Monday, December 29, 2014

गैस का मूल्य ज्यादा देना पड़ेगा


30 December 2014
09:23
-इंदु बाला सिंह

' हां हां ...हम सब समझते हैं ....गैस को बैंक से लिंक कर रहे हैं .....हम खान से लायेंगे इतना रुपया ..अरे एक बार तो देना पड़ेगा रुपया ....और ..अब लाये हैं जन धन योजना बी० पी० एल० कार्ड वालों के लिये ...' बैंक में भाषण मारने लगी एक मजदूरनी .....' मुझे बना दें मंत्री मैं सब ठीक कर दूंगी ... '

बैंक में पैसा जमा करने आयी उस मजदूरनी की साथिन उसे चुप कराने लगीं |


इतना आक्रोश ! आखिर कोई जरूर उसे ये बातें अपने भाषण में सुनाया होगा तभी इतनी बड़ी बात कह  गयी मजदूरनी |

बहु के हाथ का खाना


29 December 2014
22:34
-इंदु बाला सिंह

' इतने साल बाद बहु आयी है विदेश से | आज शाम को आप अपनी बहु के हाथ का खाना खाईये | मेरे हाथ का खाना तो आप रोज खाती हैं | ' कामवाली ने सासू माँ से कहा |


शाम को बहु के सर में दर्द था इसलिये सासू माँ को कामवाली के हाथ का ही पकाया खाना पड़ा |

Sunday, December 28, 2014

सड़क सफाई !


29 December 2014
08:14
-इंदु बाला सिंह

' अरे कहां चलीं सुबह !  सुबह ! '

' कहा तो था परसों सोमवार को स्वच्छ भारत अभियान में जाना है | '

पति महोदय फिर से अखबार पढ़ने लगे | नौ बज चुके थे इसलिये अखबार आ चूका था | वैसे वे आफिस के लिये पूरी तरह से सूटेड बूटेड थे | दरवाजा खोल बंद की चिंता न थी क्यों कि दोनों के पास डुप्लीकेट चाभी थी |
कांजीवरम सड़ी में वे नहा धो कर चमक रहीं थीं |
फोटो भी तो खिंचेगी | अखबार में छपेगी |
चौक पर मिसेज शर्मा ने अपने नौकर को दस झाड़ू के साथ आठ बजे से ही खड़े रहने को कहा था |

कार स्टार्ट हुयी पत्नी महोदया जा चुकीं थीं |

Thursday, December 18, 2014

स्कूल में क्यों मारे बच्चों को ?


18 December 2014
20:28
-इंदु बाला सिंह


' टीचर ! पेशावर में स्कूल में बच्चों को क्यों मारे ? ' छठी कक्षा की रेशमा ने सकूल के रेसेस में पूछा मिस देशपांडे  से |

' पता नहीं | मैं टी० वी० देखती नहीं | ' मिसेज देशपांडे ने बात टाली | अब बच्चों से क्या बोलती वो |

' टीचर ! मेरी माँ कहती है कि वो लोग चाहते थे बच्चे न पढ़ें | मलाला कहती है पढ़ने को | और बच्चे पढ़ना चाहते थे | इसीलिये वे लोग मारे | ' रेशमा ने टीचर को जानकारी दी |


टीचर ने चैन की सांस ली | बच्ची की जिज्ञासा शांत हो चुकी थी |

Friday, December 12, 2014

गणित समझ ही नहीं आता टीचर


12 December 2014
14:58

-इंदु बाला सिंह


' कितना बोल रही हूं तुमको समझ नहीं आ रहा है |...इधर मैं ब्लैकबोर्ड पर प्रश्न हल कर के समझा रही हूं उधर तुम खाली बात करते जा रहे हो .... तुम सोंचते हो मुझे पता नहीं चलता है ...हां ..हां ...तुम नीलेश ... निकलो क्लास से बाहर ... ' सुलभा ब्लैकबोर्ड पर गणित हल करना बंद कर के चीखी |

पूरी कक्षा चुप | नीलेश अपनी स्थान से टस से मस न हुआ |

सुलभा का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया |

' तुम निकलते हो कि आऊं मैं ! '

धमकी सुन कर नीलेश तनतना कर उठा और कक्षा के बाहर जा कर धड़ से कक्षा का दरवाजा बंद कर के कुंडा लगा दिया | कुढ़ गयी सुलभा पर अनसुनी व अनदेखी कर ब्लैकबोर्ड पर गणित का हल करने लगी |

सिरदर्द था उसके लिये यह नवम क्लास | वैसे जब से पिटाई की मनाही हो गयी थी हर कक्षा के छात्र उदंड हो गये थे | स्कूल में घुसो तो छात्रों को अनुशासन में रखना और उन्हें पढ़ाना रोज का एक युद्ध ही था उसके लिये | केवल सुलभा ही नहीं हर शिक्षक इस समस्या से पीड़ित था |

प्रिंसिपल के पास गयी  नीता  ने   क्लास के  दरवाजे का कुंडा खोल कर ज्यों ही   कक्षा में प्रवेश करने की अनुमति मांगी भन्नाती हुयी सुलभा बाहर निकली दरवाजे से -

' नीता ! अंदर जाओ तुम | ' आदेश दिया उसने और पलटी नीलेश की ओर-

' नीलेश ! तुमने दरवाजे का कुंडा लगा दिया था ! '

' नहीं टीचर | '

' झूठ बोलते हो ! '

' गणित में तो तुम दस से भी कम नम्बर लाते हो  तुम फिजिक्स में भी कम नम्बर लाते हो ..कैसे पास करोगे तुम !.... लगाऊं फोन तुम्हारे पापा को ! '

तीर काम कर गया |

डर गया नीलेश |

' अरे ! नहीं टीचर ...माफ़ कर दीजिये ...और कभी नहीं करूंगा .... क्या करूं टीचर ! गणित समझ में ही नहीं आता टीचर .... ' घिघियाने लगा नीलेश और सुलभा खूब समझ रही थे यह नौटंकी |

गणित हिस्ट्री तो था नहीं कि रट ले कोई और पास कर ले | निचली कक्षा में कमजोर तो बड़ी मेहनत करनी पड़ती है उपरी कक्षा में | फिर आजकल बच्चे , न तो शिक्षक से डरते हैं और न ही स्कूल के प्रिंसिपल से डरते हैं . वे खाली अपने पापा से डरते हैं | यह बात सुलभा अनुभव कर चुकी थी | आखिर स्कूल का फीस तो पापा ही  देते हैं न |


' अच्छा चलो क्लास में बैठो | ' सुलभा ने नीलेश  को आदेश दिया और वह जानती थी कल फिर कोई नई शैतानी करेगा यह लड़का |

Thursday, December 11, 2014

गैस कंज्यूमर कार्ड का बैंक से कनेक्शन


11 December 2014
15:40

-इंदु बाला सिंह



" जिसके पास आधार कार्ड है वो आधार का फार्म ले और जिसके पास आधार कार्ड नहीं है वह व्यक्ति बैंक वाला फार्म ले - साथ में गैस का फार्म भी मिलेगा | आपको गैस के कंज्यूमर  कार्ड का ज़ेरॉक्स और फार्म भर के बीस तारिख से पहले जमा करना है | "

