Tuesday, December 31, 2013

टके सेर भाजी टके सेर खाजा ( लोक कथा )

एक साधू अपने दो शिष्यों के साथ भ्रमण के लिए निकला |
घूमते घूमते वह एक ऐसे राज्य में पहुंचा जहां सब वस्तु का मूल्य एक टका था |
दोनों शिष्य बाजार से लौट कर प्रसन्नचित हो यह बात गुरु को बताये और बोले कि अब हम यहीं बसेंगे |
साधू ने कहा अब हम यहां एक पल भी नहीं रहेंगें | जहां सभी वस्तु का एक मोल होता है वह जगह रहने लायक नहीं होती |
पर एक शिष्य जिद कर के रह गया और साधू अपने एक शिष्य को साथ ले आगे बढ़ गया |
खूब आनन्द से इस राज्य में खा पी के शिष्य रहने लगा | कुछ महीनों में यह शिष्य मोटा तजा हो गया |
एक बार राज्य में चोरी हो गयी और चर पकड़ा गया |
चोर के लिए फांसी की सजा नियत हुयी |
नियत समय पर चोर को जब फांसी के फंदे के पास लाया तो पता चला कि फंदा बड़ा है |
अब राजा  ने आज्ञा दी कि शहर में ढूंढ कर सबसे मोटे ताजे व्यक्ति को लाया जाय और उसे फंदे में लटका दिया जाय |
पूरे राज्य में यह खबर आग की तरह फ़ैल गयी |
साधू तक भी यह बात पहुंची |
साधू अपने शिष्य के साथ अपने पुराने शिष्य का हालचाल  लेने इस राज्य में लौटा |
इधर खा  पी के मोटा हुए शिष्य को राजा के सिपाहियों ने पकड़ कर जेल में डाल दिया |
नियत समय पर मैदान में फांसी के मैदान में शिष्य को लाया गया फिर उससे उसकी अंतिम इच्छा पूछी गयी |
शिष्य ने कहा कि मैं अपने मित्र से मिलना चाहता हूँ |
शिष्य का मित्र आया और शिष्य के कान में कुछ कहा |
अब वे दोनों लड़ने लगे |
राजा अचंभित हुए उन्होंने उनसे आपस में लड़ने का कारण पूछा | तो शिष्य ने बताया कि यह मुहूर्त मृत्यु का बहुत अच्छा है इसलिए मेरा मित्र बोलता है कि वह फांसी पर चढ़ेगा | इस समय जो मरेगा वह सीधे स्वर्ग जाएगा |
इतना सुनते ही राजा ने जल्लाद से कहा ........ मुझे फांसी पर लटकाया जाय | यह व्यक्ति कल फांसी पर चढ़ेगा |

और राजा को फांसी दे दी गयी |


साधू अपने दोनों शिष्यों के साथ उस राज्य से निकल गया |

Sunday, December 29, 2013

एक गधे की कामना ( लोक कथा )

एक गधे के दो बच्चे थे |

जब वे गधे के बच्चे थोड़ा बड़े हुए तो गधे के मालिक ने उन्हें बेच दिया |

मालिक ने एक बच्चे को धोबी के घर बेचा और दुसरे को सर्कस में | इस प्रकार वे दोनों भाई एक दुसरे से बिछड़ गये |

दस वर्ष बाद वे दोनों गधे के बच्चे फिर एक दुसरे से मिले | अब वे दोनों बड़े हो चुके थे |

" अरे ! तुम कितने दुबले हो गये हो ? " सर्कसवाला गधा अपने भाई को देख दुखी मन से कह उठा |

" पर तुम कितने मोटे ताजे हो | " धोबी के घरवाला गधा कह उठा |

" हां .. जहाँ मैं रहता हूँ वहां बहुत से जानवर रहते हैं | सबको भरपेट खाना मिलता है | हमारे यहां डाक्टर भी आता है | हम बीमार होते हैं तो हमें दवा भी देता है | .... पर हमें यहां वहां बहुत भटकना पड़ता है .. देखो मेरे  खुर कितने घिस गये हैं पर तुम्हारे खुर कितने चमकीले हैं | "

