कंधे पर फावड़ा रख कर घर के सामने से गुजरते मजदूर को देख अवधेश प्रसाद ने आवाज लगाई |
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ए माली !
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काम करोगे ?
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जी बाबूजी |
बगान की ओर इशारा करते हुए वे कह उठे |
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यहाँ से वहाँ तक घास निकालनी है |
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कोना में भी सफाई करनी है क्या ?
उसने केले के झुरमुट की ओर इशारा कर रामदीन ने कहा | उसे उस झुरमुट में सांप बिच्छू का भय था |
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हाँ यह तो तुमको खुद समझना चाहिए |.....बाबूजी
ने
गंभीर मुद्रा में कहा |
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हाँ ! तो कितना लोगे ?
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बाबू जी एक सौ अस्सी लूँगा |...रामदीन ने सोंच विचार कर कहा |
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इतना ! अरे यह तो बहुत अधिक है भाई | नब्बे रुपये में सफाई कर दो |
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नहीं बाबूजी ! एक के हिस्से में साठ रूपया भी नहीं आएगा तो क्या काम करेंगे |
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देख लो ! सोंच लो ! जब मन करे आ कर काम कर जाना |
दस दिन बीत गए घास और भी बड़ी हो गयी |
कोई काम करने वाला न गुजरा |
एक दिन बाजार जाते समय रामदीन दिखा अवधेश प्रसाद को |
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अरे भाई ! तुम्हारे नाम से काम पड़ा है | दूसरे को मैंने नहीं बुलाया है |
दूसरे दिन तड़के
रामदीन अपने दोनों साथियों के साथ बाबूजी के गेट पर था |
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अरे ! आ गए रामदीन !
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बाबू एक सौ अस्सी दोगे न !
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ऐसा करो आधे बागान की सफाई करो | तुम्हारी बात ही सही ! नब्बे रुपये दे दूँगा |
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जैसी मर्जी आपकी बाबू !
और रामदीन अपने दोनों साथियों मिल कर फटाफट कम खतम किया और नब्बे रूपये ले कर चलता बना |
आठ बजे रमैया घर का काम करने आयी | उसने जब रामदीन को साथियों के साथ काम करते देखा तो चौंक गयी | अभी कुछ दिन पहले तो इसने नब्बे रुपये में काम करने से मना किया था आज कैसे राजी हो गया ?
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देखो ! उस दिन काम नहीं करेगा बोल रहा था | आज कैसे आ गया है | आज कल लोग भूखों मरते हैं ; काम कहाँ
मिलता है |
मालकिन की बातों ने रमैया को आहत कर दिया |
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काम करनेवाले को काम मिलेगा | आलसी आदमी को काम नहीं मिलेगा माँ जी ! आज काम करेगा एक किलो चावल खरीद कर ले जाएगा और दो तीन दिन काम नहीं करेगा ये लोग | जब भूख से पगलायेगा तो
काम ढूंढने निकलेगा | ऐसे भी कोई आदमी काम करता है ?........अंतर्मन की फुंफकार दबाते हुए रमैया कह बैठी |
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अरे ! आजकल मरद औरत दोनों काम करें तभी चलता है |......माँ जी ने रहस्यमय आवाज
में कहा |
बात करते करते रमैया का बर्तन मंज चुका था | जल्दी जल्दी उसने कपड़े भी धो दिए |
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माँ जी ! आज नाश्ता है ?
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नहीं आज तो मैं और बाबूजी केला , अंडा और दूध लिए नाश्ते में |
रमैया चुपचाप घर पोंछती रही | काम खतम करने के बाद सहसा वह पूछ बैठी ----
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चाय के लिए बोले थे हम | आप भूल गए |
दिन में में स्वप्न देखती माँ जी चौंक पड़ीं |
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हाँ ! चाय ! मैं नहीं सूनी | अभी बनाती हूँ |
दो मिनट के बाद एक प्याली चाय रमैया के हाथ में थी |
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बिस्कुट नहीं है माँ जी ! आज शर्मा माँ जी कि तबीयत खराब थी इसलिए वो सबेरे नाश्ता नहीं दी |
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क्या हुआ उसको ?
मालकिन ने उठ कर दो बिस्कुट ले आते हुए पूछा |
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ये बिस्कुट मुझे बहुत अच्छा लगता है |
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अरे ! वो दोनों मियां बीबी दिन भर झगड़ते रहते हैं |
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हाँ ! माँ जी | आप तो कितना काम करती हैं | शर्मा माँ जी तो जब बाबूजी ड्यूटी पर चले जाते हैं तब बस सोती रहती हैं | जानते हैं माँ जी ! शर्मा माँ जी का बाप मर गया है |पर बाबू अंको जाने नहीं देता है |
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आजकल जाने आने में पैसा भी तो बहुत लगता है | ......माँ
जी
ने
उबासी भरते हुए कहा |
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माँ जी ! आपका देवर आजकल कहाँ है ?
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नेपाल में है |
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अरे मेरे चादर में कितना माड दाल दी ! ...बाबूजी
कि
आवाज गूंजी |
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क्या बोल रहे हैं बाबुजी ?......रमैया
चौंक गयी |
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बाबूजी बोल रहे हैं कि उनके चादर में तुने ज्यादा माड दाल दिया |
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ज्यादा हो गया माँ जी !
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बोल तो रहे हैं |
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थोड़ा पानी में डुबाकर फिर से धो लेना |....बाबूजी
की
आवाज गूंजी |
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क्या बोल रहे हैं बाबूजी ?
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बाबूजी बोल रहे हैं कि एक बार पानी में डूबकर सुखा देगी तो माड घट जाएगा |
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अच्छा माँ जी !
अब तक चाय खत्म हो गयी थी | कप धो कर रमैया रखती हुयी बोल उठी ----
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मैं जा रही हूँ माँ जी ! दरवाजा बन्द कर लेना |