आदेश था वितरक के काउंटर पर बैठी महिला का |

गैस वितरक के पास से एक व्यक्ति  केवल दो ही फार्म ले सकता था  |

डीलर  महोदय को तो ऐसे मौके पर इम्पोर्टेन्ट काम आ जाता  है , इसलिये उनकी कुर्सी खाली थी |

दूकान के सामने फार्म के लिये लम्बी लाईन लगी थी |

शुचिता कुढ़ कर फार्म के लिये लाईन में लगी थी | एक बार उसने इसी डीलर को अपना सारा फार्म तीन महीने पहले भर के जमा कर दिया था | वितरक द्वारा फार्म प्रप्ति की साईन की हुई रसीद भी उसके पास पड़ी थी | अब फिर से फार्म ले के भरना था उसे |

महिला और पुरुषों के लिये एक ही लाईन थी |

सब ग्राहक खफा थे |

-देखिये ! एक ही लाईन बनवाये हैं महिला और पुरुषों के लिये |

-अरे !........मेरा तो गैस बुकिंग ही नहीं हो पा रही है |

-अरे ! ...बड़ा झमेला है .. इसीलिए तो मैंने इन्डकशन चुल्हा ले लिया है |

-अरे ! ....एक बार तो ले चुके हैं ये लोग फार्म ..फिर से ले रहे  हैं |

-मैं तो छुट्टी ले कर आया हूं फार्म लेने ..मेरा तो जनरल शिफ्ट है न |

-मेरी तो नाईट शिफ्ट थी ..नींद गयी आज की मेरी |

-क्या झमेला है ...अरे ये काउंटर पर बैठी इतनी खचडी हैं कि क्या बताऊं ...बात करने की तमीज नहीं हैं इनके पास ....कोई मर्द होता काउंटर पर तो उठा के पटक देते अभी |

-अब देखिये उसे लौटा दिया ..बोल रही है पासबुक का भी जेराक्स लाओ ... अच्छा दबंगई है ...आगे ही बोलना था न |

-अरे ! ....लिख कर नोटिस में लगाना चाहिये था न |

आधा घंटे लाईन लगाने के बाद शुचिता को गैस के डीलर से फार्म मिला और जमा करते समय दुबारा झेली जानेवाली कठिनाई का अनुभव |

दुसरे दिन जब शुचिता पहुंची गैस वितरक के दूकान तो उसने चिपका देखा एक बड़ा सा नोटिस --" दूकान बंद है आज " |


अब तीसरे दिन भी छुट्टी लेनी पड़ेगी आफिस से शुचिता ने सोंचा |

Sunday, November 30, 2014

समझदार मेढ़क (लोक कथायें )


30 November 2014
20:55
-इंदु बाला सिंह

एक बार एक ग्वाला ने शाम को बाल्टी में दूध दूहा और अपनी दूध से भरी दोनों ही बाल्टी को खटाल में रख के भूल गया |

दो मेढ़क कहीं से कूदते कूदते आये और उन बाल्टियों में गिर पड़े |

पहली  बाल्टी का मेढ़क डर गया | वह सोंचा अभी तो रात है और ग्वाला तो सुबह ही आयेगा | वह तो अब बच नहीं सकता | कुछ घंटों में वह मेढ़क मर गया |


दूसरी बाल्टी का मेढ़क जब गिरा दूध में तो बड़ा परेशान हुआ | उसने सोंचा ग्वाला तो रात में आयेगा नहीं कि उसे दूध से बाहर निकल फेंकेगा | उसने सोंचा कि डरना क्या जब तक है जान तैरता रहुंगा | और रात भर वह मेढ़क अपनी पूरी ताकत लगाकर तैरता रहा | कुछ ही घंटों में दूध से मक्खन निकल आया | अब मेढ़क कूद कर उस मक्खन पर बैठ गया | फिर उसने एक जोरदार छलांग लगायी और वह दूध की बाल्टी के बाहर निकल आया |

Tuesday, November 18, 2014

एक हाथ जमीन


18 November 2014
22:00
-इंदु बाला सिंह
एक गांव में दो भाई थे | अपने पैतृक घर की एक हाथ की जमीन के लिये हर रोज वे लड़ पड़ते थे आपस में | सारा गांव यह तमाशा देखता था |
एक बार दोनों भाईयों में उसी एक हाथ की जमीन के लिये आपस में मार पीट हो गयी | फिर दोनों ने एक दुसरे को अदालत में देख लेने की धमकी दी |

गांववालों ने दोनों भाईयों को समझाया कि वे कोर्ट कचहरी के चक्कर में न पड़े गांव से दूर में एक पहाड़ी गुरूजी रहते हैं | उन दोनों भाईयों को उनके पास जाना चाहिये | वे जरूर उनकी समस्या सुलझा देंगे |

दोनों भाईयों ने सोंचा कि वहीं जा कर एक बार अपनी समस्या का हल खोजा जाय | वैसे उन्होंने भी उस विद्वान् गुरु जी का नाम सुन रखा था |

दुसरे दिन सुबह सुबह दोनों भाई निकल पड़े अपने अपने घर से | गुरूजी के घर पहुंचते पहुंचते दोनों भाई थक चुके थे |

गुरूजी ने दोनों भाईयों से उनकी समस्या सूनी और अपनी पत्नी से एक थाली में दो आदमी का खाना परोस  के लाने को कहा |

गुरुपत्नी जब खाने की थाली और पानी का लोटा रख कर चली गयी तब गुरूजी उठे और दो डंडा ला कर थाली का बगल में रख दिये |

" तुम लोग जो चाहिये उसे ले सकते हो | " गुरूजी ने कहा |

दोनों भाई सारी राह  पैदल चलने के कारण  थक कर चूर चूर थे | उन्होंने सोंचा कि पहले खाना खा लिया जाय फिर फैसला होगा युद्ध कर के |

दोनों भाई जब खाना खा  लिये तब गुरूजी ने कहा कि अब वे दोनों भाई अपने अपने घर जांय क्यों कि समस्या सुलझ गयी  है |

गुरूजी ने अपना डंडा वापस अपने पास रख लिया  |

दोनों भाई कुछ समझ न पाये और लौट गये अपने घर |

दुसरे दिन सुबह  फिर शुरू हो गयी वही पुरानी चिकचिक |

कुछ दिन बाद फिर गये दोनों भाई गये गुरूजी के घर |

" गुरूजी ! हमारी समस्या का तो कोई हल नहीं निकला | आप सोंचिये एक हाथ जमीन के लिये मैं लड़ रहा हूं | कल मैं नहीं रहूंगा | पर आज तो झगड़ा हो रहा है न | " बड़े भाई ने समझाया गुरूजी को |

" हां गुरूजी ! आप खुद सोंचिये हम तो हमेशा जिन्दा नहीं रहेंगे न , पर आज तो लड़ रहें हैं न एक हाथ जमीन के लिये | आप ही हमारी समस्या सुलझायिये | " छोटे भाई ने कहा

