Tuesday,
April 11, 2017
7:24 AM
- इंदु बाला सिंह
कालेज में
यूनिफार्म हो गया है |
मैं खुश हूं |
लड़कियां बिगड़ेंगी नहीं | यूनिफार्म समानता लाता है मन में | कोई बड़ा या छोटा नहीं
होता |
हमारे मुहल्ले
में एक कालेज खुल गया है |
गजब है , इतने
फ्री सरकारी कालेज होते हुये भी प्राइवेट कालेज का खुलना मुझे अचम्भित करता है |
-' तुम पवित्रा कालेज में पढ़ती हो | ' दो लडकियों को कालेज यूनिफार्म में सड़क पर से गुजरते देख मैं पूछ बैठी |
-' हां '
सुंदर सी दिखती लड़की चटपट उत्तर दिया |
-' प्लस टू
कालेज है ? '
-' नहीं
ग्रजुएट कालेज है | '
-' आर्ट्स
कालेज है ? ' मैनें सोंचा ...आखिर अपने मुहल्ले की जानकारी रखनी चाहिये |
-' नहीं साइंस
कालेज है | '
इस कालेज में
लडकियों की संख्या ज्यादा थी |
मैं अचंभित
हुयी |
-' क्या
सब्जेक्ट पढ़ाये जाते हैं | '
-' PCM '
मेरा दिल दुखा
|
-'फीस कितनी
है ? ' मैं पूछे बिना न रह सकी |
-' पुरे एक
साल की फीस ले लेते हैं | ' अबकी वही सुन्दरवाली लड़की खुल गयी थी | ' हमारे कालेज
में होस्टल भी है | होस्टल की फीस अलग है | हमारे कालेज में होस्टल का भी पूरे साल
का फीस ले लेते हैं | लडकियों का होस्टल यहीं पास में है और लडकों का दूर में है |
कालेज की बस बच्चों को होस्टल से ले के आती है | '
लड़की एक सांस
में बोल गयी |
-'कालेज का
प्रिंसिपल कौन है ?
दोनों लड़कियां
एक दुसरे का मुंह देखने लगीं | दोनों अलग अलग नाम बोलने लगीं |
मैं समझ गयी |
उन लडकियों को अपने प्रिंसिपल का नाम ही नहीं मालुम था |
-'अभी कहां जा
रही हो तुम लोग ? '
फिर मुस्कुराई
सुन्दरवाली लड़की ...' गुपचुप खाने | '
मैं चिंतित हो
गयी |
न जाने क्यों
मैं युवाओं की बड़ी चिंता करती हूं | अध्यापन छूटने के बाद भी अवचेतन मन में सोया '
छात्र सुधार ' जाग जाता है |
-' गुपचुप की
दूकान तो बहुत दूर है | ' मैं कहे बिना न रह सकी |
मेरी आँखों
में और कोई प्रश्न न पा , वे दोनों लड़कियां आगे बढ़ गयीं |
कालेज से निकल
कर लड़कियां दूर जा रहीं थीं , गुपचुप खाने | पर मैं निश्चिन्त थी | लड़कियां
सुरक्षित थीं | आखिर उन्होंने यूनिफार्म पहना हुआ था |
लडकियों के
जन्मदाता प्राईवेट कालेज की पढाई में इतना खर्च कर रहे थे |
फिर उन्हें अपनी लडकियों पर उनके ब्याह में भी
खर्च करना था |
ये
लड़कियां फाईनल एग्जाम देंगी की नहीं क्या पता | और एग्जाम देंगी तो पास भी होंगी की नहीं क्या पता |
मन को परेशान
होने को एक नया मुद्दा मिल गया था | आखिर ' पवित्रा कालेज ' के बच्चे रोज मेरे ही
घर के सामने से तो रोज गुजरते थे |