Wednesday, July 31, 2013

छठ की छुट्टी

छठ पर्व की छुट्टी मात्र एक दिन होती थी विद्यालय में |
सुबह विद्यालय का यूनिफार्म ले कर  परिवार के साथ छठ का अर्ध्य देने गया था सुधीर | वहां से उसका सीधे विद्यालय जाना चाहता था |
एकाएक उसने देखा नहाते समय उसके  भाई को नदी की लहर बहा ले गयी है | उसने अव देखा न ताव भाई को बचाने के लिए कूद पड़ा नदी में |
सुधीर पानी के चक्रवात में फंस गया और डूब गया , पर उसके छोटे भाई को औरों ने बचा लिया |
इस घटना के बाद से छठ त्यौहार की छुट्टी विद्यालय में दो दिन की होने लगी |

छठ त्यौहार का अर्ध्य तो पहले दिन शाम को और दूसरे दिन सुबह दिया जाता है | अतः छुट्टी तो दो दिन ही दी जानी चाहिए |

Wednesday, July 24, 2013

लडकियों से कम बात करना

" तुमने गाली नहीं दी है तो कोई बात नहीं ...अगर गाली दी है तुमने तो भविष्य में मत देना | " प्रिंसिपल ने समझा बुझा कर दसवीं कक्षा के छात्र को विदा कर दिया था |
पिटाई तो अब की नहीं जा सकती थी |

कल तीन लडकियों ने रितेश के बारे में कम्पलेन किया था प्रिंसिपल को |

आज फिर एक लड़के को ले कर पहुँच गया था आफिस में ..." मैडम ! पूछिये इस लडके से मैंने नहीं दी थी गाली उन लड़कियों को |"
" तुम मेरे पास सबूत क्यों लाये हो ? " प्रिंसिपल गर्म हो गयी |
छात्र भी अकड़ गया .." तो मैडम आप मेरे माता पिता को क्यों बुलाई हैं ?"
अब प्रिंसिपल नर्म हुयी .." मैंने ऐसे ही बुलाया है | ... जानते हो ये लडकियां थाने में कम्पलेन कर देंगी तो तुम्हे कोई नहीं बचा पायेगा | "
" तो मैं क्या करूं ? " छात्र डर गया |

" कुछ नहीं ..तुम क्लास में जाओ ..और लड़कियों से कम बात करना | "

Tuesday, July 16, 2013

मोह स्त्रीधन का

" तुम अपने पापा को बोलो कि हम उपर वाले फ्लैट में रहेंगे | आखिर तुम भी तो हकदार हो घर की | तुम्हारे पापा के न रहने पर घर तो तुम्हें ही मिलेगा |...तुम समझती नहीं हो | ..हम दोनों की तनख्वाह इतनी कम है कि घर का भाड़ा देना मुश्किल हो जाता है | "
सुरुचि का भाई नहीं था | यथाशक्ति बेटी के विवाह में खर्च करने के बाद अपने मकान में पिता अपनी जीवन संध्या काट रहे थे | ऊपर का फ्लैट किराये में दिया गया था |
आये दिन घर में झगड़ा होता था | बेटी की बीमारी का खर्च पिता उठा रहे थे | इसी बीच सुरुचि एक बेटे का माँ बन गयी | सुरुचि की नौकरी तो चलती रही  साथ में  घर के अंदर  झगड़ा भी चलता रहा | सुरुचि के पति की नौकरी भी छुट गयी | परेशान पिता ने बेटी को अपने घर में रख लिया |
आखिर सुरुचि का अपने पति से तलाक हो ही गया |

सुरुचि का पति गाँव चला गया |
  

सहकर्मी

श्रीधर और द्वारिका दो सहकर्मी आपस में मित्र थे |

" उम्र बढ़ चली है | अब हम लोगों को वालंटरी रिटायरमेंट ले लेना चाहिए | " श्रीधर ने कहा |

दोनों ने एक साथ वालंटरी रिटायरमेंट के लिए अप्लाई कर दिया |
दूसरे दिन चुपके से श्रीधर ने अपना वालंटरी रिटायरमेंट वाला अप्लिकेसन वापस ले लिया |
प्रिंसिपल बनने के राह का काँटा हट गया |

