Saturday, July 19, 2014

छोटा पथ प्रदर्शक ( लोक कथा )


18 July 2014
09:32
-इंदु बाला सिंह

एक गाँव में ब्रम्ह्दत्त नामक  ब्राम्हण रहता था |

एक बार उसे किसी काम से गांव से बाहर जाना पड़ा |

" माँ अपना ख्याल रखना | मैं चार दिन में वापस आ जाऊँगा | " कह कर ब्रम्ह्दत्त  अपना सामान ट्रंक में रखने लगा |

माँ परेशान हो गयी | बेटा अकेला ही जा रहा था परदेश |

" बेटा तू अकेला ही जा रहा है परदेश | अपने साथ किसी को लेता जा | "

" माँ तू चिंता न कर | रास्ता मेरा पहचाना हुआ है | "

माँ चिंतित हो मन्दिर गयी | इश्वर को माथा नवा कर जब वह मन्दिर से निकली उसने देखा उसके गर पहुँचाने तक पूरा रास्ता उसके आगे एक केकड़ा चल रहा है |

घर के दरवाजे पर पहुंच कर माँ ने उस केकड़े को उठा लिया और अपने बेटे से कहा कि वह इस केकड़े को अपने ट्रंक में रख ले |

बेटा परेशान हो गया |

माँ तुम भी न ... मैं ब्राम्हण हूं | मैंने अपने ट्रंक में पुराण रखा है | मैं आमिष हूं | इस केकड़े को मैं कैसे अपने साथ रख सकता हूं | फिर यह छोटा सा जीव मेरी क्या सहायता करेगा | "

माँ अड़ गयी | मन्दिर से निकलने पर यह केकड़ा मेरे साथ मेरे घर तक आया है | एक प्रकार से इसने मेरी रखवाली की है | ये केकड़ा जरूर तेरी भी रखवाली करेगा | "

ब्रम्ह्दत्त माँ की जिद के आगे झुक गया | उसने एक थैली में केकड़ा रख लिया और गाँव से निकल पड़ा |

राह में जब दोपहर हुयी तब एक पेड़ की छाँव में लेट कर ब्रम्ह्दत्त सुस्ताने लगा |  थका रहने के कारण थोड़ी ही देर में आँख लग गयी |

ब्रम्ह्दत्त जिस पेड़ के नीचे सोया था उसी पेड़ के नीचे एक सांप का बिल था | सांप आमिष की गंध पा अपने बिल से बाहर निकला |

केकड़े ने सांप की उपस्थिति महसूस की और वह अपने थैले से बाहर निकल आया |

केकड़ा समझ गया कि सांप जरूर उसके साथी पुरुष को काटेगा | उसने  तेजी से सांप की गर्दन पकड़ ली  | सांप ऐंठने लगा तड़पने लगा पर केकड़े ने उसकी गर्दन न छोड़ी | आखिर सांप दो टुकड़े हो गया और जमीन खून से सं गयी |

केकड़ा मरे सांप के पास बैठा रहा और अपने पुरुष साथी की रखवाली करता रहा | केकड़े को भय था कि कहीं दूसरा सांप न आ जाय |

ब्रम्हादत्त की नींद खुली तब वह सामने का दृश्य देख कर चौंक गया | पल भर में उसे सारी बात समझ में आ गयी | उसने मन ही मन माँ को धन्यवाद दिया |


साथी केकड़ा को उठा कर ब्रम्हद्त्त ने थैली में रख लिया और आगे चल पड़ा |

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