Tuesday, July 31, 2018

बेटी का पैतृक धन



-इंदु बाला सिंह

"हम लोगों ने दोनों बूआ को एक एक मकान और एक एक फैक्ट्री दी है । "

चुभ गया एक कांटा । इस छः क्लास की बच्ची के दिमाग में आखिर किसी ने तो भरी होगी यह बात । रमीशा ने सोंचा ।

जब दोनों बुआओं का ब्याह हुआ था तब इस छः क्लास की बच्ची की मां तो उसके बूआ के घर की बहू भी न बनी थी ।
दोनों बेटियों को उनके ब्याह के समय ही मिस्टर शर्मा ने मकान व फैक्टरी उपहार के रूप में दी थी । वे सोंचते थे , क्या पता कल वे रहें न रहें भाई अपनी बहन को न पहचाने ।हालांकि बेटे के नाम छः तल्ला मकान और एक फैक्ट्री लिख दी थी।

Monday, July 30, 2018

अपना मकान


-इंदु बाला सिंह


पति गुजर गये । मकान पत्नी के नाम लिख गये । पति मरने से पहले बेटे बेटी का ब्याह कर अपनी जिम्मेवारी से मुक्त हो अपनी जीवन -सन्ध्या में सदा निश्चिंत रहे ।
पत्नी विमला देवी के लिये अपनी जीवन सन्ध्या अकेले ही गुजारनी लिखी थी शायद विधाता ने ।
विमला देवी के पास अपना मेडीकल कार्ड था ।
जब चाहे वह बीमारी में अस्पताल में भर्ती हो सकती थी । दवायें मुफ्त थी । इलाज मुफ्त था ।
पर मुफ्त न थे सेवक व सेविका ।
मेहनताना ले कर भी अपनी मर्जी से काम करते थे वे ।
पूरा घर बदबूदार था विमला देवी का ।
सेविकाएं काम कर के डट के खा पी के चलीं जातीं थीं अपने घर ।
पति के गुजरते ही हित -मित्र भी ग़ायब हो गये थे ।
बेटों ने अपने पास अपनी मां को न रखा । आखिर कौन सेवा करता उस बूढ़े इंसान की ।
कुत्ता रखो घर में तो वो चोर को काट डालता है पर बूढ़े इंसान की रखवाली और सेवा से बड़ा खर्चीला कोई काम नहीं ।
विमला देवी खुश थीं । वे अपने घर में थीं । यहां वे किसी पर बोझ नहीं थीं ।
मकान जर्जर था विमला देवी की तरह । दीवारें सहारा थीं , मित्र थीं उनकीं ।
बेटे खोज खबर रखते थे अपनी माँ का अपने मित्रों के माध्यम से
एक दिन उन्हें खुशखबरी मिली ।
माँ अस्पताल के   आई o सी o यू o में  भर्ती है ।
बच्चे जुट गये ।
सात दिन के इंतजार के बाद मां गुजर गयी ।
शान से तेरही हुई मां की ।
पिता व पुत्र दोनों के मित्र मृत्यु -भोज में जुटे ।
मां को साथ न रखनेवालों ने मकान बेच कर अपने हिस्से का पैसा अपनी पत्नियों के नाम कर दिया ।

Wednesday, July 25, 2018

चांदी का घुँघरूवाला चाभी का गुच्छा

-इंदु बाला सिंह

ब्याह के चार वर्ष बाद उसे पति से  उपहार में मिला था चांदी का घुँघरूवाला चाभी का गुच्छा ।

कमर में चाभी का गुच्छा खोंसे वह इस कमरे से उस कमरे घूमती थी तब उसके पैरों कीपायल के संग उसके  कमर से लटकता चाभी का गुच्छा भी रुनझुन बज उठता था ।

" भाभी ! आप छुप के हमारी आप पहरेदारी कर ही नहीं सकतीं । आपके हमारे पास पहुंचने से पहले आपके पायल और चाभी के गुच्छे की आवाज हम तक पहुंच जाती है । " स्कूल में पढ़नेवाला देवर कह उठता था।

कमर का चाँदी का चाभी गुच्छा उसके मन में एक तृप्ति का भाव भर देता था । कमर से लटकता चाभी का गुच्छा उसके मन में   घर की मालकिन के भाव से ओतप्रोत कर देता था ।

एक दिन ननदोई जी आये घर में । उसकी कमर से लटकता चांदी का घुँघरूवाला चाभी का गुच्छा उनके मन को भा गया ।


" साले साहब ! आपकी पत्नी  का चाभी -गुच्छा  बड़ा सुंदर है । इसे तुम मूझे दे दो । तुम्हारी बहन को दूंगा । "

" मैं तुम्हें दूसरा चांदी का चाभी गुच्छा दुकान से ला दूंगा । " और पति महोदय अपनी पत्नी के कमर से चांदी का चाभी का गुच्छा पल भर में निकलवा कर अपने जीजा को थमा दिये ।

फिर न मिला उसे चांदी का घुँघरूवाला चाभी - गुच्छा उपहार में ।

" उपहार क्या कभी मांगा जाता है !"


