एक फकीर था ।
वह प्रतिदिन एक गांव जाता था और वहां के किसी मेहनतकश , ईमानदार और धनी व्यक्ति के घर भोजन करता था ।
इसी क्रम में एक दिन माणिक लाल के घर पहुंचा ।
माणिक लाल ने फकीर को बड़े प्यार से आसन दिया । उसके सामने विभिन्न प्रकार के पकवान परोसा ।
भोजन शुरू करने से पहले फकीर ने माणिक लाल की सम्पत्ति जानने चाही । फिर उसने माणिक लाल पुत्रों के बारे में जानना चाहा ।
माणिक लाल ने कहा -
' अतिथि महोदय ! मेरी संतान है और मेरे पास एक हजार मुद्रायें हैं । '
इतना सुनते ही फकीर आग बबूला हो उठा ।
' नीच ! तू सच बोलता तो क्या मैं तेरा धन ले लेता । सुना है कि तेरे पास अपरम्पार धन सम्पत्ति है । तेरे चार पुत्र हैं । मैं अन्न ग्रहण नहीं कर सकता । ' फकीर कुपित हो कर बोला ।
माणिक लाल ने नम्रता पूर्वक कहा कि महोदय ! आप मेरी बात सुन लें फिर आप मुझे झूठा साबित चाहें तो वह आपकी मर्जी ।
' महोदय ! मेरे चार पुत्र हैं । इनमे से मेरे तीन पुत्र पियक्क्ड़ हैं वे कुछ काम धाम नहीं हैं । जब उनको पैसों की जरूरत पड़ती है वे मुझे याद करते हैं । वे मेरा धन नष्ट कर रहे हैं । इसीलिये उन तीनों पुत्रों को मैं अपनी संतान नहीं मानता ।..... मेरा चौथा पुत्र मेरी दूकान में मेरी सहायता करता है । और मैं हजार की मोहरें दान व धर्म कार्य के लिये रख छोड़ा है । '
यह सुन फकीर प्रसन्न हुआ उसने कहा कि माणिक लाल तू तो मुझसे ज्यादा ज्ञानी है मैं तेरे साथ भोजन ग्रहण करूंगा ।
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