Sunday, January 11, 2015

लुटेरे का मन परिवर्त्तन ( लोक कथायें )


11 January 2015
21:32
-इंदु बाला सिंह

ऋतुराज नामक एक लूटेरा था | रात के अंधेरे में वह नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठा रहता था और  जो कोई राहगीर  उधर से गुजरता था उसे वह लूट लेता था |

एक दिन ऋतुराज का दिल अपने बुरे कर्मों से ऊब गया | वह एक संत के पास गया | उसने संत से अपने मन की बात बतायी |

संत ने ऋतुराज की दिनचर्या ध्यान से सूनी फिर उसने कहा कि वह पहले की ही तरह रात में प्रतिदिन नदी के किनारे पत्थर पर बैठे पर वह किसी को न लूटे | जिस दिन भगवान् उसे क्षमा कर देंगे उस दिन उसके गांव का घंटा खुद बज उठेगा |

संत की बात सुन कर ऋतुराज हर रोज रात में नदी के किनारे पत्थर पर चुपचाप बैठा रहता था | धीरे धीरे गांव के लोग उससे डरना बंद कर दिये | इसीतरह चार महीने से ऊपर हो गये ऋतुराज को नदी के किनारे बैठते | अब वह परेशान रहने लगा | वह सोंचने लगा मन्दिर का घंटा आखिर कब बजेगा |

एक रात एक राहगीर को मार पीट कर उसका सामान छीनने लगे | ऋतुराज दौड़ कर उस लुटेरे को मार पीट कर  भगा दिया  फिर  दुखी मन से वह  मन्दिर की ओर चल पड़ा | इसी बीच उसे मन्दिर से घंटे की आवाज सुनायी पड़ी | वह खुश हो कर अपने घर की ओर लौट पड़ा |

सुबह ऋतुराज ने संत को बीती रात की घटना बतायी | उसकी बातें सुन कर संत ने उससे  कहा कि अब तक तो वह राहगीरों को मारपीट कर उनसे उनका  सामान लूटता था पर बीती रात तो उसने लुटेरे को  मार पीट कर राह्गीर का सामान लौटाया है | इसलिए उसने एक अच्छा काम किया है और इश्वर उससे प्रसन्न हुये हैं |





Tuesday, January 6, 2015

भाग्य सदा चलता पुरुषार्थी के साथ ( लोक कथायें )


07 January 2015
10:05
-इंदु बाला सिंह


धर्मराज और कर्मराज नामक दो राजा थे | दोनोंके राज्य की सीमायें पास थीं | दोनों राजा साधू संतों का आदर करते थे | आये दिन राजा अपने शक्ति का प्रदर्शन करने के लिये एक दुसरे पर चढ़ाई करते थे और  अपना कुछ इलाका गंवा बैठते थे |

एक बार युद्ध से पहले धर्मराज अपने राजय के महर्षि के पास आशीर्वाद के लिये गया | राजा के पास विशाल सेना थी इस समय |

महर्षि ने कहा - ' तुम्हारी विजय निश्चित है | '

धर्मराज खुशी खुशी अपने राज महल में लौट गये | उन्होंने अपने सेनापति को महर्षि का आशीर्वाद सुनाया |

सेनापति से बात सैनिकों तक पहुंची | अब पूरी सेना खुश थी |


उधर कर्मराज भी अपने राज्य के महर्षि  से मिला | महर्षि को ज्ञात था कि राजा की सेना कम है | अतः महर्षि ने कहा - ' तुम्हारी जीत संदिग्ध है | '

कर्मराज दुखी मन से वापस लौटा | उसने अपने सेनापति को महर्षि का कथन सुनाया |

' राजन ! आप निश्चिन्त रहें हम युद्ध में अपना जी जान लगा देंगे | आप देखिएगा | हमारा एक एक सैनिक उनके दस सैनिक के बराबर है |  हम जरूर जीतेंगे युद्ध में | ' सेनापति ने कहा |

सेनापति ने सैनकों को  महर्षि का कथन सुनाया और कहा -

' मेरे प्यारे सैनिको ! यह हमारे श्रम और मनोबल के परीक्षा की घड़ी है | हमें दुश्मन बीस सैनिक मारने का प्रण करना है | '

पूरी सेना में जोश भर गया | सब गाने लगे- ' जीतेंगे ! ....भई जीतेंगे !...जीते बिना नहीं लौटेंगे | '

कर्मराज की सेना जबर्दस्त तरीके से युद्ध कौशल का अभ्यास करने लगी |

धर्मराज की सेना दो घंटे भी न टिक सकी कर्मराज की सेना के सामने |

धर्मराज ने हार कर सफेद झंडा लहरा दिया |

कर्मराज मुस्कुरा उठा |

धर्मराज क्रोधित हो के लौटा अपने महर्षि के सामने | उसने कड़े शब्दों में महर्षि से कहा -

' महर्षि ! आप राज दंड के काबिल हैं | आपने झूठ कहा था कि हमारी विजय होगी | '


' तुम्हारे भाग्य में जीत थी पर तुमने श्रम न किया | भाग्य सदा पुरुषार्थी का ही साथ देता है | तुम्हारी सेना ने ठीक से युद्ध्याभास न किया होगा | ' महर्षि ने शांत शब्दों में कहा |

धर्मराज ने महर्षि की बातों का मर्म समझ लिया | वह चुपचाप लौट गया राजमहल में |



Saturday, January 3, 2015

नये साल का कैलेंडर


03 January 2015
21:15
-इंदु बाला सिंह


" अरे ! तुम लोगों ने कैलेंडर उतरा नहीं है अब तक ? ...नया साल शुरू हो गया है न ! " चौथी कक्षा में प्रवेश करते ही मिस शालिनी की  कड़क आवाज गूंजी |

हालांकि मिस ने नकली क्रोध ही व्यक्त किया था |

टीचर जरा बायीं ओर मुड़ी नहीं कि मनदीप  फट से पुराना कैलेंडर उतार दिया कक्षा की दीवाल से |

" अरे ! मनदीप  तुमने कैलेंडर  कैलेंडर क्यों उतार दिया ? कल तुम नया कैलेंडर लाओगे क्या ? " मिस शालिनी फिर कड़की |

" नहीं मिस | " मनदीप ने ढिठाई से कहा |

 वह पुराना कैलेंडर पलट कर मई महीना का पन्ना निकाला | मई को काट कर उसने जनवरी लिख दिया और  दो हजार चौदह काट कर दो हजार पन्द्रह लिख दिया |

" देखिये मिस !...ये है दो हजार पन्द्रह का कैलेंडर  | "

मिस शालिनी चकित थी चौथी कक्षा के छात्र की चतुराई व तेजी पे |

" पर फरवरी में तो नहीं चलेगा न यह कैलेंडर ! "

अबकी मनदीप निरुत्तर था |


" हमारे दूकान में कैलेंडर है मिस ! मैं ला दूंगी | " तरुणा बोली