Thursday, May 22, 2014

छोटे बड़े का लिहाज


22 May 2014
23:30

  -इंदु बाला सिंह

वह शहर की लड़की थी | पर ससुराल में कुछ साल रहना पड़ता है न इसलिए वह ससुराल में रहती थी और उसका पति शहर में नौकरी करता था | पति छुट्टियों में गाँव आता था |

बहू ने पीढ़ा खींचा और बैठ गयी सास और जेठानियों  से बात करते करते |
सास व जेठानी बिना पीढ़ा के जमीन पर उकडूं बैठे थे |

" बाप ने यही सिखाया है ....अपने से बड़ों के सामने पीढ़े पर बैठी है ... " कहते हुए जेठानी उसका पीढ़ा छीन ली |

और आज बात करते करते उसकी कामवाली जब उसके बगल में बैठ जाती है ..... यह देख वह चुप रह जाती है  |

आज वह अकेली है  ..कामवाली पर निर्भर है ....पर वह छोटे बड़े का लिहाज और उससे जेठानी का पीढ़ा छीन लेने की घटना …………. उसे भुलाये नहीं भूलती  |

श्रीहीन भाई


15 May 2014
07:28

-इन्दु बाला सिंह

दो वर्ष तक चचेरी भाभी मैके से न लौटी तो वह एक पत्र लिख बैठी |
' भाभी ! आप हमारे घर आ कर रहिये ..... आपको यहां नौकरी लगा देंगे | '

उसकी दुनिया कितनी स्वप्निल थी | उसके पिता ने एक पुरुष रिश्तेदार को नौकरी लगवायी  थी | बिना पिता से बातचीत किये उसने भाभी को एक दिन पत्र लिख मारा था | भाभी निकम्मे पति के दुःख और जेठ द्वारा ठीक से खाना न बना होने के कारण अपनी दम्भी जेठानी के सामने  किचेन में पड़े कलछुल से पिटायी खाने के बाद वापस ससुराल न लौटी थी | न तो पति में मनोबल था पत्नी को बुलाने का और न ही पत्नीविहीना ससुर में हिम्मत थी बहु को घर वापस लाने की |
' आप अपने भाई को नौकरी लगवा दीजिये ' , पत्र का उत्तर आया |
कालेज में पढ़ती थी वह पर सम्बन्धों के मिठास को महसूसने वाली चचेरी ननद को चुभ गये भाभी के शब्द | इतना भी न सोंच सकी थी वह  कि काश भाभी ने  पत्रोत्तर ही न दिया होता |

आज अपने ब्याह के बीस वर्ष बाद उस पत्रोत्तर की उसे याद आयी और समझ आया उसका अर्थ |

भाभी को मेरा निकम्मा श्रीहीन भाई न भाया था तो मैं कौन थी उसकी |

Sunday, May 18, 2014

जूते की फैक्ट्री

( सुनी हुयी कथाएं )



18 May 2014
20:52

एक व्यापारी को एक जूते की फैक्ट्री एक इलाके में लगवानी थी | उसने अपने दो कर्मचारियों को बारी बारी से इलाके का मुआयना करने भेजा |
पहला कर्मचारी इलाके का मुआयना कर के लौटा और बोला , " अरे ! उस इलाके में फैक्ट्री लगाने से कोई फायदा नहीं | वहां तो सब नंगे पैर घुमते हैं | हमारा जूता वहां बिकेगा ही नहीं | "
दूसरा कर्मचारी कर्मचारी जब इलाका देख कर लौटा तो उसने राय दी ," अरे ! बहुत बढ़िया जगह है वह तो | उस इलाके में हम जूते की फैक्ट्री लगायेंगे तो हमें बहुत मुनाफा होगा क्योंकि उनके पास तो जूते हैं ही नहीं | "
व्यापारी ने उस इलाके में जूते की फैक्ट्री लगायी और उस दुसरे कर्मचारी को अपना विश्वस्त सलाहकार बना लिया |