दोनों भाईयों का दिमाग ठंडा हो चूका था पर समस्या तो ज्यों की त्यों थी |

गुरूजी ने दोनों भाईयों की बात ध्यान से सूनी फिर कहा - " अरे ! यह कौन सी बड़ी बात है | उस एक हाथ जमीन पर तुम दोनों दीवार खड़ी कर दो | दीवार तो किसी की नहीं रहेगी न | "

दोनों भाईयों को गुरूजी का यह हल भा गया |

वे खुशी खुशी लौट आये | दोनों भाईयों के घर के आंगन में दीवार खड़ी हो गयी पर दोनों भाईयों का आपसी प्रेम बढ़ गया |


अब दोनों भाई खुश थे |

Saturday, November 15, 2014

कूआं का मेढ़क



13 November 2014
17:41

-इंदु बाला सिंह 


एक कूएं में दो मेढ़कों का परिवार रहता था | दोनों रिश्तेदार थे और एक दूसरे से जलते थे | एक दिन एक मेढ़क को चतुराई सूझी | उसने सोंचा क्यों न मैं सांप से दोस्ती कर लूं और उसे अपने कूआं में बुला लूं तो वह मेरे कूएं के रिश्तेदार परिवार को खा लेगा | फिर पूरे कूएं में मेरा परिवार आराम से रहेगा |
बस फिर क्या था वह चतुर मेढ़क फुदक कर निकला कूएं से बाहर और ले के आया एक सांप अपने कूआं में |
धीरे धीरे उस सांप ने एक एक कर के सब मेढ़क निगल लिया सरल मेढ़क के परिवार का |
चतुर मेढ़क ने अब सांप को कुयें से बाहर जाने को कहा पर सांप राजी नहीं हुआ | सांप को आराम से भोजन करने की आदत हो चुकी थी |
अब मेढ़क एक एक कर कर हर रोज चतुर मेढ़क के परिवार के सदस्यों को खाने लगा |
चतुर मेढ़क का पुत्र और पत्नी भी खाए जा चुके थे | अब आनेवाले कल उसी चतुर मेढ़क की बारी थी |
चतुर मेढ़क ने समझाया सांप को कि वह उसे कुयें से बाहर जाने दे | वह जाकर अपने दुसरे रिश्तेदारों को लायेगा |
सांप को चतुर मेढ़क की बात उचित लगी | वह चतुर मेढ़क को कूएं से बाहर निकलने पर मना नहीं किया |
चतुर मेढ़क फुदक कर कुयें से बाहर निकला और कभी नहीं लौटा वापस अपने घर में |

बेटी के पास रहे माँ


10 November 2014
21:53
-इंदु बाला सिंह

" तेरी माँ तेरे साथ रहती है ? " सासु माँ का कामवाली से गप्पें मारना भी एक टाईम पास था |

" हां माँ | " फर्श पर पोचा मारते मारते कामवाली बोली |

" क्यों ? अपने बेटे के पास क्यों नहीं रहती ? "

ये लो अब रूक गया काम |

" अब क्या बोलूं माँ मेरा भाई बोलता है तू तो बेटी की शादी की है इतना खर्चा कर के | रह तू अपनी बेटी के पास | उसकी औरत भी नहीं मानती है मेरी माँ को | कुछ कुछ झूठ सच लगा कर बोलती रहती है भाई को | माँ जाती है भाई के पास कभी कभी मिलने उससे | मेरी माँ भी तो काम करती है घरों में | " फिर शुरू कर दिया कामवाली ने फर्श पर पोचा मारना |


सासु माँ चुप रह गयी |

Friday, November 7, 2014

शिकारी कौवे


07 November 2014
12:54
न जाने क्यों कौए नहीं भाते मुझे |

हमारे घर के सामने एक जामुन का पेड़ था और कौए जामुन चोंच में पकड़ कर हमारी छत की मुंडेर पर बैठ कर खाते थे | पर एक बार में एक ही कौआ बैठता था | दूसरा कौआ आये तो पहला कौआ  उसे अपनी चोंच से मार कर भगा देता था |

कौए का इतना आतंक था छत पर कि किसी भी समय छत पर खड़ा होना खतरनाक था |

एक बार  मैं शाम छ: बजे मुंडेर पर खड़ी थी और नीचे रास्ते में आने जाने वालों को देख रही थी | मन में था कि कौए तो अपने अपने घोंसले में होंगे  और तभी एक कौआ आया और जब तक मैं सम्हलूं सम्हलूं वो मेरे सिर में अपने फूले पेट से धक्का देते हुये उड़ गया | डर कर भागी मैं छत के बीच में | सोंची शुक्र है कौए ने चोंच से नहीं मारा |

छत केवल रात को ही महफूज रहती थी पर कभी कभी उंचाई में उड़ते विशालकाय कौए भी दिखते थे मुझे रात में |

मेरी सहकर्मी ने बताया कि रात में कौए थोड़े न उड़ते हैं | रात में तो चीलें उड़ती हैं | पर मुझे उसकी बात पर कभी विश्वास नहीं हुआ क्योंकि मैंने स्वयं देखा था रात के समय गौरय्या को चीं चीं... कर उड़ते हुये | वह उड़ कर बिजली के तार पर बैठ जाती थी फिर इधर उधर उड़ती रहती थी |

कौए के डर से मैं छत पर छज्जे के नीचे खड़ी रहती थी | अब छत पर कौआ हंकनी की तरह डंडा ले कर खड़ा होना भी सम्भव न था |

एक दिन शाम के चार बजे का समय था और मैं छत पर चली गयी | हमारे बगल की छत पर आकाश में पांच छ: कौओं ने  गोल गोल उड़ कर एक गौरय्या को घेर रखा था  |

अजूबा व नया दृश्य था यह मेरे लिये | देर तक गौरय्या और कौए उड़ते रहे और हवा में उपर नीचे होते रहे | एकाएक एक कौए ने  ऐसी चोंच मारी गौरय्या को कि घायल हो वह गिर पड़ी बगल घर की छत पर | फिर टूट पड़ा उस गिरी चिड़िया पर एक कौआ |