कुछ ही दिनों में श्रीधर का प्रोमोशन हो गया |

कुछ तो करना होगा

गरीब पढ़ी लिखी प्रतिभा को पिता ने अपने पास अपने घर में रख लिया था | एक ही पुत्री थी प्रतिभा की | पिता ने सोंचा ठीक है नतिनी तो ब्याह कर अपने घर चली जायेगी |  उनको सहारा रहेगा प्रतिभा का और प्रतिभा का भी जीवन कट जायेगा | नौकरी तो प्रतिभा करती ही है |
आदमी जो सोंचता है वह होता नहीं है |
पिता की मृत्यु  हो गयी | लोकलाज हेतु माता की देखभाल हेतु विदेशी पुत्रों ने सहायिका  रख ली घर में |
कानून घर की हकदार बहन किसी को फूटी आँखों न सहायी |
" यहां क्यों रहती है प्रतिभा ?....उसकी बेटी तो इतने बड़े अफसर की पत्नी है |...बेटी के पास रहना चाहिए न |.....अच्छी मुसीबत है घर में |.....इसके रहते हम घर बेच भी नहीं सकते |....." भाई आपस में
खुसपुसाते |
निरीह माँ तो बेटों आश्रित ही थी |
माँ की मृत्यु के बाद घर बिक सकता था | करोड़ की संपत्ति के घर पर बहन बैठ गयी थी |

" कुछ तो करना होगा ...."

Thursday, July 4, 2013

बुढ़ापा

" सुपू ! सुपू ! " नानी की आवाज दुसरे कमरे से आयी |
परेशान हो अपने बगल के बिस्तर में सोयी  अपनी माँ को देखा उसने |
इसी तरह उसके नाना भी आवाज लगाते थे अपने  बगल में सोये अटेंडेंट के न उठने पर |
परेशान थकेहाल माँ उसकी माँ बीमार पड़ जाती थी और उसे अपनी माँ को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता था | खर्च तो होता ही था परेशानी अलग से होती थी उसे |
" सुपू ! सुपू ! "
उसने देखा कि उसकी माँ बेसुध सो रही थी |
उसे भय था कि अगर अभी माँ जग जायेगी तो उसे अनिद्रा हो जायेगी |
" कर र र .. " अलार्म बजा |
जल्दी से उसने अलार्म बंद किया और मन ही मन अपने अपने शहरों में स्थित नानी के बेटे बहुओं के लिए उसने अपशब्द निकाले और बाथरूम में घुस गयी वह |

उसे ड्यूटी जाने की जल्दी थी |

इंजीनियर दमाद

इन्जीनियर मिश्रा जी ट्रान्सफर हो कर हमारी कालोनी में आये थे |
मिसेज मिश्रा दुबली पतली सांवली चौबीस या पच्चीस वर्षीय बी . ए . पास महिला थी | वह अपने पति से उम्र में पन्द्रह वर्ष छोटी थी | उनके पिता पोस्टमॉस्टर थे |
आ जाती थी वह कभी कभी हमारे घर |
" मेरे पिता की इच्छा  मेरा व्याह इंजीनियर से करने का था | और उन्होंने अपनी इच्छा पूरी कर ली | " बात बात में उनके मुंह से निकल पड़ा |
बड़ी बदनामी थी उस परिवार की | सब नए परिवार जो आते थे वे अपना खाना हीटर पर बनाते थे , पर वह महिला खाना बिल्डिंग के बाहर लकड़ी का चूल्हा जला कर बनाती थी | मैं सोंचती थी कैसा आदमी है इसका | जरा सी शर्म भी नहीं है उसे |
मिसेज मिश्रा  के दो बेटे थे | एक तीन साल का और दूसरा  दो साल का था | दोनों गोल मटोल प्यारे और दुष्ट थे |
" मेरे हसबैंड न मुझ पर बिलकुल विश्वाश करते हैं | वे दूध एक किलो लेते हैं और खुद खड़े हो कर अपने सामने पिलवाते हैं बच्चों को | उनको लगता है मैं बच्चों को दूध न पिला स्वयं ही पी जाउंगी | " मैं चुप थी पर मेरा अंतर्मन रो रहा था |

मिश्रा जी पता नहीं कौन सा पाठ पढ़ा रहे थे अपने बच्चों को |

कमीना पन बैंक का

हम बिना को बारोअर के बीस लाख रूपये देते हैं लिख कर बैंक ने इ मेल कर दिया सभी मैनेजमेंट के छात्रों को |
ऋषिकेश ने सीट कन्फर्मसन मनी एक लाख रूपये जमा कर दिया कालेज को | इस पैसों को दस तारिख तक वापस लिया जा सकता था |

ग्यारह तारिख को ऋषिकेश  को बैंक का इ मेल आया हम ने अब निर्णय लिया है कि बिना को बारोअर के हम स्टडी लोन नहीं दे पाएंगे |

बाल प्रार्थना ( लोक कथा )

