05
November 2014
22:01
-इंदु बाला
सिंह
स्कूटी
की ' टीईईईई ' आवाज से सोफे पर अधलेटी दादी उठ बैठी | कांच की खिड़की से उसने देखा उसकी पोती अपनी चाभी से
लोहे के गेट में लगा ताला खोल रही है |
दादी ने चैन
की सांस ली |
आज उसकी पोती
के स्कूल में वार्षिकोत्सव था | शहर के ही एक स्कूल में पोती की नौकरी लगी थी और
पोती स्निग्ध के लिये अध्यापिका के रूप में स्कूल का उत्सव देखने का यह पहला अनुभव
था |
सबेरे से ही
पोती चहक रही थी और दादी के कान खाये जा रही थी |
दादी को उसने
स्कूल का इनविटेशन कार्ड भी दिया था |
" अरी
दादी !..देखो यह कार्ड तुम्हारे लिये है | तुम भी चलो न मजा आयेगा | स्कूल के
बच्चों का प्रोग्राम देखोगी | "
" मैं
नहीं जाउंगी | ..मैं जाउंगी तो घर सूना हो जायेगा | " दादी ने पोती की गाल पर
प्यार भरी चपत लगाते हुये कहा |
" अरी ओ
दादी ! जब तुम मर जाओगी तब घर का कौन पहरा देगा ? " पोती ने दादी को छेड़ा |
" तू
चिंता न कर .. मैं तेरे ब्याह से पहले नहीं मरने वाली ...तेरे बाप-माँ ने इतनी बड़ी
जिम्मेदारी छोडी है मुझ पर | वो दोनों तो विदेश में पढाई कर रहे हैं | ये भी न
जाने कैसी पढ़ाई है बुढौती तक चलती रहती है | "
' अब शुरू न
हो जाओ मेरी प्यारी प्यारी दादी | " दादी एक बार शुरू हो जाती थी तो बस बोलती
रहती थी | सबकी दादी अपनी बहुओं को कोसती थी पर उसकी दादी का डंडा तो बस अपने दिन
रात अपने बेटे का नाम ले कर अपने भाग्य को कोसती रहती थी |
और स्निग्धा
भी उच्च शिक्षा के लिये विदेश जाना चाहती थी पर उसके पापा की सख्त मनाही थी उसे |
पापा कहते थे जब मैं आऊंगा इण्डिया तब तुम जाना बाहर |
इतने विशाल
मकान में कुल दो महिलायें एक दुसरे का सहारा थीं
|
पोती ने
स्कूटी अंदर रख कर फिर से ताला लगा दिया |
मकान में दिन
भर ताला लगा रहता था | गैरेज में दादी की
कार थी जिसे स्निग्धा निकालती थी कभी कभी |
वैसे पोती और
दादी हर इतवार जरूर बाहर जाते थे घुमने |
और दादी रोड
खाली हो तब स्टीयरिंग पकड़ लेती थी कर का और खुद कार ड्राईव करती थी |
पोती के
कालिंग बेल बजाने से पहले ही दादी ने ड्राइंग रूम का दरवाजा खोल दिया |
झोंके की तरह
घुसी पोती अंदर |
" बड़ा
मजा आया दादी ! जो आई० जी० बुलाया गया था न हमारे स्कूल में चीफ गेस्ट के रूप में
,वे कितने यंग और स्मार्ट हैं और उनकी वाईफ !.. कितनी सुंदर है | उन लोगों ने पूरा
प्रोग्राम देखा हमारे स्कूल का | " ड्राइंग रूम में टेबल पर अपना पर्स फेंकते
हुये कहा स्निग्धा ने |
" और
जानती हो दादी ! मेरी ड्यूटी रिसेप्शन की थी | मैं तो प्रोग्राम देख ही नहीं सकी |
"
" अच्छा
चल रात के दस बज गये हैं खाना खायेंगे | " डाईनिंग टेबल पर रखे हॉट केस खोलने
लगी थी दादी |
" जानती
हो दादी ! अंधेरे में लड़के लडकियां दूर
चले जा रहे थे स्कूल के मैदान में | हमारा प्रोग्राम तो हाल में हो रहा था | हमारे
स्कूल के स्पोर्ट्स सर हाथ में हाकी स्टिक ले कर घूम रहे थे मैदान में | "
हाथ धो कर डाईंग टेबल पर बैठते समय भी
स्निग्धा का उत्साह कम न हुआ था |
पोती बोलती जा
रही थी टेबल पर प्लेट में सब्जियां परोसती जा रही थी और दादी सोंच रही थी - कल तक
कालेज में पढनेवाली पोती आज कितनी समझदारी की बातें कर रही है |