Wednesday, July 25, 2018

चांदी का घुँघरूवाला चाभी का गुच्छा

-इंदु बाला सिंह

ब्याह के चार वर्ष बाद उसे पति से  उपहार में मिला था चांदी का घुँघरूवाला चाभी का गुच्छा ।

कमर में चाभी का गुच्छा खोंसे वह इस कमरे से उस कमरे घूमती थी तब उसके पैरों कीपायल के संग उसके  कमर से लटकता चाभी का गुच्छा भी रुनझुन बज उठता था ।

" भाभी ! आप छुप के हमारी आप पहरेदारी कर ही नहीं सकतीं । आपके हमारे पास पहुंचने से पहले आपके पायल और चाभी के गुच्छे की आवाज हम तक पहुंच जाती है । " स्कूल में पढ़नेवाला देवर कह उठता था।

कमर का चाँदी का चाभी गुच्छा उसके मन में एक तृप्ति का भाव भर देता था । कमर से लटकता चाभी का गुच्छा उसके मन में   घर की मालकिन के भाव से ओतप्रोत कर देता था ।

एक दिन ननदोई जी आये घर में । उसकी कमर से लटकता चांदी का घुँघरूवाला चाभी का गुच्छा उनके मन को भा गया ।


" साले साहब ! आपकी पत्नी  का चाभी -गुच्छा  बड़ा सुंदर है । इसे तुम मूझे दे दो । तुम्हारी बहन को दूंगा । "

" मैं तुम्हें दूसरा चांदी का चाभी गुच्छा दुकान से ला दूंगा । " और पति महोदय अपनी पत्नी के कमर से चांदी का चाभी का गुच्छा पल भर में निकलवा कर अपने जीजा को थमा दिये ।

फिर न मिला उसे चांदी का घुँघरूवाला चाभी - गुच्छा उपहार में ।

" उपहार क्या कभी मांगा जाता है !"


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