एक जंगल में एक पेड़ पर एक चिड़िया अपने घोंसले में अपने चूजों के साथ रहती थी |
एक बार जंगल में आग लग गयी |
" आग ! आग !..." चिल्लाते हुए सब जानवर भागने लगे |
चिड़िया डर कर अपने घोसले में बैठी रही | उसके बच्चे उड़ नहीं सकते थे |
" माँ तुम अपनी जान बचाओ |...तुम जिन्दा रहोगी तो तुम्हें और बच्चे मिल जायेंगे |  हम अपनी सुरक्षा खुद कर लेंगे | "  चूजों ने माँ से कहा |
माँ की ऑंखें भर आयीं | दुखी मन से वह उड़ गयी |
आग पूरे जंगल को जलाते जलाते चूजों के घोंसले तक पहुँची तब दोनों ने आग से प्रार्थना की ...
" हे आग ! हम छोटे बच्चे हैं | इस घोंसले में अकेले हैं | हम उड़ नहीं सकते | ....कृपया आप हमें न जलाइए | "
उन्हें देख आग को दया आ गयी | उसने उस पेड़ को छोड़ दिया | पूरा जंगल जल चूका था पर वह एक पेड़ हरा  भरा था |
कुछ दिन बाद चिड़िया वापस लौटी तो अपने घोंसले में अपने बच्चों को सही सलामत पा फूली न समायी |


Wednesday, July 3, 2013

बहू का वेतन

स्वेता बैंक कर्मचारी थी | हाल  में ही उसका विवाह हुआ था |
" जानती हैं आप ! स्वेता के ससुर उसका सैलेरी पासबुक अपने पास रख लिए हैं | सोंचते हैं कि बहू कहीं अपनी तनख्वाह अपने पिता के घर में न दे दे | " बगल के टेबल पर कापी चेक करते करते धीमे से मिसेज शर्मा ने कहा |
मेरी कलम रूक गयी |
" हां ! ...अरे ? ...." कलम फिर छात्रों की कांपी जांचने लगी |

Tuesday, July 2, 2013

मित्रता की शक्ति ( लोक कथा )

गुलगुला , चिड़िया और चूहा मित्र थे | वे एक साथ रहते थे | चूहा दाना लाता  था , चिड़िया तिनका और पानी लाती थी और गुलगुला खाना पकाता था |
गुलगुला आग जला कर हंडी में दाना पानी डाल देता था | खाना पक जाने पर खुद कूद जाता था हंडी में कुछ देर अंदर रहता था फिर बाहर निकल जाता था | इस प्रकार खाना स्वादिष्ट बन जाता था |

एक बार अपने काम को ले कर तीनो लड़ पड़े | तीनों को अपना काम अधिक लग रहा था | आखिर तीनों ने अपना काम बदल लिया |
गुलगुला तिनका और पानी लेने चला | चिड़िया दाना लाने उड़ी | चूहे का काम  अब खाना बनाना था |
शाम हो गयी सामान जुटते जुटते |
गुलगुला लौटा तो कट फट गया था उसका शरीर | चिड़िया थकी हारी थोड़ा सा दाना जुटा पाई थी |
अब चूहे की बारी थी खाना बनाने की |

आग जलाने में और खाना पकाने में उसकी दुम और मूछें झुलस गयीं |

तीनों मित्र दुखी हुए | फिर वे निर्णय किये कि अब वे नहीं लड़ेंगें और अपने अपने  पुराने काम में ही लगे रहेंगे |

Monday, July 1, 2013

सूखी रोटी

" मैं ये रोटी कैसे खाऊँगी ? " छ: वर्षीय बालिका मचल पड़ी सूखी रोटी देख कर |
दादी उसे फुसलाई |
" देख मैं कहा कर बता रही हूँ | "
वह एक कौर रोटी का दांतों से कट लेती थी फिर गिलास से एक घूंट पानी पी लेती थी |

बालिका मुंह बिदोर कर अपनी दादी का मुंह देखने लगी |

दाखिला कालेज का


कालेज के कैम्पस में बैंक वाले ने  लोन के सैंक्शन का कागज हाथ में थमा दिया था निखिल के | उसका सपना अब पूरा होने वाला था | उसके पिता ने मित्र से पचास हजार रूपये मांग कर बेटे के पसंद के ब्रांच की सीट बुक करवा ली थी इंजीनियरिंग कालेज में | सोंचा था बाकी तो लोन से मिल ही जायेगा |
निखिल लोन सैंक्सन का कागज ले कर बैंक गया |

" बेटे इस कागज का अर्थ नहीं है कि तुम्हें लोन मिल गया है | " बैंक वाले ने समझाया निखिल को |

अब विभिन्न डाक्यूमेंट्स के साथ उसे अपने पिता का रेसिडेंसियल सर्टिफिकेट जमा करना था |
बाकी डाक्यूमेंट्स तो जमा हो गए पर रेसिडेंसियल सर्टिफिकेट बनवाना असं न था |कोर्ट के कम तो जल्दी ही नहीं होते |
फिर उसके पिता को अपने गाँव में जा कर सर्टिफिकेट बनवाना पड़ता |
निखिल  हताश हो चूका था |

मैंने भी सोंचा गया सौभाग्य बेचारे का |

फिर मैंने सुना शहर के एस . पी . महोदय खुद बैंक जाकर उस लड़के का लोन सैंक्सन करवाए |