वीभत्स प्राकृतिक दृश्य था |

कुछ साल बाद आंधी में वह जामुन का विशाल वृक्ष गिर पड़ा |


और खुश हुई थी मैं |

Thursday, November 6, 2014

दो पड़ोसिनें


06 November 2014
21:32
-इंदु बाला सिंह

ड्राईंग रूम में आज गर्म मुद्दा था श्रीमती शर्मा के पास |

" आप जो भी कहिये मैंने देखा है कक्षा में आदिवासी बच्चे बड़ी मेहनत से पढ़ते हैं और दुसरे बच्चे इतनी शैतानी करते हैं कि नाक में दम हो जाता है | कम नम्बर लाते हैं वे फेल हो जाते हैं किसी विषय में तो भी उनको कोई चिंता नहीं | उनको लगता है ट्यूशन पढ़ लेंगे काम चल जायेगा | पास हो ही जायेंगे वे | और तो और बोलते हैं मेरे पिता कहते हैं कि तू दस क्लास हो जा वही बहुत है | मेरा काम तू सम्हाल लेना | बच्चे फेल हो जायें तो भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता | बैठा देते हैं उनके दुकान दार पिता अपनी दुकान में | मैंने कितने भ्चों को देखा है पिता के दूकान में बैठते हुये | वहीं आदिवासी बच्चे मेहनत से पढ़ते हैं | कालेज में पढ़ने के समय उन्हें स्कालरशिप मिलती है | नौकरी में उम्र की कन्सेशन , बैंक की प्रतियोगी परीक्षाओं में फ्री कोचिंग , नौकरी में आरक्षण | और अब तो लडकियों का आरक्षण | अब आप ही बताईये आदिवासी कितनी उन्नति कर गये हैं | " श्रीमती शर्मा ने अपना अनुभव बांटा |

श्रीमती शर्मा का बेटे ढेर सारी कोचिंग के बाद भी बैंक में नौकरी नहीं पा सका था | उसकी नौकरी की उम्र की समय सीमा भी खत्म हो गयी थी |

श्रीमान शर्मा जी न के बराबर कमाते थे | उनका पैतृक मकान था और उपर का फ्लैट  उन लोगों ने किराये पर उठा दिया था | बस घर का खर्च किसी तरह से चल रहा था | मिसेज शर्मा एक प्राईवेट स्कूल में अध्यापिका थी |

जब तब आ जाती थीं श्रीमती शर्मा अपने मन की भड़ास निकालने अपने पड़ोस में श्रीमती आहूजा के घर | वैसे श्रीमती आहूजा एक अच्छी श्रोता भी थी |

श्रीमती आहूजा को भी अच्छा लगता था अपने पड़ोसन की उपस्थिति क्यों कि उनके पति सुबह का निकले सीधे रात दस बजे ही आते थे घर में और उनके दोनों बेटे होस्टल में रहते थे |

श्रीमान आहूजा की कपड़े की दुकान थी जो की खूब चलती थी |

" आप सही बोल रही हैं पर सोंचिये जो आदिवासी बच्चे गाँव में रहते हैं वे तो कष्ट में हैं न | " श्रीमती आहूजा ने ज्ञान बघारा |


" अरे छोड़िये भी | आप अपने बेटे को भेजिये हमारी दूकान में | उसका मन लगा रहेगा | कुछ काम भी सीख जायेगा | ....चाय बनाती हूं आपके लिये | वैसे मैं चाय का पानी बैठा के आयी थी | " और श्रीमती आहूजा उठ गयी वही बनाने |

Wednesday, November 5, 2014

पोती समझदार हो गयी थी


05 November 2014
22:01
-इंदु बाला सिंह

स्कूटी की ' टीईईईई ' आवाज से सोफे पर अधलेटी दादी उठ बैठी | कांच की खिड़की से उसने देखा उसकी पोती अपनी चाभी से लोहे के गेट में लगा ताला खोल रही है |

दादी ने चैन की सांस ली |

आज उसकी पोती के स्कूल में वार्षिकोत्सव था | शहर के ही एक स्कूल में पोती की नौकरी लगी थी और पोती स्निग्ध के लिये अध्यापिका के रूप में स्कूल का उत्सव देखने का यह पहला अनुभव था |

सबेरे से ही पोती चहक रही थी  और दादी के कान खाये  जा रही थी |

दादी को उसने स्कूल का इनविटेशन कार्ड भी दिया था |

" अरी दादी !..देखो यह कार्ड तुम्हारे लिये है | तुम भी चलो न मजा आयेगा | स्कूल के बच्चों का प्रोग्राम देखोगी | "

" मैं नहीं जाउंगी | ..मैं जाउंगी तो घर सूना हो जायेगा | " दादी ने पोती की गाल पर प्यार भरी चपत लगाते हुये कहा  |

" अरी ओ दादी ! जब तुम मर जाओगी तब घर का कौन पहरा देगा ? " पोती ने दादी को छेड़ा |

" तू चिंता न कर .. मैं तेरे ब्याह से पहले नहीं मरने वाली ...तेरे बाप-माँ ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी छोडी है मुझ पर | वो दोनों तो विदेश में पढाई कर रहे हैं | ये भी न जाने कैसी पढ़ाई है बुढौती तक चलती रहती है | "

' अब शुरू न हो जाओ मेरी प्यारी प्यारी दादी | " दादी एक बार शुरू हो जाती थी तो बस बोलती रहती थी | सबकी दादी अपनी बहुओं को कोसती थी पर उसकी दादी का डंडा तो बस अपने दिन रात अपने बेटे का नाम ले कर अपने भाग्य को कोसती रहती थी |

और स्निग्धा भी उच्च शिक्षा के लिये विदेश जाना चाहती थी पर उसके पापा की सख्त मनाही थी उसे | पापा कहते थे जब मैं आऊंगा इण्डिया तब तुम जाना बाहर |

इतने विशाल मकान में कुल दो महिलायें एक दुसरे का सहारा थीं  |

पोती ने स्कूटी अंदर रख कर फिर से ताला लगा दिया |

मकान में दिन भर ताला लगा रहता था | गैरेज में  दादी की कार थी जिसे स्निग्धा निकालती थी कभी कभी |

वैसे पोती और दादी हर इतवार जरूर बाहर जाते थे घुमने |

और दादी रोड खाली हो तब स्टीयरिंग पकड़ लेती थी कर का और खुद कार ड्राईव करती थी |

पोती के कालिंग बेल बजाने से पहले ही दादी ने ड्राइंग रूम का दरवाजा खोल दिया |

झोंके की तरह घुसी पोती  अंदर |

" बड़ा मजा आया दादी ! जो आई० जी० बुलाया गया था न हमारे स्कूल में चीफ गेस्ट के रूप में ,वे कितने यंग और स्मार्ट हैं और उनकी वाईफ !.. कितनी सुंदर है | उन लोगों ने पूरा प्रोग्राम देखा हमारे स्कूल का | " ड्राइंग रूम में टेबल पर अपना पर्स फेंकते हुये कहा स्निग्धा  ने |

" और जानती हो दादी ! मेरी ड्यूटी रिसेप्शन की थी | मैं तो प्रोग्राम देख ही नहीं सकी | "

" अच्छा चल रात के दस बज गये हैं खाना खायेंगे | " डाईनिंग टेबल पर रखे हॉट केस खोलने लगी थी दादी |

" जानती हो दादी ! अंधेरे में लड़के लडकियां  दूर चले जा रहे थे स्कूल के मैदान में | हमारा प्रोग्राम तो हाल में हो रहा था | हमारे स्कूल के स्पोर्ट्स सर हाथ में हाकी स्टिक ले कर घूम रहे थे मैदान में | " हाथ धो कर डाईंग टेबल पर बैठते समय  भी स्निग्धा का उत्साह कम न हुआ था |


पोती बोलती जा रही थी टेबल पर प्लेट में सब्जियां परोसती जा रही थी और दादी सोंच रही थी - कल तक कालेज में पढनेवाली पोती आज कितनी समझदारी की बातें कर रही है |

Tuesday, November 4, 2014

हवा का रुख


04 November 2014
06:57
-इंदु बाला सिंह

गैस सिलिंडर देने आये हाकर ने  दरवाजा खुलते ही कहा -

' राधे ! राधे ! '

नमस्कार की जगह यह अप्रत्याशित स्लोगन सुन चौंकी मैं |

' राधे !राधे ! '

उत्तर तो दे दिया मैंने तुम्हारा पर - हवा का यह कैसा रुख हुआ ?


