Friday, June 30, 2017

हमारा अपना मकान था


Saturday, July 01, 2017
6:25 AM

-इंदु बाला सिंह


अपना मकान हमने बेच दिया है | हमारे बेटे को एक साल हो गये नौकरी में लगे | हम आपका मकान किराये पर चाहते हैं |
मैंने उसे सात दिन का समय देने के लिये कहा |

और वह महिला अपना मोबाईल नम्बर मुझे दे कर चली गयी |

मैं इस महिला को पहचानती थी | घर में युवा बेटी व पति थे | पति कोई बिजिनेस करता था |

मकान ससुर ने बनवाया था | अब मकान खाना तो नहीं खिलाता | हो सकता है पति ने कर्ज लिया था हो | कर्ज चुकाने के लिये वे लोग मकान बेच दिये हों | पर उस महिला का मनोबल बहुत था | वह महिला अपने मकान के आस पास ही कोई मकान भाड़े पर ले कर रहना चाहती थी | आम लोग तो अपमान से अपना मुहल्ला ही छोड़ देते हैं |

मैंने सोंचा आखिर क्यों लोग अंत तक अभिमान में डूबे रहते हैं | वह महिला अपने घर में पेइंग गेस्ट रख सकती थी | अपना ड्राइंग रूम कुछ घंटों के लिये किसी कोचिंग इंस्टिट्यूट को दे सकती थी | सोंचने पर मकान बचाने के सैकड़ों उपाय निकल जाते हैं | और अब यह सब तो पति की समझदारी पर निर्भर रहता है |
सर से छत निकल जाने देना अदूरदर्शिता है | व्यक्ति अपना रेसिडेंसियल स्टेटस भी खो बैठता है |

पर वह परिवार अपनी मरी पहचान को अब भी ढो रहा था |