Sunday, May 11, 2014

सहारा ढूढती माँ


11 May 2014
17:20

-इंदु बाला सिंह

" माँ !..मामा को क्या क्या करना होता है ... भांजी के ब्याह में ? " पुत्र ने पूछा माँ से |
माँ ने बड़े चाव से समझाया पुत्र को |
पुत्र सपत्नीक जानेवाला था भांजी के ब्याह में |
" मैं तो कभी किसी के शादी ब्याह के मौके पर मैके ही न जा पाई ... " बोले बिना माँ न रह सकी | फिर इस बार तो उसकी नतिनी का ब्याह था |

पुत्र मौन रहा | फिर घर की बिजली , दूध और राशन के बिल का दुखड़ा रोने लगा |

Friday, May 9, 2014

तर्रार छात्रा


09 May 2014
08:05

-इंदु बाला सिंह

" अरे टीचर आपने मेरा प्रश्न हल नहीं किया ? " एकाएक दसवीं कक्षा का सुनील बोल पड़ा |
गर्मी की छुट्टियों में टीचर ने एक महीने की गणित की कोचिंग क्लास रखी थी |
पास में ही एक में छात्र इकट्ठे होते थे और अपनी गणित के विभिन्न प्रश्नों का हल करते थे |
प्राय: हर रोज समयाभाव के कारण नीलिमा मैडम कुछ प्रश्न कागज के पन्ने पर अपने छात्रों से लिखवा कर घर  ले जाती थी |
कोचिंग क्लास  सुबह छ: बजे रहती थी | आज कोचिंग क्लास आते समय हड़बड़ी में नीलिमा से प्रश्न का हल किया हुआ पन्ना घर में ही छूट गया था |
" राजेश ! तुम तो सईकिल से आये हो न आज !...जाओ मेरे घर से सुनील पन्ना ले आओ | " नीलिमा ने राजेश से कहा
" लेकिन मैं तो आज साईकिल से आया ही नहीं हूं मैडम ! "
" अच्छा दिव्या तुम तो स्कूटी से आई हो न ..जाओ मेरे घर से हल किया हुआ पन्ना ले आओ | " नीलिमा दिव्या की ओर मुखातिब हुई |
" अरे ! मैडम ...आज आपको आने में देर हुई ... आप को नींद आ रही है ....आप जाईये .... " दिव्या ने चट से उत्तर दिया |

हार कर टीचर खुद गई अपने घर अपना छूटा पन्ना लाने |

Sunday, May 4, 2014

टेरेस का गमला


05 May 2014
09:47
       -इंदु बाला सिंह

" मेरा बेटा नवीं कक्षा में है ..... सुधान्सु नाम है ...क्लास में कैसा है वह ?....... मुझे तो बड़ी चिंता रहती है उसकी ..... एक बार किसी लड़की के चक्कर में पड़ गया वो तो हो जायेगी उसकी पढाई गोल .... " छोटे कक्षा में पढ़ानेवाली सीनियर शिक्षिका  सुश्री सुचिता वर्मा ने विद्यालय में नई ज्वाईन की से पूछा |
दोनों का खाली पीरियड आज एक साथ था |
नई शिक्षिका दिव्या शर्मा को अपनी सहकर्मी का यह प्रश्न हतप्रभ कर गया |
" क्या समय आया है ....... मेरी माँ हमेशा मेरी चिंता करती रहती थी ....अरी ! तू तो लड़की है न इसलिए तेरी चिंता करती रहती हूं ..... बेटा रहता तो मैं निश्चिन्त रहती ,,, " माँ का परेशान चेहरा और चिंतातुर चेहरा कौंध गया दिव्या की आँखों के सामने |
" अरे ! नहीं नहीं ... वो तो बड़ा शांत और पढ़ाकू है ..... मेरी कक्षा में तो एकदम शांत रहता है .... " दिव्या ने मुस्कुरा कर उत्तर दिया |