सोंच में पड़ गयी थी मैं  |

Friday, October 31, 2014

टीचर दोस्त नहीं होता


01 November 2014
07:53
-इंदु बाला सिंह

' टीचर ! आपको पता है न ....कल आंवला नवमी है | '

चलते फिरते कैलेंडर  छात्र के उत्साह पर शिक्षिका ने पानी फेर दिया - ' हाँ तो कितने नम्बर मिलेंगे तुम्हें इस बार गणित में '


शिक्षक कभी अच्छा दोस्त नहीं होता परीक्षा के समय पहचानता ही नहीं वह अपने दोस्त छात्र को ........ सोंच कर दुखी हो गया नवम कक्षा का छात्र  |

प्रधानमत्री को गोली लगी


31 October 2014
19:49
-इंदु बाला सिंह

उस दिन अध्यापिका प्रीति ने स्कूल से लौट कर अभी घर में पहला कदम रखा ही था कि उसके पिता ने खा था उससे  - इंदिरा गांधी को किसी ने गोली मार दी है |

दिन के दो बजे यह खबर सुनाई थी उसके पिता ने | हकबका कर उसने अपने पिता का मुंह देखा था | देश के प्रधानमत्री को गोली मारना बहुत बड़ी बात थी | फिर स्कूल बंद हुये | शहरों में दंगे हुये पर उसके शहर में मात्र दो व्यक्ति मरे थे एक बच्चा और एक बूढ़ा ऐसा उसने उड़ती खबर में सुना था पर  यह खबर कितना सच थी  पता नहीं | उसका शहर सदा शांत रहा है |

अखबार रंग गये थे खबरों से , चित्रों से | बस एक दहशत थी माहौल में |

मुहल्ले के एक परिवार ने कुछ दिन पहले ही नयी टी० वी० खरीदी थी |
जिस दिन इंदिरा गांधी का शव दर्शनार्थ रखा गया था दिल्ले में उस दिन उस परिवार का ड्राइंग रूम खुला था दिन भर हर व्यक्ति के लिये खुला था | अनजान व्यक्ति आते थे खड़े खड़े देखते थे अपनी प्रधानमंत्री को और लौट  जाते थे अपने घर |

प्रीति ने भी उस दिन देखा था टी० वी० पर अपनी प्रधान मंत्री को |


जब जब बात होती है इंदिरा गांधी की तब तब प्रीति को अपनी मुहल्ले की महिला याद आ जाती है |

Friday, October 24, 2014

शहर और संस्कार -1


25 October 2014
07:07


लघु लेख 

-इंदु बाला सिंह

ब्राह्मण परिवारों से घिरा एक राजपूत परिवार भी ब्राह्मण सा ही था उस गांव में पर वहां किसी घर में न तो दिवाली की जगमगाहट रहती थी और न दुर्गा पूजा की रौनक | बखरी के सामने खड़ा पीपल का पेड़ भी काट दिया था राजपूत परिवार के एक सदस्य ने | बस था एक दूर स्थित एक सती मैय्या का मन्दिर जहां घर के जन्मे बेटों का मुंडन संस्कार जरूरी था | खर ज्युतिया का उपवास जरूर होता था |  शायद हमारा गांव गरीब था और वह राजपूत परिवार उससे भी ज्यादा गरीब क्योंकि उस परिवार में उपवास के समय फलाहार या उपवास के बाद भी पूड़ी छानने पर घर की महिलाओं को गालियां पडतीं थीं | संस्कार के बीज तो शहरों में लगते हैं | आरक्षण तो शहरों में है | गांव तो खेत और रूपये पहचानता है |

पर जय हो शहर का जिसने सिखाया हमें त्यौहार मनाना | हममें संस्कार की नींव डाली |

Sunday, October 19, 2014

पांच सौ का नोट


16 October 2014
16:20
-इंदु बाला सिंह


" मैडम ! मेरा रुपया चोरी हो गया है | " दसवीं कक्षा के रूपेश ने मिस श्वेता से शिकायत की |

" कैसे ? "

" मैडम ! मैंने पेंसिल वाले बैग में डाल कर अपने स्कूल बैग में रखा था उसे | हमारा स्मार्ट क्लास था | वापस आया तो देखा कि रुपया नहीं है  | "

" मैडम ! मेरा पांच सौ का नोट था | " रूपेश की सुरत रुआंसी हो गयी थी |

" ठीक है | अगला पीरियड मेरा ही है | मैं पूछूंगी क्लास में | "

और जब मिस श्वेता ने रूपेश के पाच सौ के नोट की चोरी के बारे में छात्रों से पूछा तब सभी छात्र  मुकर गये |

हार कर  पॉकेट की तलाशी हुयी लड़के लडकियों की |

सबके स्कूल बैग की भी तलाशी हुयी पर पाच सौ के नोट को तो ऐसा लग रहा था मानो कोई निगल गया हो |

" रूपेश ! तुम ऑफिस के कैमरे में नहीं चेक किये ? " परेशान हो कर मिस श्वेता ने पूछा |

" मैडम मैं गया था | मुझे आफिस में बोले कि जा के अपनी क्लास टीचर से बोलो | "

" ओ ० के ०  | तुम रेसेस में जाना आफिस और बोलना कि मिस श्वेता ने भेजा है | "

पूरे स्कूल व क्लास में कैमरा लगा था और कैमरे की आँख से बच पाना मुश्किल था चोर का |



रेसेस खत्म होने पर आया रूपेश |

" मैडम ! मेरे रूपये वीरेन्द्र ने चुराए हैं | मैंने देखा है कैमरे में |

वह क्लास में घुसा | मेरे डेस्क के पास गया | मेरा स्कूल बैग खोला | फिर उसने मेरा पेंसिल वाला बैग भी खोला | उसने पेन्सिल बैग से कुछ निकाला  और  उस चीज को नीचे गिरा दिया | फिर स्कूल बैग बंद कर के वह नीचे झूका | उसके बाद वह क्लास से बाहर निकल गया | .. मैडम ! जरूर उसने अपने जूते में छुपा लिया होगा | "

रूपेश ने कैमरे में दिखते दृश्य का वर्णन किया |

" मैडम ! बुलाऊं वीरेन्द्र को ? "

