Thursday, September 19, 2013

जूलियस ( लम्बी कहानी )

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उसका नाम जूलियस था | वह एक आदिवासी बालक था | जब मास्टर बन कर स्कूल में मैंने नौकरी पकड़ी तब वह सातवीं कक्षा में पढ़ता था | आदिवासी बच्चों का भी दिमाग इतना तेज हो सकता है यह मुझे उसी समय पता चला |
उससे किसी भी विषय की किसी भी पुस्तक के किसी अंश से  प्रश्न मैं पूछता था तो  उत्तर उसकी जुबान पर  रहता था | उसकी हस्त लिपि गोल गोल व सुंदर  थी | उसकी मैली कमीज के कारण  उसका काला चेहरा , चिपटी नाक , और छोटी छोटी आंख बड़ी घृणास्पद लगती थी |
कक्षा में वह हमेशा चुपचाप अपनी पुस्तक में डूबा रहता था | उसके साथी हमेशा शोर गुल मचाते  रहते थे | मैंने उसे कभी किसी से गप्पें मरते न देखा था |
एक दिन वह मेरा दिया गृह कार्य कर के नहीं लाया |
" जाओ ! धूप में खड़े रहो | " मैंने उसे सजा दी |
वह चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा | उसकी आंख से आंसू टपटप धरती पर गिरते रहे | मैं उसे अनदेखा कर के कक्षा में पढ़ाता रहा |
पीरियड खतम होने पर मैंने उसे चपरासी द्वारा कामन रूम में बुलवाया |
" देखो ! तुम इतने अच्छे बच्चे हो | तुम्हारा दिमाग इतना तेज है | फिर तुम गृह कार्य क्यों नहीं कर के लाये ? यह कितनी गलत बात है | " मैंने उसे समझाने की चेष्टा की |
अपना सिर उठा कर कुछ क्षण तक वह मुझे देखता रहा |
" कल शाम को जब मैं स्कूल का गृह कार्य कर रहा था तब मेरे बापू आये और मुझे खूब पीटे | मेरी कापी फाड़ डाले वे | फिर बोले जब देखो पढ़ता रहता है | ये नहीं कि जरा बकरी ही चरा लायें | " रुक रुक कर बोला जूलियस |
" ओह ! ....ठीक है | कल कर के लाना गृह कार्य | "
" अच्छा | "
पर  दुसरे दिन भी गृह कार्य नहीं कर के लाया जूलियस |
मैंने फिर उससे पूछा - " अब क्या हो गया ? "
" कापी तो बापू फाड़ दिए थे फिर कापी कहाँ से आती | बापू बोलते हैं - मत पढ़ो | क्या होगा पढ़ कर | " पूछने पर जूलियस बोल पड़ा |
" तुमलोगों को तो स्कूल से पैसा मिलता है | तुम्हारे पास तो पैसा होगा ही | "
" वो पैसा तो मिलते ही छीन  कर ले जाते हैं और शराब पी जाते हैं | "
मैंने कापी खरीदने के लिए जूलियस को रूपये दिए | वह मना करता रहा पर मैंने उसे जबरन थमा दिए रूपये |