Wednesday, January 10, 2018

ईश्वर हमें हमारा पारिश्रमिक देता है ( लघु लेख )



- इंदुबाला सिंह
हम श्रम करते हैं । अथक परिश्रम के बाद भी जब हमें वांछित फल नहीं मिलता है तब हम बरबस कह उठते हैं
' ईश्वर जरूर हमारी समस्याओं का समाधान करेगा ।'
और हम निश्चिंत हो जाते हैं । किसीपर अपनी समस्याओं के समाधान का भार छोड़ना हमारे मन का नकारात्मक भाव समाप्त कर देता है ।
ऐसे में आज सुबह सुनी एक बंगालिन की लोकोक्ति 'भगवान काना है । ' मुझे सोंचने को प्रेरित कर दी ।
उस सत्तर वर्षीय बंगालन के पास उसके अपने जीवन का अनुभव था । वह गलत तो हो ही नहीं सकती , ऐसा मुझे लगा । 'भगवान भी सबल की सहायता करता है ।' पल भर में मैं  स्वगत कह उठी ।

दादाजी जब अपने पिता से डर कर भागे


- इंदुबाला सिंह
मैं छोटा था तब अपने पिताजी के साथ ही उनके स्कूल के हॉस्टल में रहता था । मुझे दूध पसन्द नहीं था ।
एक बार मैंने सबेरे का दूध नहीं पीया । पिता मुझे पीटने के लिये दौड़ाये । मैं भागा और ' बचाईये ' कहते हुये गणित सर के पीछे छुप गया ।
मेरे पिता स्कूल के हेडमास्टर थे ।
मेरे गणित के मास्टर मेरे पिता से डरे नहीं ।
वे बोले - ' मैं राजपूत हूं ।अपने शरण में आये बच्चे को नहीं छोडूंगा । आप उसे नहीं मार सकते । '

शिक्षक सदा छात्र है ।


- इंदु बाला सिंह
सरकारी नौकरी लग गई थी । बी एड न करने पर नौकरी छूट सकती थी । दो बेटियों और गर्भवती पत्नी को गांव में छोड़ एक साल की बी एड पढ़ाई आसान न थी । महेंद्र जी हिंदीभाषी प्रदेश के थे और उड़ीसा में उड़िया माध्यम से पढ़ना आसान न था ।
हॉस्टल में उड़िया पसन्द का खाना मिलता था । शाम भर रूममेट गप्पें हांकते थे और रात को पढ़ते थे ।
महेंद्र जी ने अपना समाधान निकाला । जब शाम को रूममेट बातें करते रहते थे तब वे सो जाते थे और भोर भोर जब सब सोये रहते थे तब उनकी पढ़ाई शुरू होती थी ।
आखिर खत्म हुआ बी एड का कोर्स ।
बी एड के बाद भी महेंद्र जी का पढ़ने का शौक बना रहा । अब वे प्राइवेट एम० ए० पढ़ने लगे ।
अब वे अपने बच्चों व पत्नी को अपने साथ ही रखे थे ।
सफल शिक्षक आजीवन छात्र रहता है ।

चौकनी असीमा का स्मार्ट मोबाईल


Thursday, January 11, 2018
10:35 AM


-इंदु बाला सिंह

असीमा , स्वस्थ , प्लस टू में पढ़नेवाली लड़की थी |  कुछ महीनों से उसे हर सप्ताह हल्का फुल्का बुखार होता था फिर ठीक हो जाता था |
उसका मन किसी काम में न लगता था | पढाई में वह हमेशा अव्वल रहती थी वह अपनी  कक्षा में |  घर में भाई , बहन असीमा को आलसी लड़की कहते थे |  उसका घर अमीर था | अपने माता पिता की वह लाड़ली थी |

इस बार उसे जब बुखार हुआ तो रविवार का दिन था | असीमा ने सोंचा - ' क्यों न डाक्टर को दिखाऊं खुद को | वैसे भी आज इतवार है स्कूल नागा भी नहीं होगा | '

घर के नौकर के साथ असीमा अस्पताल गयी | डाक्टर ने उसका ब्लड चेक अप के बाद ही कोई दवा लिखने को कहा | ब्लड रिपोर्ट में असीमा के खून में व्हाइट ब्लड सेल अधिकता में पाये गये |
डाक्टर ने दवा लिख दिया |
असीमा ने दवा तो खाना शुरू कर दिया पर वह गूगल में व्हाइट ब्लड सेल की अधिकता से होने से बीमारी की खोज करने लगी |
न जाने क्यों असीमा को लगा उसे ब्लड कैंसर हो सकता है |
उसने सुना था उसके एक परिचित एक महीने के बुखार में ही ब्लड कैसर की बीमारी से चल बसे थे |
असीमा ने अपनी चिंता अपने माता पिता को बताई | पिता असीमा की चिंता सुन चौंक पड़े | उन्होंने अपनी बेटी कहा - तुम्हें ऐसा लगता है तो हम बम्बई के कैंसर अस्पताल में तुम्हारा चेक अप करवाएंगे |

अपने माता पिता के साथ असीमा बम्बई पहुंची | असीमा को अस्पताल में भरती कर डाक्टर ने विभिन्न विभिन्न टेस्ट किया |
असीमा को ब्लड कैंसर था |
डाक्टर ने असीमा के माता पिता को आश्वासन दिया - चिंता न करें | आपकी बेटी ठीक हो जायेगी | आपलोग एकदम ठीक समय पर अस्पताल पहुंचे हैं |
असीमा के माता पिता छ: महीने बम्बई में रह कर इलाज करवाये बेटी का |
स्वस्थ हो कर  लौटी असीमा लौटी अपने घर |

चौकनी असीमा की जान उसके स्मार्ट मोबाईल ने बचाई