Friday, June 28, 2013

बुद्धू ( लोक कथा )

एक घर में एक दस साल का लड़का और उसकी माँ रहते थे | गाँव वाले उसे बुद्धू के नाम से पुकारते थे |
एक दिन उसकी माँ को बुखार आया | माँ का बदन गर्म देख कर वह डर गया | उसे समझ नहीं आया कि अब वह क्या करे | फिर एकाएक उसे याद आया कि जब उसकी टांगी धूप में पड़ी पड़ी गर्म हो गयी थी तब उसने टांगी को रस्सी से बांध कर कूएं में डुबा दिया था | कूंए से निकलने पर टांगी की गर्माहट खत्म हो गयी थी | बस उसने माँ के कमर में मजबूती से रस्सी बांधी और उसे कूंए में डाल दिया | कुछ देर तक वह माँ को डुबाये रखा और फिर उसे बाहर निकल दिया | अब वह यह देख कर वह हैरान हो गया कि उसकी माँ की गर्दन लटक गयी है | 
वह बैठकर जोर जोर से रोने लगा | 
उसकी माँ  मर चुकी थी |

Thursday, June 27, 2013

मैं क्यों नाना की देखभाल करूं


सातवीं में पढ़ता था सिद्धार्थ | वह अपनी माँ , नाना , नानी और विदेश में रहनेवाले मामा , मामी को ही अपना समझता था | वह सोंचता था कि उसके पिता कमाने के लिये दूर कहीं गये हैं और वे ढेर सारा पैसा कमा कर लायेंगे |


सिद्धार्थ के नाना रिटायर्मेंट के बाद दुसरे शहर में नौकरी करते थे |

वह नाना के घर में अपनी माँ और  नानी के साथ रहता था |

सिद्धार्थ की माँ श्क्षिका थी | वह सिद्धार्थ को अपने साथ ही स्कूल ले जाती थी | माँ के स्कूल में पढ़ने के कारण उसकी स्कूल फीस माफ़ थी |
नानी हमेशा उसे सिखाती थी की उसे बड़े होकर अपनी माँ और नानी की देखभाल करनी है |

पर सिद्धार्थ का बालमन नहीं मानता था नाना के देखभाल करने के लिए |

" भला क्यों ? नाना तो कमाते हैं ..उनकी क्यों देखभाल करूं मैं | .......मेरे पापा कब आयेंगे ? " सिद्धार्थ आये दिन अपनी माँ से प्रश्न करता रहता था |

और नाना की मौत के बाद उनकी वसीयत खुली तो उसमें सिद्धार्थ के नाम की एक पाई भी नहीं थी |

रिश्ता भाई का

 " मैं भी एक कमरे में रहती हूँ | " उसकी सहकर्मी लड़की माया ने कहा |
एक वर्ष पहले उसकी माँ ने फांसी लगा ली थी और कुछ महीने पश्चात उसके पिता का देहांत हार्ट अटैक से हो गया था |
" तुम अलग खाना बनाती हो ? " आश्चर्य से वह पूछ बैठी |
" और क्या ! मैं तो अपने कमरे का भाड़ा भी भाभी को देती हूँ | पास में अपने लोग रहने से सुरक्षा रहती है | "

माया का समझदार उत्तर पा कर चुप रह गयी वह |

Wednesday, June 26, 2013

पर उपदेश बहुतेरे ( उड़ीसा की लोक कथा )