एक दिन मैंने उसका अकाउंट पोस्ट आफिस में खुलवा दिया | उसे  समझाया कि उसे कहीं से भी रूपये मिलें तो वह उन्हें पोस्ट आफिस में ही जमा कर दे |
धीरे धीरे अपनी सरलता और विद्याध्ययन के प्रति सुरुचि के कारण जूलियस ने मेरे हृदय में अपना एक स्थान बना लिया |
उसे कुछ भी पूछना होता तो वह मेरे घर बेहिचक आ जाया  था |
मेरी श्रीमती जी भी उसे संतानवत प्रेम करती थी | मेरे घर आने पर वे उसे बिना कुछ खिलाये जाने न देती थी |
                एक दिन मैं रात में खाना खा  रहा था तभी दरवाजा खटका | श्रीमती जी ने दरवाजा खोला | बाहर जूलियस था | मैं खाना छोड़ उठ खड़ा हुआ |
" अरे जूलियस ! आओ | क्या हुआ ? "
" मैं पढ़ रहा था उसी समय बापू पी कर घर में आये | मुझे पढ़ते देख कर एकदम बिगड़ गये | बोले - इतना बड़ा लड़का बैठ कर खाता  है | स्साला विलायत जायेगा | घर में एक पैसा नहीं है | ठहर मैं तेरी पढाई निकलता हूँ | वे फरसा उठा कर मुझे मारे | मैं बाल बाल बच गया | उनका फरसा  जा कर दीवाल से टकराया | उनका गुस्सा और बढ़ गया | वे फरसा ले कर मुझे मरने के लिए फिर दौड़े | मैं जान बचा कर भाग आया | "
     मैं सोंच ही रहा था कि किसी के पारिवारिक झमेले में पड़ना कहां तक उचित है तबतक मेरी श्रीमती जी बोल पडीं -
" अच्छा किये तुम यहां आ कर | नहीं तो तुम्हारे पिता क्रोध में आ कर न जाने क्या कर बैठते | ... चलो हाथ मुंह धो कर खाना कहा लो | "
वह सिर झुकाए श्रीमती जी के पीछे चला |
मैं अपनी खाने की थाली के सामने फिर से बैठ गया |
दुसरे दिन जूलियस का बाप उसे खोजते हुए मेरे घर आया | मैंने उसे प्यार से बैठाया और समझाया |
" देखो ,तुम्हारा बेटा जूलियस पढ़ने लिखने में बहुत तेज है | तुम उसको पढ़ने क्यों नहीं देते ? "
" बाबु ! हम लोगों को तो पेट को खाने को नहीं अंटता है | हम लोग पढ़ लिख कर क्या करेंगे ? हम लोग कितना भी पढ़ लिख लें क्या आप लोग की बराबरी कर सकेंगे ? हम लोग का जन्म ही मिट्टी का काम करने के लिए हुआ है  |"
" ऐसा क्यों सोंचते हो ? वह पुराना जमाना गया | अब सब बराबर हैं | मुझमें और तुममें अंतर ही क्या है ? मेरी तरह तुम भी मनुष्य हो | "
" बाबु जी ! आपके बोलने से क्या होगा ? दुसरे लोग तो हमें नीचा समझते हैं न | "
" किसी के नीच कहने से कोई नीच नहीं हो जाता है | अब तुम खुद सोंचो तुम अपने लड़के को पढ़ने दोगे तो तुम्हारा लड़का पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बनेगा | तब दुनिया खुद तुम्हे सम्मान देगी | ये जो लोग तुम्हें देख कर हंसते हैं वे तुम्हें आदर पूर्वक घर में बुला कर बैठाएंगे | फिर तुम्हें कुछ खर्च भी नहीं करना है | अभी तो उसे किताब कापी के लिए सरकार पैसा सरकार देती है | तुम्हारा लड़का कालेज में हास्टल में रहेगा तो सरकार उसे और अधिक पैसा देगी | "
" अच्छा SS ! मुझे इतना नहीं मालूम था | "
" और नहीं तो क्या !...सरकार तुम लोगों  को ऊँचा उठाने के लिए कितना काम करती है | "
" ठीक है बाबू जी ! जब आप कहते हैं तो जुलियस को मैं आपके घर में ही छोड़ दूंगा | आप लोगों की संगति रहेगी तो वह कुछ कर सकेगा | नहीं तो मेरे पास तो वो कुछ न पढ़ सकेगा | "
मैंने सोंचा - अजीब मुसीबत गले पड़ गयी | अपने तो तीन बच्चे वैसे ही मौजूद हैं | अपनों की जिम्मेदारी तो उठाई नहीं जाती अब चौथे को भी गोद ले लूं |
" नहीं उसे अपने पास ही रखो | उसे कुछ पूछना होगा तो आ कर मेरे घर पूछ लिया करेगा | " मैंने कहा |
" वैसे तो आपके घर  ही रहना ठीक था उसका | पर जब आप कहते हैं तो अपने पास ही रखूंगा उसे | "
और वह जूलियस को साथ ले मुझे नमस्कार कर चला गया |
मैंने राहत की सांस ली | सोंचा - यहाँ तो होम करते वक्त भी हाथ जल रहे थे |
उसके बाद से जूलियस के सामने कोई समस्या नहीं आयी |
समय पंख लगा कर उड़ गया |
जुलियस मेट्रिक  फस्ट डिविजन में पास किया |

जूलियस का बाप मेरे पैरों पर माथा रख दिया |
" अरे रे ! यह क्या करते हो | उठो ! उठो ! " मैंने उसे बांह पकड़ कर उठाते हुए कहा |
" नहीं बाबूजी ! अपने मेरी आंखें खोल दी हैं | यह सब आप ही के कारण हुआ है |
जूलियस ने शहर में कालेज में दाखिला ले लिया |
समय बीतता गया | मैं अपने दैनिक कार्यक्रम में इतना व्यस्त हुआ कि जूलियस को भूल गया |

शनिवार का दिन था |
आठवीं कक्षा में मैं हिदी साहित्य पढ़ा रहा था |
" दिनकर का पूरा नाम क्या है ? "मैंने एक लड़के से पूछा |
"......" लड़का चुप |
" हिन्दी साहित्य पढ़ते हो दिनकर का पूरा नाम याद नहीं ! ......." क्रोध में चपत मारने को उठा मेरा हाथ हवा में ही रह गया |
दरवाजे पर एक युवक खड़ा था | चेहरा कुछ परिचित सा लगा |
" सर ! नमस्कार ! ....मुझे पहचाने नहीं ....... मैं हूँ आपका जूलियस | "
" ओह ! जूलियस तुम !
आनंदवेग में मै कक्षा से बाहर निकल आया |
जूलियस बिलकुल बदल गया था | मेरी आंख के सामने उसकी मैली कमीज चिपटी नाक व छोटी छोटी आंख वाला चेहरा कौंध गया |
आज उसकी लम्बी नुकीली मूंछ रोबदार चेहरा उसके बचपन के चेहरे का उपहास कर रहा था |

" सर ! मैं इस जिले का जिलाधीश नियुक्त हुआ हूँ | "
" अच्छा ! " मेरी आंखे आश्चर्य से फ़ैल गयीं | तो अब वो आई० ए० एस० आफिसर बन गया था |
विद्यालय के सभी शिक्षक उसे कौतुहल से देख रहे थे |

विद्यालय की छुट्टी के बाद वह मेरे साथ मेरे घर पैदल ही गया |
" इनसे मिलो हमारे जिलाधीश ..मिस्टर जूलियस | " मैंने अपनी पत्नी से परिचय कराया युवक का |
जूलियस ने बढ़ कर मेरी पत्नी का चरण  स्पर्श किया | आज शिक्षक के रूप में मेरा सीना गर्व से फूल गया था |






           
                                                               

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