारी मिसेज वर्मा का काम मन लगा कर करती थी क्यों कि इस घर में माँ जी उसे अपने जैसा ही दोपहर का खाना  परोस कर देती थी | यहीं खाना खा कर वह आराम करती थी फिर इस घर का काम खतम कर दूसरे  घर में काम करने निकल जाती थी |


शनिवारी भगवान को मन ही मन धन्यवाद देती थी कि उसे मिसेज वर्मा जैसी मालकिन मिली |

Monday, August 19, 2013

सद्भावना

" बढाओ हाथ ! " हंस कर सोना ने कहा आफिस में आये अपने नए  अपने सहकर्मी से |

कुछ दिन पहले बात बात में इस नये सहकर्मी ने उसे बताया था कि वह अपनी माता पिता की इकलौती सन्तान है |

" भला क्यों ? "
" बढाओ तो सही ! "
और सोना ने अपने नए सहकर्मी की कलाई में राखी बांध दी |
" क्या दूं तुम्हें !...जो बोलोगी वो दूंगा | "

" ढेर सारी सद्भावना | " हंस कर कहा सोना ने |

Sunday, August 18, 2013

रिश्ता भाई का

" मैं भी एक कमरे में रहती हूँ | " उसकी सहकर्मी लड़की माया ने कहा |
एक वर्ष पहले उसकी माँ ने फांसी लगा ली थी और कुछ महीने पश्चात उसके पिता का देहांत हार्ट अटैक से हो गया था |
" तुम अलग खाना बनाती हो ? " आश्चर्य से वह पूछ बैठी |
" और क्या ! मैं तो अपने कमरे का भाड़ा भी भाभी को देती हूँ | पास में अपने लोग रहने से सुरक्षा रहती है | "

माया का समझदार उत्तर पा कर चुप रह गयी वह |

पिता की निशानी है मकान

एक मकान दावेदार पांच - दो बेटे व तीन बेटी थे | मकान के पाँचों हकदार थे |

माता पिता की मृत्यु के पश्चात एक पुत्र चाहता था कि मकान बिक जाए व पैसे मिल जायें | यह वही कमाऊ पुत्र था जो अपनी मनमर्जी से एक कमाऊ लड़की से विवाह कर माता पिता से लड़ लिया और  घर कभी नहीं लौटा था | हां पिता की मृत्यु पर वह सपरिवार आया था पर माता की मृत्यु पर अकेले |

" हम मकान नहीं बेचेंगे | यह हमारे माता पिता की निशानी है | " चारों भाई बहन बोल पड़े |
चारों  ने मिल कर अदालत में केस ठोंक दिया पांचवें के विरुद्ध |
" कोर्ट करेगी न फैसला ! " अब पांचों निश्चिन्त हैं |


पांचों अलग अलग शहर में रहते हैं और तारीखें पड़ती रहती रहती हैं कोर्ट की |

Saturday, August 17, 2013

पुस्तकीय ज्ञान ( लोक कथा )

एक गाँव में चार मित्र रहते थे | तीन मित्र विद्या ग्रहण करने गुरुकुल में चले गये | चौथा मित्र गाँव में ही रह गया |
कुछ वर्ष पश्चात् वे विद्या अध्ययन कर गाँव लौटे | चरों मित्र खूब घूमे कुछ दिन साथ रहे | एक दिन उन्होंने सोंचा कि हमे अपनी विद्या का उपयोग कर धन कमाने शहर जाना चाहिए | चौथा मित्र कहने लगा कि वह भी उनके साथ जाएगा | पर तीनो मित्र मना करने लगे | उनका कहना था कि चूंकि वे विद्या ग्रहण किये हैं तो वे कमाएंगे अब चौथा मित्र जो अनपढ़ है वह कैसे उनके साथ जा सकता है |