" हां .. सचमुच तुम्हारे खुर घिस गये हैं ... ऐसा करो तुम सर्कस छोड़ कर मेरे पास आ जाओ ...हमलोग साथसाथ रहेंगे | "

" हां ... तुम्हारी बात सही है ...मैं कुछ दिन बाद तुम्हारे पास आ जाऊँगा .... असल में न हमारे सर्कस में एक सुन्दरी है ... वह हवा में उड़ती है ...एक बार जब वो गिरी नीचे तो हमारे मास्टर ने उसे जाल में बचा लिया .. पर वह उसे एक चपत मारते हुए बोला  कि अब दुबारा वह इस प्रकार गिरेगी तो उसकी शादी वह एक गधे से करा देगा ... वो मास्टर बहुत जिद्दी है ...जो बोलता है उसे कर के  दिखाता है .... इस बार जब वो लड़की नीचे गिरेगी तो मेरी शादी जरुर उस लड़की से हो जायेगी फिर मैं आ कर तुम्हारे साथ रहूँगा | "


फिर मिलने की आशा में दोनों गधे अपने अपने मालिक के पास चले गए 

Saturday, December 28, 2013

एक स्नेहिल परिचय नन्हे बच्चे से

" किस क्लास में पढ़ते हो ? "

" वन क्लास में | "

" तुम्हारे क्लास टीचर का क्या नाम है ? "

" सुप्रभा मैम | "

" तुम्हारे प्रिंसिपल का क्या नाम है ? "

कुछ समय सोंचने के बाद बच्चा बोला .... " पता नहीं | "

" तुमको कौन सा विषय सबसे अच्छा लगता है ? "

" सब विषय अच्छा लगता है | "

" ऐसे कैसे  ......... एक विषय ज्यादा अच्छा लगता होगा न | "

" अलग अलग टीचर पढ़ाती हैं न ...मुझे रेनू मैम अच्छी लगती हैं ..... जिस दिन वो नया  कपड़ा पहन  कर आती हैं उस दिन  .... हाँ मुझे गणित अच्छा लगता है | "

" अच्छा .......तुमको टेबल कितने तक याद है ? "

" ग्यारह तक  | "

" तुमको स्कूल की प्रार्थना याद है ? "

" सुनाओ | "

आधी प्रार्थना सुनाने के बाद वह बच्चा बोला ... " आगे याद नहीं | "

धूप में सूखती हरी मटर पर बच्चे की निगाहें बार पड़ रहीं थीं |

" क्या आप मटर देंगी ? "

" जरूर | " एक मुट्ठी मटर नये नन्हे मित्र की छोटी हथेली में भर दिया |

नन्हा मित्र खुशी से अपने घर की ओर दौड़ पड़ा |






Monday, December 23, 2013

कुत्ता और कांच का घर ( लघु कथा )

एक कुत्ता था |

वह एक दिन एक कांच के घर में भूल  से घुस गया | जिस तरफ वह देखे उसे एक कुत्ता दिखाई दे | गुस्सा से वह उस पर भूँकने लगा | भूंकते भूंकते  वह थक गया और हार कर बैठ गया |

कुत्ते ने देखा कि सामनेवाला कुत्ता भी बैठ गया है | थोड़ी देर बाद वह कुत्ता उठ खड़ा हुआ और कांच में के कुत्ते को देख अपनी दुम हिलाने लगा | अब दूसरा कुत्ता  भी दुम हिला रहा था |

कुत्ते को बड़ा मजा आया | वह जोर जोर से कूद कर कांच में के कुत्ते को छूने लगा | उसने देखा कांच के अंदर वाला  कुत्ता भी उसे छू रहा है |

इस प्रकार वह देर तक खेलता रहा कुत्ता | फिर वह कांच के घर से बाहर निकल आया |


अब वह हर रोज जाता था उस कांच के घर में क्योंकि उसे वहां मजा आने लगा था |

Sunday, December 22, 2013

ग्राफ कापी ( स्कूल की कहानियाँ )

" ग्राफ कापी निकालो " ग्यारहवीं कक्षा में प्रवेश करते ही टीचर ने आदेश दिया |

" जमा करो अपनी कापी यहाँ मेरे सामने टेबल पर | "

