Tuesday, October 29, 2013

कितना ख्याल रखते हैं बेटे !

रोटी बनाते वक्त गर्म तवा से हाथ लग जाने वहां  की  चमड़ी काली पड़ गयी | पास में रहनेवाली बेटी ने  नियोस्प्रिन लगा दिया था |

छोटा बेटा सुन कर दुसरे शहर से आया | उसने डाक्टर को दिखाया | डाक्टर ने खाने को टेबलेट दिया और हाथ में लगाने को मलहम |

बड़ा बेटा दूर देश में था | उसने अपने पैतृक शहर में रहनेवाले मित्र को माँ के पास भेजा माँ का हाल चाल लेने | वह  मित्र  दूकानदार से पूछ कर एक मलहम और टेबलेट लाया और दिया माँ को |

तीनों की दवा बारी से अपने जले स्थान पर लगा कर माँ खुश हुयी |

पास में रहनेवाली बेटी की आवश्यकता माँ को महसूस न हुयी |

" कितना ख्याल रखते हैं बच्चे मेरा ! " माँ पड़ोसन से अपने बच्चों बच्चों करने लगी |

माँ के हाथ की चमड़ी ठीक होने में दो माह लग गये |





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Monday, October 28, 2013

लड़की भाग गई !

" क्या हुआ ? .....क्या थाना पुलिस लगा हैं घर में ! " पत्नी ने घबरा के पति से पूछा |

" मिस्टर शर्मा की लड़की अपने मुहल्ले के लड़के के साथ भाग गयी है | "

" लड़का क्या करता है ? " पत्नी ने उत्सुकता से पूछा |

" किसी कम्पनी में काम करता है ...लड़के का बाप नहीं है ....केवल माँ है ....अपना घर है | "
" अरे वाह ! तब तो अपनी ही पार्टी है ... " पत्नी ने ताली बजाते हुए कहा |


पति महोदय पत्नी को खा जानेवाली निगाहों से देखते हुए घर से निकल गये |

Sunday, October 27, 2013

अकेलापन सरक आया जीवन में

उसने बस यूँ ही कल्पना को फोन किया था | गप्पें मरने का दिल कर रहा था उससे |


" सुना तुमने ! सुलभा के पिता का एक्सीडेंट में स्पॉट डेथ हो गया है ? " कल्पना फोन उठाते ही कहा था | वह घबरा गयी थी सुन कर  यह खबर |

सुलभा दस वर्ष पूर्व उसकी सहकर्मी थी | उसका भाई कैंसर के लास्ट स्टेज में था |

" बेटे के वे अस्पताल में भर्ती कर के लौट रहे थे तभी राह में एक पैदल सवार को बचाने में उनका स्कूटर डगमगा गया  और वे गिर पड़े | ब्रेन में चोट लग गयी |...हास्पिटल में ले जाने पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया |... आई०  सी०  यू० से बेटे को पिता के अंतिम दर्शन के लिए लाया गया तो बेटे के भी प्राण पखेरू उड़ गये | .....कल ही दाह संस्कार हुआ है पिता पुत्र दोनों का | " कल्पना ने आगे बताया |

वह सन्न थी इस खबर पर | घर में मात्र माँ और सुलभा | कैसे कट रहे होंगे दिन ?...इसके आगे वह सोंच नहीं पाई | शाम भारी हो गयी थी उसकी |




               

गन्दी कार

" हाय ! कितनी गन्दी हो गयी है कार ! ....शर्म नहीं आती ! " पत्नी के मुख से निकल  पड़ा |

पति को दहेज में मिली थी कार |

पति तो चुप रहा पर चुभ गये शब्द मुझे | उस समय मैं छत पर टहल  रही थी |

Saturday, October 26, 2013

व्यापार में भी इमानदारी ( लोक कथा )

विक्रम संवत 1740 की कथा है | एकबार गुजरात और सौराष्ट्र में अकाल पड़ा | खेत सूख गये | पशु - पक्षी सूखे के कारण मरने लगे | कितने यज्ञ व धार्मिक अनुष्ठान किये गये पर बर्षा न हुयी | किसी ने राजा से कहा  कि  अमुक व्यापारी चाहे तो वर्षा करवा सकता है | राजा उस व्यापारी के पास पहुंचे और उससे वर्षा करवाने की प्रार्थना करने लगे | अब व्यापारी बड़ा परेशान हुआ |

" हे राजन ! मैं एक आम आदमी हूं | मैं कैसे बरसा करवा सकता हूं | " उस व्यापारी ने राजा को समझाया

" क्या तुम्हें मूक पशुओं पर दया नहीं आती ? खेत सूख गये हैं | मुझे विश्वास है तुम प्रार्थना करोगे तो वर्षा जरूर होगी | " राजा ने व्यापारी से विनम्रता पूर्वक कहा |
परेशान व्यापारी घर से अपनी तराजू ले आया और खुले आकाश के नीचे खड़े हो कर प्रार्थना करने लगा |

" देवगण और लोकपाल साक्षी हैं , यदि इस तराजू से मैंने किसी को ठगा नहीं है , यदि इस तराजू से मैंने सदा ही सत्य और धर्म से वस्तुओं को तौला है तो हे देवराज इंद्र ! आप शीघ्र वर्षा कीजिये | "

व्यवसायी के मुंह से यह वाक्य निकलते ही आकाश मेघाछ्न्न हो गया | मेघों का गर्जन सुनाई देने लगा | कुछ ही मिनट में मूसलाधार वर्षा हुई | धरती शीतल हो गयी |

Monday, October 14, 2013

पहले हम खा लेब

 " बचवन के जिन खाए दे ! ... हम आवत हयीं ..... पहले हम खा  लेब तब केहू के दीहे  | " ताई सब्जी काट रही थी |

गांव में पड़ोसी तिवारी जी के घर से बैना ( मिठाई ) आया था | तिवारी जी की बहू शहर से आई थी |

माँ ने मिठाई की कुरई ऊपर ताख पर रख दी थी |

माँ ने समझाया लोग कुछ टोना कर के देते हैं न तो जो पहले खाता  है उस पर ही उस टोने का असर होता है |


आज लग रहा है क्या दिन थे और क्या बुजुर्ग थे | टोना के अस्तित्व को तो मन मानता नहीं पर बुजुर्गो के उस त्याग को याद कर आंख आज भी भर आती है |

Friday, October 11, 2013

बैंक में रूपये जरूर रखियो

1990


" अरी कुंती ! क्या करेगी इतना पैसा जमा करके ? " मै ने एक दिन हंस कर कहा कुंती से |

" अरी मेरी सहेली ! सच में तू है बड़ी भोली | बुढ़ापे का सहारा तो पैसा है | पैसा तेरे पास न रहा तो दुनिया को क्या अपनों को भी भारी पड़ने लगेगी तू | मेरी मान भले एक कपड़ा पहन तू पर बैंक में रपये जरूर रखियो तू | " कुन्ती ने समझाया मुझे |

दो माह बाद  मैंने सुना | घर की सीढियां उतरते वक्त पैर फिसलने के कारण कुंती की मौत हो गयी है |


इस खबर ने  मुझे सन्न कर दिया |