चौथा मित्र दुखी हो गया | अपने मित्र को दुखी देख तीनों मित्रों ने उसे भी साथ ले लिया | गमछे में चना और गुड़ बांध कर वे चले | कुछ दूर चलने के बाद  रास्ते में एक जंगल पड़ा | चारों मित्र एक पेड़ के नीचे आराम करने लगे | एक एक उनकी निगाह अस्थि समूह पर पड़ी |
" अरे ! ये तो बाघ की हड्डियाँ लगती हैं | " चौथे मित्र ने कहा
" मुझे हड्डियां जोड़नी आती हैं | " पहले मित्र ने ज्ञान बघारा | और उसने हड्डियाँ जोड़ दीं |
" मुझे हड्डियों पर मांस पेशी चढ़ाना आता है | " दुसरे मित्र ने भी अपने ज्ञान का परिचय दिया | और उसने उस हड्डी के ढांचे पर मांस पेशी चढ़ा दी |
अब सामने एक बाघ की मूर्ति खड़ी थी |
" अरे ! मुझे तो प्राण डालना आता है | " तीसरे मित्र ने अपने ज्ञान की प्रशंसा की |
चौथे मित्र ने तीसरे मित्र को बाघ में जान डालने से मना किया पर तीसरे मित्र ने चौथे की बात न मानी  | वह भी अपना कौशल दिखा चाहता था |
" अरे ! भई ! तब तो मुझे अब पेड़ पर चढ़ जाने दो | कहीं सचमुच यह जिन्दा हो जायेगा तो मुझे खा जायेगा | "  चौथे मित्र ने परेशान हो कर कहा | अपन्रे  मित्र की नादानी पर तीनों मित्र हंस पड़े |
चौथा मित्र पेड़ पर चढ़ गया |
जैसे ही तीसरे  मित्र जान डाली बाघ में , बाघ ने एक  दहाड़ मारी और तीनों को खा गया |

 जब बाघ चला गया तब चौथा मित्र गाँव  चुपचाप गाँव लौट आया |

Friday, August 16, 2013

शहर में अनुशासन

" मैडम ! हमारे पास लाइसेंस है .. हेलमेट है फिर भी पुलिस गेट पर हमें पकड़ रही है | हमारी गाड़ी की  चाभी ले ली है | "
छात्र प्रिंसिपल  के आफिस में घुस गए |
" जाओ शर्मा सर को कम्पलेन करो | " परेशान प्रिंसिपल ने कहा |

हर विद्यालय के सामने पुलिस जा कर छात्र सुधार  कर रही थी |

छात्रों के चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थी |  प्रिंसिपल और टीचर परेशान थे |


बच्चों को टाईट करने से माता पिता  बौखला रहे थे  |

छात्र सदा दिल के सच्चे

" टीचर ! गुड इवनिंग | "
सड़क से स्कूटी से गुजरते हुए एक आवाज गूंजी | भीड़ भाड़ वाली सड़क पर ड्राइव करते समय अगल बगल देखना उसे संभव नहीं था |
" टीचर ....विमल  कुमार !.. "

आवाज देनेवाले ने अपना परिचय भी दे दिया |...ओह ! तो वह आठवीं कक्षा का छात्र था |

प्रश्न पत्र ले जाओ

रमेश के नाम से सभी शिक्षकों को शिकायत थी | सब शिक्षक परेशान थे |
नये शिक्षक की आज जिस कक्षा में परीक्षक के रूप में ड्यूटी पड़ी थी उसमें रमेश मौजूद था | विद्यालय में प्रश्न पत्र बाँटने का एक अलग ही नियम  था | एक कक्षा का नाम बोला जाता था और सभी छात्र खड़े हो जाते थे | हर बेंच की पंक्ति के प्रथम छात्र को खड़े छात्रों की संख्या गिन कर प्रश्न पत्र दे दिया जाता था और वह छात्र अपने पीछे के छात्र को प्रश्नपत्र दे देता था | इस प्रकार कम समय में प्रश्नपत्र बंट जाता था |
रमेश खड़ा ही नहीं हुआ | फलस्वरूप उसे प्रश्न पत्र मिला ही नहीं | सब छात्र उत्तरपुस्तिका में लिखना शुरू कर दिए |
अब बौखलाने की बारी रमेश की थी |
वह तुरंत खड़ा हुआ |.... " टीचर ! मुझे प्रश्न पत्र नहीं मिला | "

" तुम खड़े नही हुए थे होगे ? .... कोई बात नहीं प्रश्न पत्र  टेबल से ले जाओ | "

निचले तबके का मातृत्व

" तू मेरी बेटी से लड़ती है ?...वो तेरी सौत है ?....तेरी गोतिन है ?.... ओ ....( एक गाली निकली मुंह से  ).... " लच्छेदार गलियां निकल रही थी उस अधेड़ कामवाली  के मुंह से |
उस कामवाली की बेटी लाजो चार बच्चों की माँ थी | लाजो ने कम पैसों में एक घर का काम पकड़ लिया था |
लाजो से उसी मोहल्ले की दूसरी कामवाली रीता लड़ पड़ी थी | रीता  को भी उसी नये किरायेदार के घर में काम पकड़ना था | लाजो घबरा कर अपने घर लौट पड़ी थी | लाजो  झगड़ कर काम पकड़े रहने की अपेक्षा काम न करना बेहतर समझी थी |