टाफी खरीदने के लिए पैसे हैं कापी खरीदने के लिए नहीं | टीचर यह जानती थी | इसलिए आज वह देखना चाहती थी बच्चे कापी लाये हैं कि नहीं |

सारी कापियां जमा हो गयीं टेबल पर |

टीचर ने गिना कापियों को | कक्षा में छात्र साठ थे आज कापियां भी पूरी साठ थीं |

जब नाम देख देख कर उसने एक एक कापी चेक किया तो पाया छ: कापियां दुसरे सेक्शन के बच्चों की हैं |
एक एक का  नाम पुकार कर टीचर ने बच्चों को कापियां वापिस कर दिया |

अब छ कापियां रह गयीं टीचर के पास |

" टीचर ! कापी दे दीजिये ... और कभी नहीं मांग कर लाऊंगा | " एक बच्चा चिल्लाया |

" बिलकुल नहीं ! "

पीरियड खत्म होने पर कक्षा से निकल दो मीटर चली थी टीचर कि दूसरे सेक्शन का छात्र विमल दौड़ा आया |

" टीचर ! वो मेरी कापी थी ..प्लीज टीचर दे दीजिये "

" तुमने दी क्यों थी अपनी कापी श्रद्धा को ?...तुम्हें भी सजा मिलेगी | "

" नहीं टीचर ! और नहीं दूंगा | "

" बिलकुल नहीं ..ये कापी मेरे पास रहेगी ... ज्यादा परेशान करोगे तो फाड़ दूंगी कापी और डस्टबीन में दाल दूंगी  "

" फाड़ के देखिये तो .. " पीछे से एक मद्धिम आवाज आयी |

" अच्छा टीचर ...नये साल में दे दीजियेगा ...हैप्पी न्यू इयर | " और विमल झुक कर टीचर के पैर छू लिया |


पनडब्बा ( लोक कथा }

एक औरत थी | वह खूब पान खाती थी | उसके पास एक ख़ूबसूरत पनडब्बा था | वह चाहती थी लोग उसके पनडब्बा के बारे में जानें | उस पनडब्बा को लोग देखें | पर कैसे दिखाए वो सबको | लोगों को जबरदस्ती तो दिखा नहीं सकती थी |
एकाएक उस औरत के दिमाग में एक उपाय आया | उसने अपने घर में आग लगा दी |

घर जलते देख कर अगल बगलवाले दौड़े | कोई आग बुझा रहा था तो कोई सामान निकल रहा था |

वह औरत चिल्लाई ...अरे मेरा पनडब्बा निकालो !

कुछ लोग पूछे ...अरे आप पान खाती हैं ?


वह औरत बोल पड़ी ....आगे पूछे होते तो क्या मैं अपने घर में आग लगाती |

Tuesday, December 17, 2013

आलसी भालू और मेहनती भालू ( लोक कथा }

दो भालू थे |
एक आलसी भालू था और एक मेहनती भालू था |
मेहनती भालू दिन भर घूमता था और शहद इकठ्ठा करता रहता था | वह शहद खाता था और भविष्य के लिए अपने कमरे के ड्रम में डाल देता था |
आलसी भालू दिन भर धूप सेंकता रहता था | अपने घर के सामने लेटा रहता था |
आलसी भालू ने अपने कमरे से मेहनती भालू के कमरे तक जमीन के अंदर अंदर एक सुरंग खोद दी थी |उस सुरंग से उसने एक पतली पाईप का एक छोर शहद वाले ड्रम में डाल दी थी और दूसरी छोर अपने कमरे में रक्खी थी | जब मेहनती भालू घर से बाहर जाता था तब आलसी भालू मेहनती भालू के ड्रम से शहद मुंह से पाईप की सहायता से सोख कर पी जाता था |
एक दिन मेहनती भालू जब अपने ड्रम को देखने गया  | वह सोंचा था कि काफी शहद इकठ्ठा हो गया होगा पर उसका ड्रम दस प्रतिशत ही भरा था शहद से |
आलसी भालू बहुत दुखी हुआ |
उसने अपनी समस्या अपनी मित्र लोमड़ी को बताई |
लोमड़ी मेहनती भालू के घर पहुंची | उसने उसके घर का मुआयना किया | बाहर सोये आलसी भालू को देख उसकी भौं चढ़ गयी  |
लोमड़ी ने मेहनती भालू से निश्चिन्त हो जंगल जाने को कहा | वह खुद  भालू के घर में अकेली रह गयी |
लोमड़ी ने घर में चूल्हे एक डेकची में पानी चढ़ा दिया |
मेहनती भालू को जाते देख आलसी भालू अपने घर में घुसा और शहद सोखने के लिए पिप में मुंह लगाया |
उधर लोमड़ी ने खौलता  पानी ड्रम में डाल दिया |
और शहद सोखने लगे आलसी  भालू का मुंह जल गया |
इस घटना के बाद से आलसी भालू ने कभी शहद नहीं चुरायी  और वह खुद शहद इकट्ठा करने जंगल जाने लगा |