" ठीक है बुलाओ | " मिस श्वेता ने कहा |

तीन मिनट बाद वीरेन्द्र मिस श्वेता के सामने खड़ा था |

" वीरेन्द्र ! तुमने रूपेश के रूपये चुराए हैं ? " गरजी मिस श्वेता |

" नहीं मिस | " वीरेन्द्र तुरंत मुकर गया |

" अपने जूते उतारो | " फिर गरजी मिस श्वेता |

वीरेन्द्र ने बांये पैर का जूता-मोजा उतर दिया और खड़ा हो गया |

" दुसरे पैर का भी उतारो | " फिर गरजी मिस श्वेता |

अब बचने का चारा नहीं था वीरन्द्र के पास |

" हां मैडम , मैंने लिए थे रूपये | " मिमियाते हुये कहा वीरेन्द्र ने  और झुक कर वह अपने दायें पैर के जूते से पांच सौ का नोट निकाल कर पकड़ा दिया मैडम को |

" मैडम ! मेरे रूपये मिल गये | मत सजा दीजियेगा वीरेन्द्र को " रूपये मिलते ही रूपेश ने कहा |

मिस श्वेता ने रूपेश की बात अनसुनी कर दी |

" वीरेन्द्र ! मुझे मालूम है तुम्हारे पिता अच्छी नौकरी करते हैं ..फिर भी तुमने रूपये चुराये ... आखिर क्यों ? " नम्र स्वर में मिस श्वेता ने पूछा वीरेन्द्र से |

वीरेन्द्र चुपचाप खड़ा रहा | उसकी चोरी पकड़ी गयी थी | वह अपराधी था मैडम के सामने |

" क्या तुम जानते हो अब कुछ भी चोरी होगा तो क्लास में तुम्हारे मित्र कहेंगे कि वीरेन्द्र ने ही चुराये हैं | " फिर मिस श्वेता ने प्रश्न किया वीरेन्द्र से |

वीरेन्द्र की तो जबान तालू से चिपक गयी थी |

" अच्छा जाओ और कभी मत चुराना किसी का कुछ | "

" जी मैडम | "

और दोनों छात्र निकल गये स्टाफ रूम से |

मिस श्वेता ने सोंचा कि अगर कैमरे  में चोर न दिखता तो क्या होता |


सामने कापी का बंडल इन्तजार कर रहा था चेकिंग के लिये मिस श्वेता का अतः उन्होंने अपनी लाल कलम अपने पर्स से निकाल ली  |

ये० टी० एम० से पेमेंट


07 October 2014
15:35
-इंदु बाला सिंह

' घर का भाड़ा स्कूल और ट्यूशन फीस मेरे पेमेंट से चलता है .... अरे ! आगे पेमेंट हाथ में मिलता था तो  नोट छू पाती थी मैं ...अब तो सैलरी बैंक में जाती है तो नोट छूने का भी सुख नहीं मिलता है ..... मेरे हसबेंड  ए० टी० एम० से मेरी सैलेरी निकाल के लाते हैं | ' कापी चेक करना रोक के एकाएक मिसेज लाल बोल उठी |

स्कूल में नयी ज्वाईन की अध्यापिका श्रेया विस्मित सी मिसेज लाल का चेहरा देखने लगी  |

बेटे की मायें


07 October 2014
12:07
-इंदु बाला सिंह


' मेरा बेटा दिल्ली गया है ....कालेज के सर ले गये हैं उसे ....अपने पैसे से ले गये हैं वे | ' चाय में रोटी डुबोते हुये कामवाली ने गर्व से कहा |


' मेरे बेटे को तो आफिस के काम से फुर्सत ही नहीं मिलती ..... बड़ा अफसर है न | ....... अरे ! मर्दों को तो सैकड़ों काम रहते हैं | हमारी तरह वे घर में थोड़े न बैठते हैं | ' मालकिन ने अपने बायें कान के झुमका सीधा करते हुये कहा |

कन्या पूजन


02 October 2014
22:42
-इंदु बाला सिंह

' आज कितनी कमाई हुई ? ' अष्टमी की शाम को पड़ोस में रहनेवाली अपने स्कूल की छात्रा जया  से मैंने पूछा |

' सत्तर रूपये | पांच घर खाने गयी थी मैं | सब घर में खाना था तो मैं थोड़ा थोड़ा खायी हर घर में | '

' क्या करोगी इन रुपयों का ? ' मैंने  जया का मन टटोला |

' मिस मैं रबर ,शार्पनर और पेन्सिल खरीदूंगी | और बाकी रूपये मम्मी के पास रख दूंगी | '

और भींज गया मन मेरा |


इसका मतलब है इस बच्ची को पेन्सिल रबर भी शायद बड़ी डांट डपट के बाद मिलते हैं जबकि कपड़े तो यह लड़की इतने महंगे पहनती है |

टीचरी बुद्धि


28 September 2014
15:14
सुबह के सात बजे थे | लगभग सात से नौ वर्ष की आयु के तीन लड़के कंधे पर बोरा डाले गुजर रहे थे हमारे गेट के सामने से | उन लडकों की आंखों में चमक थी और वे दुबले पतले पर स्वस्थ दिख रहे थे |

भोर भोर मेरी टीचरी बुद्धि जागी |

" ए बच्चो सुनो ! "

वे तीनो लड़के तुरंत मुड़े और मेरी ओर बढ़ने लगे | उनकी फुर्ती देख के मैं समझ गयी कि वे सोंच रहे हैं यह औरत मुझे कुछ खाने को देगी क्यूंकि मैंने कितनी ही बार अपने मोहल्ले की दानी महिलाओं को ऐसे सड़क पर गुजरते बच्चों को पास बुला कर बिस्कुट या बचा खाना देते देखा था |

क्यूँ मैं किसी को निराश करूं यह सोंच मैंने तुरंत अपना प्रश्न उछाल दिया  -

" स्कूल जाते हो ? " हालांकि उनकी चाल ढाल से लग रहा था कि वे स्कूल नहीं जाते होंगे | पर फिर मैंने सोंचा कि शायद ये बच्चे आज के दिन स्कूल न जा कर कचरा बीनने निकले हैं | ऐसे भी अगर ये स्कूल नहीं जाते हैं तो इन्हें स्कूल जाना चाहिये | स्कूल में फ्री खाना मिलता है ,फीस नहीं लगती है | सुबह मेरे दिमाग में बाल कल्याण का कीड़ा कुलबुला उठा |

" नहीं , हम लोग स्कूल नहीं जाते हैं | " - तीनों लडकों ने एक साथ बड़ी सहजता व सरलता से उत्तर दिया |

" तुम लोग अपने घर में जिद करों और बोलो अपने कि हमको स्कूल जाना है | "

हमारे घर के पास ही एक बस्ती है और हमारे मुहल्ले के लोग दबी जबान में बोलते हैं कि इस बस्ती में चोर रहते हैं |

" ये लड़के भी जरूर उसी बस्ती के होंगे | " मैंने सोंचा |

" हम लोग पढ़ लिये हैं | और कितना पढेंगे | हम लोग स्कूल पास कर लिये हैं | " - तीनों लड़के तुरंत पलटे तेजी से और हंसते हुये निकल पड़े सड़क पर आगे |