आखिर गृहणी को आकर समस्या सुलझाना पड़ा |

शिक्षक - गाँव का

" भूत ! भूत !... " पेड़ के नीचे पढ़ते बच्चे चिल्लाये |
" क्या हुआ ? " अंग्रेजी के अध्यापक ने  हकबका कर बच्चों का मुंह देखते हुए पूछा  |
बच्चे चुप |
" गुरू जी ! आप एक महीने से विद्यालय नहीं आये थे तो सब बोल रहे थे कि आप मर गये हैं | " एक बच्चे न हिम्मत कर के कहा |
यह कथा आज से सत्तर वर्ष पुरानी है | अध्यापक महोदय अपने गाँव लौटने के लिए रात भर चले थे | रात के अँधेरे में वे एकाएक डर गये थे | इसी लिए बीमार पड़ गए थे |

" अरे नहीं ! मैं बीमार था | " 

Friday, August 9, 2013

बेटा - कामवाली का

बगल घर में एक नयी कामवाली दो दिन से काम करने आ रही थी | वह देखने में  शांत सी लगती थी |
आज उसके साथ एक सुंदर सा लड़का साईकिल चलाते चलाते आया | इस मोहल्ले में मालिक के बच्चे प्राय: नौकरों के साथ घूमते दिखते थे |
" ये किसका लड़का है | " सुरभि उत्सुकता से पूछ बैठी |

" मेरा बेटा है माँ जी !..अंग्रेजी स्कूल में एक क्लास में पढ़ता है | "

भगवान गंदे हैं

" दीदी ! मेरे क्लास का लड़का एक्सीडेंट में मर गया | " दुखी हो चतुर्थ कक्षा की निधि ने कहा |
" निधि ! ...ऐसा है न ...भगवान जिसे बहुत प्यार करते हैं उसे अपने पास बुला लेते हैं | "

" तब तो भगवान गंदे हैं ... वे पैदा ही क्यों करते हैं | "

मोमबत्ती में पढ़ती आकृति

 बिजली चले जाने पर उस  छोटे से घर की खिड़की से झांकती मोमबती की रोशनी में टेबल पर झुकी आकृति ने सरिता के मन में सदा एक उत्सुकता बनायी रखी |
इसका भी एक कारण था बगल में उस युवा के चाचा का विशाल मकान था जो कि अँधेरे में भी जनेरेटर की रोशनी से जगमगाया रहता था |
कैसे लोग रहते हैं ? काश उस लड़के को बरामदे में ही पढ़ने की जगह दे देते |....वह सोंचती थी
शहर छूटा पर वह खिड़की वाली आकृति याद रही |
चार वर्ष पश्चात् सरिता ने  एक पुराने परिचित से उस  युवा  के बारे में पूछा |
" अरे  भाभी ! वो तो आई ० ए ० एस ० बन गया है | "
सरिता की आंखें सजल हो उठीं | 

वह आकृति  सदा उसकी आंखो में बसी रही | 

बहन एक बोझ है

संस्कृत की अध्यापिका श्रीमती श्रीनिवासन दक्षिण भारतीय का बेटा भी मां के ही विद्यालय में छठी कक्षा में पढ़ता था |
सुना था सहकर्मियों से उनके घर जाओ तो वह होटल से मंगा कर सबको नाश्ता कराती है | वह भाई भाभी के साथ रहती है | भाई भाभी जब खा कर कमरे में चले जाते हैं तब अपना खाना निकाल कर बेटे के साथ खाती है |
" आप के पति कब एक्सपायर हुए ? " वह ससंकोच पूछ बैठी उस संस्कृत की अध्यापिका से एक दिन कामन रूम खाली पा कर |  उसने सहज ढंग से उसने उत्तर दिया |
" दीदी ! मेरे पति रेलवे में काम करते थे |शादी के एक माह बाद ही एक्सीडेंट हो गया मेरे पति का | मेरे पिता ससुराल से मुझे लाकर अपने पास रख लिए | जिस घर में मैं रहती हूँ उसे मेरे पिता ने मेरे और मेरे भाई के नाम कर दिया था | पर कौन पूछता है बहन को ? मेरा बेटा बड़ा हो जायेगा तब मैं अपने लिए एक अलग घर खरीद लूंगी | "