एक गाँव में एक पंडित और पंडिताईन रहते थे | पंडित जी का बड़ा नाम था | वे जगह जगह प्रवचन
देते थे पर उनकी पत्नी को बहुत अफ़सोस था कि वह उस प्रवचन को नहीं सुन पाती है |
एक बार पंडित जी का प्रवचन उन्हीं के गाँव में था | पत्नी ने सोंचा की चूँकि इस बार प्रवचन अपने गाँव में है इस लिए वह जरूर सुन पायेगी प्रवचन | पर उस दिन पंडित जी मछली लाये और उसे बढ़िया से पकाने बोले पत्नी को और प्रवचन देने चले गए |
पूरा गाँव चला प्रवचन सुनने पर पंडिताईन न जा पाई | उसे बड़ा अफ़सोस हुआ |
पड़ोसन ने उसे प्रवचन सुनने चलने के लिए पुकारा तब पंडिताईन खुद को रोक न पाई | वह भी यह सोंच कर चल पड़ी पड़ोसन के साथ की वह जल्दी ही लौट आयेगी और खाना बना लेगी |
पति के प्रवचन से मुग्ध हो गई पंडिताईन | वे अहिंसा पर वक्तव्य दे रहे थे | उदाहरण दे दे कर समझा रहे थे कि जीव हत्या पाप है |
सभी श्रोता मंत्रमुग्ध थे |
पंडिताईन को एकाएक ख्याल आया कि उसे तो घर में खाना भी बनाना है | वह जल्दी जल्दी लौट पड़ी घर |
पंडिताईन के सिर में पति के प्रवचन का इतना प्रभाव पड़ा कि उसने मछली उठा कर घर से बाहर फेंक दी और सादा खाना बना लिया |
पंडित जी प्रवचन के बाद घर लौटे | हाथ पैर धो कर खाने बैठे | पंडिताईन ने उन्हें खाना परस दिया |
खाने में मछली न पा कर वे चौंक गए | पंडिताईन से उन्होंने जब मछली की फरमाइश की तो पत्नी ने कहा कि उसने मछली बाहर फेंक दी है |
प्रवचन में वह उनके अहिंसा के मूल्य से अभिभूत है |
जब पंडित जी को मालूम  हुआ कि उनका प्रवचन पंडिताईन सुन कर मछल्री फेंक दिया है तो हंस पड़े |

...अरे ! मैं तो केवल प्रवचन देता हूँ | लोग भी सुनते हैं पर वे सब बातें वहीं झाड़ झूड़ कर सब गिरा देते हैं | मैं भी सब भूल जाता हूँ | तुमने नाहक मेरी मछली फेंक दी |

Friday, June 21, 2013

पुलिस अंकल

     
छात्रों  की भीड़ स्कूल के गेट पर देख कर एक खाकीवर्दी वाली पलिस आ गयी गेट पर |
" ये क्या है ? " स्कूल बैग से झांकते लम्बे ड्राइंग के कागज को निकले देख कर पुलिस पूछी
" प्रोजेक्ट "  छात्र ने उत्तर दिया |
फिर पुलिस ने दूसरे छात्र से वही  प्रश्न पूछा |
" प्रोजेक्ट " दूसरे छात्र ने भी कहा |
" तुम लोग यहाँ क्या भीड़ लगाये हो ? " अब अन्य छात्रों की और मुखातिब हो पुलिस ने पूछा  |
" देखिये न अंकल ! गेट ही नहीं खुला | "
" तुमने गेट क्यों नही खोला ? " दरबान की और मुड़ी पुलिस |
" सर ! गेट खोलने का समय नहीं हुआ है |....प्रिंसिपल ने जल्दी गेट खोलने मना किया है | "
" तुम्हारा प्रिंसिपल बड़ा है या मैं ?.....मैं बोलता हूँ गेट खोलो | "

और गेट खुल गया | छात्रों की भीड़ प्रवेश कर गयी स्कूल में |

Thursday, June 20, 2013

छात्र सुधार ! सड़क पे

स्कूल की गली खचाखच छात्रों से भरी थी | प्रतिदिन ओवर लोडेड आनेवाला ऑटो रिक्शा बच्चों को गली के मुहाने से ही छोड़ कर भाग रहा था |
एक ट्रैफिक पुलिस एक मोटर साईकिल सवार छात्र का पीछा करते गुजरा उसके बगल से और स्कूल गेट के सामने उस छात्र को रोक दिया | पल भर में तीन चार ट्रैफिक पुलिस और आठ  दस खाकी वर्दीधारी पुलिस मोटर साईकिल पर दनदनाते हुए आये और मोटर साईकिल सवार छात्रों से मोटर साईकिल और स्कूटी वालों से स्कूटी चाभी समेत ले कर रख लिए | जिनकी मोटर साईकिल छिनी गयी थी उनके मित्र अभी स्कूल आ रहे थे | उन छात्र मित्रों को छात्रों ने यह खबर मोबाइल से पहुंचा दी | वे पेट्रोल पम्प के पास ही गाड़ी छोड़ कर आ गये  |
  
   प्लस टू के छात्रों को बिना गीयर वाली गाड़ी चलाने का लाइसेंस मिलता है | हेलमेट पहनना भी जरूरी है |
 मोटरसाइकिल वो भी बिना हेलमेट  के चलाना तो हिरोगिरी रहती है न |
बच्चे परेशान हो टीचरों से प्रश्न पूछने लगे ...