उनके उत्तर चुभ गये मुझे और मेरी सुबह खराब हो गयी |

" क्यों बेट्टा ! समाज सुधार हो रहा था न | पहले खुद को सुधार और राह चलते लोगों को नसीहत देने की आदत छोड़ | "


मेरे मन ने चुटकी ली मेरी |

Saturday, September 20, 2014

स्कूल की इज्जत का सवाल है


20 September 2014
10:45
-इंदु बाला सिंह

रेसेस का समय था | बड़ी कक्षा के  छात्र  इधर उधर टहल रहे थे और छोटी कक्षा के छात्र दौड़ धूप कर रहे थे प्ले-ग्राउंड में |

ग्यारहवीं कक्षा की पूरी छुट्टी भी इसी समय होती थी | छात्र अपना बैग पीठ पर  लगाये अपनी अपनी स्कूटी निकाल रहे थे |

एकाएक भगदड़ मची | छात्रों का समूह स्कूल गेट की ओर दौड़ा |

शिक्षक शिक्षिकायें हतप्रभ |

विद्यालय के के स्टाफरूम में बैठे शिक्षक व शिक्षिकायें बरामदे में आ गये |

मिसेज प्रेरणा  की ड्यूटी थी रेसेस कंट्रोल की आज | वह मैदान में छात्रों की भीड़ में घुस गयी |

' अरे ! क्या हुआ ? '

' मिस ! ग्यारहवीं कक्षा का छात्र अपनी स्कूटी पर बैठ रहा था कि एक मिनी ट्रक धक्का मार दिया उसे | वह लड़का गिर गया जमीन पर | सब छात्रों ने ट्रक को घेर लिया है | '

'अरे ! ...ठीक है तो तुम कैसे जा रहे हो गेट के बाहर ? तुम तो नवम कक्षा के हो | लगाऊं अनुशाशनहीनता का चार्ज ! सब चलो अंदर | गेट पर भीड़ न करो | ' शिक्षिका ने कड़क कर कहा | उसे छात्रों को अनुशासित करना था |

' अरे मिस ! ये हमारे स्कूल की इज्जत का सवाल है | हमारे गेट के सामने हमारे स्कूल के छात्र को धक्का मार दिया | '

' ठीक है ....ठीक है .. मैं देखती हूं | तुमलोग चलों यहां से | '

इसी बीच मिसेज प्रेरणा को स्कूल के गेट से पुलिस स्कूल के अंदर आती दिखी |

' ओह ! जरूर किसी छात्र ने 100 नम्बर डायल कर दिया होगा | आजकल बच्चे कितने तेज हैं | '

वह छात्रों को डांट डांट के गेट से परे करने लगी |




Friday, September 12, 2014

घर की बहू


12 September 2014
22:06
-इंदु बाला सिंह

ब्याह के दो माह ही बीते थे |

कितनी खुश थी वह अपनी ननद के आगमन की खबर सुन कर | ननद भाभी का रिश्ता भी तो कितना प्यारा होता है |
ड्राइंग रूम में बैठी थी ननद अपने देवर संग और साथ में थी सास |

और भाभी को बुला कर एक पर एक डाँट चलती गयी ननद की | सास के सामने मूक सी बैठी रही बहू |

शायद सास ने अपनी बिटिया से जी भर के शिकायत की थी  बहू की |

घर में न पतिदेव थे न ससुर |

इसीबीच पड़ोसी आ गये | इन्हीं के माध्यम से विवाह तय हुआ था |

डर कर ननद ने अपने देवर से भाभी को अंदर कमरे में ले जाने कहा |

ननद के देवर संग भाभी एक कमरे में बंद कर दी गयी |

भाभी भौंचक सी रोने लगी पैर पड़ने लगी भाभी के देवर का | माफी मांगने लगी घर की बहू |

रात में ससुर नशें में धुत्त लौटे बहू से अपनी बिटिया की कारस्तानी  सुन ..हरि ॐ कह चुप रह गये |

पतिदेव चुप रहे |

और बहू के पिता घटना सुन बोले - पूछूं तुम्हारे ससुर से |


घर की बहू ने कहा - नहीं | रहना तो इसी घर में है मुझे | मुझे और ज्यादा तंग करेंगे वे |

Friday, September 5, 2014

अब तो पिता से मार पड़ेगी


02 September 2014
08:51

-इन्दुबाला सिंह

" ये क्या लिखा है डायरी में बाबूजी ! " रधिया ने मालिक से पुछा |

" तेरा बेटा क्लास में मारपीट किया है | स्कूल में तुझे बुलाया गया है | अपनी बिटिया को भेज देना स्कूल कल | " मालिक ने रधिया के बेटे की डायरी पढ़ कर कहा |

रधिया थी तो अनपढ़ कामवाली पर वह अपने बेटे को अंगरेजी मीडियम में पढ़ा कर बड़ा अपने मालिक के बेटे की तरह बड़ा आदमी बनाने के सपने देख रही थी |

दूसरे दिन बेटा उठा ही नहीं सबेरे स्कूल जाने को |

" उठ ! " रधिया ने अपने आठ वर्षीय बेटे को झकझोरा |

' मेरा सिर दर्द दे रहा है अम्मा .......आज स्कूल नहीं जाऊंगा मैं | " रुआंसी आवाज निकली बेटे ने |
हां ..हां ... आज तो तेरा सिर दर्द देगा ही | मैंने पढ़वा लिया है तेरा स्कूल से मिला कम्प्लेन लेटर मालिक से | " मैं अनपढ़ हूं पर बुद्धू नहीं |


हडबडा कर उठा रधिया का बेटा | वह समझ गया था अब तो मार पड़नेवाली है पिता से उससे |

आठवीं की सुलभा


01 September 2014
20:12

-इंदु बाला सिंह

" टीचर ! मेरे पापा से आप मेरी शिकायत मत कीजियेगा | मैं अब से मन लगा के पढूंगी | " सुलभा ने रस्तौगी मैडम से मनुहार की |

" और पूछेंगे तुम्हारे पापा मुझसे तुम्हारे बारे में तब मैं क्या बोलूंगी ? "

" टीचर ! मैंने अपने मोबाईल का सिम तोड़ के फेंक दिया है ..... अब तो मेरे पास मोबाईल भी नहीं है | " सुलभा ने फिर मनुहार की रस्तौगी मैडम की |

दो दिन पहले ही  फेसबुक से सम्बन्धित कम्प्लेन किया था एक सहपाठिन छात्रा ने मिसेज रस्तौगी को |
मोबाईल रखने के कारण डांट पड़ी थी सुलभा को |

" और क्या क्या बोलूंगी मैं ! "  मिसेज रस्तौगी ने सहज ढंग से कहा |

और दस मिनट में सुलभा की गुसिल आवाज आवाज आयी -

" किसने मेरा नम्बर दिया था रनजीत को ...कल मेरा दिमाग चाट रहा था रात में | "


ब्लैक बोर्ड पर गणित हल करती रस्तौगी मैडम पलट कर घूरी सुलभा को   आठवीं कक्षा की इस छात्रा  की परिपक्वता और राजनीति ने उसे एक पल के लिये अचम्भे में डाल दिया |

