Saturday,
July 01, 2017
6:25 AM
-इंदु बाला
सिंह
अपना
मकान हमने बेच दिया है | हमारे बेटे को
एक साल हो गये नौकरी में लगे | हम आपका मकान किराये पर चाहते हैं |
मैंने उसे सात
दिन का समय देने के लिये कहा |
और वह महिला
अपना मोबाईल नम्बर मुझे दे कर चली गयी |
मैं इस महिला
को पहचानती थी | घर में युवा बेटी व पति थे | पति कोई बिजिनेस करता था |
मकान ससुर ने
बनवाया था | अब मकान खाना तो नहीं खिलाता | हो सकता है पति ने कर्ज लिया था हो |
कर्ज चुकाने के लिये वे लोग मकान बेच दिये हों | पर उस महिला का मनोबल बहुत था |
वह महिला अपने मकान के आस पास ही कोई मकान भाड़े पर ले कर रहना चाहती थी | आम लोग
तो अपमान से अपना मुहल्ला ही छोड़ देते हैं |
मैंने सोंचा
आखिर क्यों लोग अंत तक अभिमान में डूबे रहते हैं | वह महिला अपने घर में पेइंग गेस्ट
रख सकती थी | अपना ड्राइंग रूम कुछ घंटों के लिये किसी कोचिंग इंस्टिट्यूट को दे
सकती थी | सोंचने पर मकान बचाने के सैकड़ों उपाय निकल जाते हैं | और अब यह सब तो
पति की समझदारी पर निर्भर रहता है |
सर से छत निकल
जाने देना अदूरदर्शिता है | व्यक्ति अपना रेसिडेंसियल स्टेटस भी खो बैठता है |
पर वह परिवार
अपनी मरी पहचान को अब भी ढो रहा था |