06
November 2014
21:32
-इंदु बाला
सिंह
ड्राईंग
रूम में आज गर्म मुद्दा था श्रीमती शर्मा के पास |
"
आप जो भी कहिये मैंने देखा है कक्षा में
आदिवासी बच्चे बड़ी मेहनत से पढ़ते हैं और दुसरे बच्चे इतनी शैतानी करते हैं कि नाक
में दम हो जाता है | कम नम्बर लाते हैं
वे फेल हो जाते हैं किसी विषय में तो भी उनको कोई चिंता नहीं | उनको लगता है
ट्यूशन पढ़ लेंगे काम चल जायेगा | पास हो ही जायेंगे वे | और तो और बोलते हैं मेरे
पिता कहते हैं कि तू दस क्लास हो जा वही बहुत है | मेरा काम तू सम्हाल लेना | बच्चे
फेल हो जायें तो भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता | बैठा देते हैं उनके दुकान दार पिता
अपनी दुकान में | मैंने कितने भ्चों को देखा है पिता के दूकान में बैठते हुये | वहीं
आदिवासी बच्चे मेहनत से पढ़ते हैं | कालेज में पढ़ने के समय उन्हें स्कालरशिप मिलती
है | नौकरी में उम्र की कन्सेशन , बैंक की प्रतियोगी परीक्षाओं में फ्री कोचिंग , नौकरी
में आरक्षण | और अब तो लडकियों का आरक्षण | अब आप ही बताईये आदिवासी कितनी उन्नति
कर गये हैं | " श्रीमती शर्मा ने अपना अनुभव बांटा |
श्रीमती शर्मा
का बेटे ढेर सारी कोचिंग के बाद भी बैंक में नौकरी नहीं पा सका था | उसकी नौकरी की
उम्र की समय सीमा भी खत्म हो गयी थी |
श्रीमान शर्मा
जी न के बराबर कमाते थे | उनका पैतृक मकान था और उपर का फ्लैट उन लोगों ने किराये पर उठा दिया था | बस घर का
खर्च किसी तरह से चल रहा था | मिसेज शर्मा एक प्राईवेट स्कूल में अध्यापिका थी |
जब तब आ जाती
थीं श्रीमती शर्मा अपने मन की भड़ास निकालने अपने पड़ोस में श्रीमती आहूजा के घर |
वैसे श्रीमती आहूजा एक अच्छी श्रोता भी थी |
श्रीमती आहूजा
को भी अच्छा लगता था अपने पड़ोसन की उपस्थिति क्यों कि उनके पति सुबह का निकले सीधे
रात दस बजे ही आते थे घर में और उनके दोनों बेटे होस्टल में रहते थे |
श्रीमान आहूजा
की कपड़े की दुकान थी जो की खूब चलती थी |
" आप सही
बोल रही हैं पर सोंचिये जो आदिवासी बच्चे गाँव में रहते हैं वे तो कष्ट में हैं न
| " श्रीमती आहूजा ने ज्ञान बघारा |
" अरे
छोड़िये भी | आप अपने बेटे को भेजिये हमारी दूकान में | उसका मन लगा रहेगा | कुछ
काम भी सीख जायेगा | ....चाय बनाती हूं आपके लिये | वैसे मैं चाय का पानी बैठा के
आयी थी | " और श्रीमती आहूजा उठ गयी वही बनाने |
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