दीवारों का मोह


28 August 2014
12:35

-इंदु बाला सिंह


पिता के गुजर जाने के बाद श्री शर्मा को घर खाली करने के लिये कहा गया | नया मकान मालिक हो तो किरायेदार भी तो नया रहना चाहिए अन्यथा रौब जमाना मुश्किल होता है | बच्चे जिस घर में बड़े हों आखिर मोह हो जाता है दीवारों से व्यक्ति को |

मकान खाली करने के लिये इतना परेशान किया बेटों ने कि श्री शर्मा मजबूरी में घर खाली किये पर मकान में दूर मिला |

' अरे ! क्या बात है ! अकेली और पैदल ! ' एकाएक दोपहर में सड़क से मिसेज शर्मा को गुजरते देख मैं  चौंक पड़ी |

' हम आपके पीछेवाली लाईन में आ गये हैं | ' खुश हुयी मैं |

मेरा गेट खोल कर सब्जीवाले की आस में सड़क निहारना और मिसेज शर्मा का सड़क से गुजरना दोनों एक साथ हुआ | शायद हमारा मिलना भी किस्मत थी | अन्यथा किसे किसकी याद रहती है |

' इस समय हमारे घर में मेरे दोनों बेटे बहू और बेटी दामाद आये हैं | आईये कभी | वे सब और एक सप्ताह रहेंगे | ' चहक कर मिसेज शर्मा ने कहा | लेकिन बात करते समय  हसरत भरी निगाह आज भी उठीं अपने पुराने मकान पे |


खुश हुयी मैं | आखिर उसे अपना पुराना मकान न मिला था किराये में तो क्या हुआ पुराने मुहल्ले तो वह वापस आ गयी थी |

Wednesday, August 27, 2014

भय ही भूत ( लोक कथा )


27 August 2014
13:02
एक दिन गांव  में हल्ला मचा | सब भागने लगे एक दुसरे सुन के कि गांव  में एक राक्षस आनेवाला है | वह राक्षस आदमी को मार कर खा जाता है |

एक पांच वर्षीय बालक ने सोंचा कि देखा जाय यह राक्षस कैसा है |

सभी गांववाले गांव छोड़ कर भाग गये |

दूसरे दिन बालक ने देखा कि गांव में एक विशालकाय राक्षस घूम रहा है |

वह राक्षस अपने सामने एक पांच वर्षीय बालक को खड़े देख चौंक गया |

' ए लड़के ! सब गांववाले मुझसे डर के भाग गये | तू नहीं गया ? तुझे मुझसे डर नहीं लगता ? ' , राक्षस ने बालक से गुर्रा कर पूछा |

' नहीं , मुझे किसीसे नहीं डर लगता | मैं क्यों डरूं भला तुमसे ? ' बालक ने बहादुरी से जवाब दिया |

एक छोटे से बालक के मुंह से इस प्रकार का निडर उत्तर पा राक्षस थोड़ा डर गया |

राक्षस का आकार थोड़ा घट गया |

अब आश्चर्य से भरा राक्षस क्रोध में आ कर बार बार बालक से अपना पहला प्रश्न पूछने लगा |

पांच वर्षीय बालक के हर निडरता भरे उत्तर सुन  राक्षस का आकार घटने लगा |

और अंत में राक्षस बिंदु बन के गायब हो गया |

बालक खुश हो गया |


गांववाले जब वापस लौटे तो गांव में बालक को जिन्दा पा कर आश्चर्यचकित हुये |

Monday, August 25, 2014

इन्टीमेशन कार्ड


21 August 2014
11:55
-इंदु बाला सिंह

आफिस से घर लौटते वक्त राह में कालेज का नोटिस बोर्ड देखना सुनीता की आदत सी बन गयी थी | क्या पता किसी दिन निकल जाय उसकी बिटिया का नाम एडमिशन के सेलेक्शन लिस्ट में |

और खुशी से विह्वल हो गयी थी सुनीता पढ़ कर अपनी बेटी का नाम नोटिसबोर्ड में लगे एडमिशन के सेलेक्शन में उस दिन  |

उसने मन ही मन सोंचा आज तो छ: तारीख है और एडमिशन का डेट तो बीस तारीख है , तब तक कालेज से इन्टीमेशन कार्ड उसके घर में आ ही जाएगा |

तारीखें बदलती गयीं पर न आया सुनीता के घर में कालेज से इन्टीमेशन कार्ड |

परेशान सुनीता बेटी संग बीस तारीख को एडमिशन के सारे डाक्यूमेंट संग कालेज पहुँची |

पहलू बदलती रही एडमिशन रूम के बाहर हर पल सुनीता |

वह मन ही मन सोंची कि अगर उसकी बेटी का नाम एडमिशन रूम अंदर से न बुलाया गया  तो जरूर वह जा कर कालेज के प्रिंसिपल को कम्प्लेन करेगी क्यूंकि उसकी बिटिया का नाम कालेज के नोटिसबोर्ड पर अब भी चमक रहा था |

ये लो आखिर उसके बिटिया का नाम पुकारा दरवाजे पर खड़े कर्मचारी ने |

अंदर बैठे लेक्चरर ने सुनीता से  इन्टीमेशन कार्ड  मांगा |

अब सुनीता ने बताया कि उसे तो नहीं मिला इन्टीमेशन कार्ड पर नोटिसबोर्ड पर उसकी  बिटिया का नाम लिखा है |

परेशान लेक्चरर ने एक फाईल उठाया  जिसपर चमक रहा  था उसकी बिटिया का नाम " समृद्धि " |

और जब उस लेक्चरर ने फाईल के पन्ने पलटा  तो उसमें था उसकी बिटिया का था वह " इन्टीमेशन कार्ड " जो डाक में डाला ही नहीं गया था |













आर्थिक दंड स्कूल में


20 August 2014
22:04
-इंदु बाला सिंह

लोहे का स्केल बड़ा अच्छा होता है क्योंकि लकड़ी के स्केल की तरह यह टूटता नहीं | इसीलिये राधिका शर्मा हमेशा हाथ में स्केल रखती थी टेबल पर जोर जोर से पीट कर बच्चों को डराने के लिये |


उस दिन भी रोज की तरह राधिका शर्मा ने गुस्से में आ कर लोहे का स्केल जोर से पीटा टेबल पे पर यह विनीत की बदकिस्मती थी या टीचर की पता नहीं कि स्केल छूटा राधिका के हाथ से और टेबल से छिटक कर विनीत की आँखों से जा टकराया |

राधिका शर्मा को एक लाख रूपये और स्कूल के तरफ से भी  एक लाख  विनीत की आँखों के इलाज के लिये देना पड़ा |

अब  जिसके हाथ में भी लोहे का स्केल दिख जाय उससे स्कूल में  फ़ाईन के रूप में पांच सौ रूपये जमा करने का नियम  बनाया गया |


किसी टीचर क्या छात्र  के हाथ में भी लोहे का स्केल दिखाई देना अब बंद हो गया |