" टीचर ! हम लोगों को गाड़ी मिल जायेगी न |.. " घर में डांट का भय था उन्हें |

इसी बीच प्रार्थना की घंटी बज गयी |
स्कूल की प्रार्थना खत्म हुयी |

माइक पर प्रिसिपल की आवाज गूंजी ....
" जिन बच्चों की गाड़ी सीज हुयी है ट्रैफिक पुलिस के थाना से अपने माता पिता के साथ जा कर वापस पा सकते हैं | ..... और जिन्होंने गाड़ी पेट्रोल पम्प के पास रखा है वे याद रखें कि पेट्रोल पम्प गाड़ी स्टैंड नहीं है | "



Saturday, June 15, 2013

पेपरवाला

1998

" ओ पेपरवाले ! "
साईकिल चलाकर गुजरता पेपरवाला रुक गया |
" कांच की बोतल लेते हो ? " श्वेता ने प्रश्न किया |
" कौन सी बोतल है ?...बीयर की बोतल एक रूपये में लेता हूँ | "
" अरे नहीं | स्क्वैश और दवा की बोतल है | " श्वेता के मुंह से सहज ही निकल गया |


पेपरवाला बिना जवाब दिए बेशर्मी से चला गया |

Tuesday, June 11, 2013

अटेंडेंट

वह अटेंडेंट था | अस्पताल में भर्ती बीमार जब डिस्चार्ज होता था तब घर के सदस्य उसे अपने घर ले जाते थे | बीमार की मृत्यु हो गयी तो  बीमार के कपड़े लत्ते उसे दान में मिल जाते थे |

करीब एक वर्ष बाद भेंट हुयी उससे |

" और कैसे हो ? "
" ठीक हूँ | आजकल एक सौ दस वर्ष के बुड्ढे का काम पकड़ा है | "

मैंने मुस्कुरा कर उसका समर्थन किया |

Friday, June 7, 2013

पुलिस बनूंगी ( लघु कथा )

" टीचर ! मैं बड़ी हो कर पुलिस बनूंगी | " पढ़ते पढ़ते एकाएक एक छठी कक्षा की छात्रा ने कहा |

" क्यों ? " टीचर चौंक पड़ी उस छात्रा के कथन पर


" मेरा भाई नहीं है न | हमलोग केवल दो बहनें हैं | मेरे माता पिता बूढ़े हो जायेंगे तो मुझे उन्हें देखना पड़ेगा न | "

Thursday, June 6, 2013

कमाई ( लघु कथा )

'' कितने हुए मैडम ! स्पीड पोस्ट के | "

काउन्टर पर बैठी महिला मौन रही |
सौ का नोट देने पर पोस्ट आफिस पर बैठी महिला ने 60 रूपये और और 39 रूपये की रसीद पकड़ा दी |
'' मैडम ! और एक रुपया | ''
'' खुचरा नहीं है | ''
'' मैडम ! एक रूपये का टिकट दे दीजिये | ''


और काउन्टर पर बैठी महिला कर्मचारी ने एक रूपये का टिकट दे दिया |

Monday, June 3, 2013

अभिवादन ( लघुकथा )

दुकान के सामने से गुजरते हुए एक दुबली पतली सी औरत को गोद में सात - आठ महीने के बच्चे को पकड़े अपनी तरफ आते देख मैं उसे पहचानने की चेष्टा करने लगी | जब तक मैं तक उसे पहचानूं  वह अपने बच्चे समेत झुक कर मेरे  चरण स्पर्श कर ली ...
एकाएक मेरे दिमाग में उसका नाम कौंधा ..'' अरे ! जयिता ! ''
यह मेरी पुरानी विद्यार्थी थी |
दुकानों की कतारों के सामने उसे इस प्रकार अभिवादन करते देख जहाँ मुझे थोड़ी खुशी हुयी वहीं झेंप भी लगी |
...''अरे ! तेरी शादी हो गयी ? ...कहाँ रहती है ? ''
...''यहीं ..पास में ही घर है | ''
...'' चलो अच्छा है ...मैका और ससुराल एक ही शहर में है | ''

मैं आगे बढ़ चली |