तीन वर्ष बाद उस शहर को छोड़ कर चली गयी वह |
दस वर्ष बाद एक दिन उस संस्कृत की अध्यापिका की खबर मिली |

उस शिक्षिका ने जमीन खरीद कर अपना घर बनवा लिया है और उसका बेटा कालेज में पढ़ रहा है |

Monday, August 5, 2013

बहन की देखभाल

सुनीता के बगल के बेड पर सिस्टर एक तीस पैंतीस वर्ष की आदिवासी पेशेंट को लेटने कह कर चली गयी | 
पूछने पर पता चला उस पेशेंट का गायिनिक का आपरेशन है | वह परिवार चालीस किलोमीटर दूर से आया था | वह पेशेंट अविवाहित थी | भाई के साथ रहती थी इसलिए  उसे कम्पनी के अस्पताल में फ्री मेडिकल फैसिलिटी थी |
भाई अपनी पत्नी को बहन के पास छोड़ कर बोला .... अभी आता हूँ ....और चला गया | दुसरे दिन भी न लौटा |
दुसरे दिन उस पेशेंट का आपरेशन भी हो गया |
बेहोश पेशंट को वापस बेड पर ला कर सुला दिया गया | हाथ में सैलायिन बोतल लगा था |
ननद को तो खाना नहीं चाहिए था | भाभी हास्पिटल से खाना ले कर खा  ले रही थी | अपने दस वर्षीय बच्चे के साथ जमीन पर सो जाती थी |

सुनीता आश्चर्य से देख रही थी किस तरह भाई अपनी पत्नी को अपनी बहन की देखभाल के लिए छोड़ गया था |

Sunday, August 4, 2013

मित्रता

" मैंने मित्रता कर ली है अपने भूत से | " श्रेया ने हंस कर कहा |

" वो भला कैसे ? "

" अरे ! छोटी सी बात है ...मैं अपने घर में सदा एक बुजुर्ग रिश्तेदार रखी रहती हूँ | "

मांग सूनी है भई !

स्निग्धा चार बच्चों की माँ थी ... तीन बेटी और एक बेटा |
पति महोदय दस वर्ष पहले ही कहीं चले गये थे | और किसी ने खोजा भी नहीं था उन्हें |
स्निग्धा  नौकरी कर के अपने चारों बच्चों का लालन पालन कर रही थी | वह काम पर जाते वक्त साधारण कपड़े पहनती थी | उसके चेहरे पर इतनी गरिमा रहती थी कि कोई उससे व्यक्तिगत प्रश्न पूछ ही नहीं पाता था |
भाई का विवाह तय हुआ | विवाह में बरती बन कर जाना था उसे |
सज धज कर जब निकली वह अपने बच्चों के साथ |
" अरे ! मांग सूनी है बिटिया की .. सिन्दूर लगा दो भई !..." चाची ने कहा और लपक के स्निग्धा की मांग में सिन्दूर लगा दी |

चेहरा दमक गया स्निग्धा का पर  मन भींग गया |

लड़की की लड़ाई

" हमें कुछ नहीं चाहिए ...केवल लड़की चाहिए | " मंडप में समधी का ये वाक्य सुनते ही पिता ने एक सूटकेस कपड़े के साथ विदा कर दिया बेटी |
पति निकम्मा ,सास ससुर मौन ,जेठ जेठानी शेर | कुछ ही दिनों बाद लड़ाई झगड़ा के बाद  हाथ भी चलने लगा जेठ का | पोस्टमैन पिता की बेटी  सुरुची बिलबिला उठी | मैके गयी तो वापस लौटने का नाम न ली |
कुछ माह पश्चात ससुर विदा कराने गए बहु तो सुरुची दौड़ पड़ी गंगा की ओर डूबने |
" बिटिया नहीं जाना चाहती तो मैं क्या करूं | " दुखी मन से बोले लड़की के पिता |
किसी तरह हाथ जोड़ कर विदा किया सुरुचि के पिता ने शहरी समधी को |

सुरुचि के पति को तो कोई लड़की न मिली व्याहने को पर एक पुत्र पैदा हुआ सुरुचि को और कालान्तर में सैनिक बन उसने  देश की सेवा की व माँ की शान भी वह  रखा |