Thursday, December 5, 2013

अनाथ दादी

" दादी बोली , मैं कहां जाउंगी इस उमर में " बगल घर से आती पोते की आवाज ने जी कचोट दिया |

हाय रे अबला जीवन क्या तेरी यही कहानी
आंचल में है दूध और आँखों में है पानी |

आज भी भी सजीव है यह भाव हर घर में | आज भी न बदली महिला की स्थिति |

बगल घर में दादा जी को गुजरे एक वर्ष हो गया था | अपने मकान में रहते हुए भी दादी जरूर एक छत की तलाश में व्याकुल हो रही होगी उसने सोंचा |

दादी दादा के पहले ही गुजर गयी होती तो समस्या ही न थी |

दादा के सामने बेटों के खड़े होने की मजाल न थी |

आरक्षण और कानून की फाईल ऑफिस में ताक में पड़ी थी |


और पड़ोसन दादी के दुख में मैं तड़प रही थी |

बिटिया मेरा घर भी तेरा है !

ठेकेदारी मिट गयी थी ध्यान वर्मा की | शहर में काम का अभाव था | कर्ज कर्ज पर कर्ज चढ़ रहा था वर्मा जी पर | आखिर मकान बेच कर कर्जमुक्त हुए वर्मा जी |

मकान खरीदा पाकिस्तान से विस्थापित सरदार जी ने अपनी बेटी दामाद के लिए |
चार वर्ष में ही मकान बना ध्यान वर्मा का विवाह हुआ , दो बच्चे हुए और मकान भी बिक गया |

सरदार जी ने विस्थापन का कष्ट झेला था |


" बिटिया ! मेरा घर भी तेरा घर है ..जब भी इस शहर में आना मेरे घर में ठहरना | " मकान खाली करवाते वक्त सरदार जी वर्मा जी की पत्नी के सर पर आशीर्वाद के लिए हाथ फेरते वक्त कह उठे |

Monday, December 2, 2013

पगली भिखारिन

पगली भिखारिन ने घर के गेट पर खड़े  हो गृह स्वामिनी से हाथ के इशारे से खाने का सामान मांगा |

दोपहर का समय था |
मिसेज वर्मा  ने सोंचा भूखी होगी बेचारी और केले के पत्ते पर दाल चावल सब्जी परस कर ले आई और रख दिया उस भिखारिन  के सामने |

" No ... only biscuits !.... " अंग्रेजी में मिले नकारात्मक उत्तर से हतप्रभ रह गयी मिसेज वर्मा |

इस शहर में नया आया था उनका परिवार |

शाम को मिसेज वर्मा ने जब पड़ोसन मिसेज सुन्दरम को दोपहर का वाकया सुनाया तो वे  झट बोल पडीं  ......
" अरे ! उसका आदमी उसे छोड़ दिया है ...ये भिखारिन पढ़ी लिखी औरत है ....दुःख से इसका दिमाग फिर गया है ...यह किसी के घर का खाना नहीं खाती है ...भीख में मिले पैसों से होटल में खाती है ..और ऐसे ही फाटे चीथड़े कपड़ों में घूमती रहती है सडकों पर ..रात को कहीं भी सो जाती होगी | "

" इस बार मेरे बर्थ डे में मेरी माँ ने एक साड़ी भेजी है ..बीस हजार की है वो साड़ी ...आईये देखिये | " मिसेज सुन्दरम ने अपने घर का गेट खोलते हुए कहा |