Wednesday, November 23, 2016

' पिंक ' फिल्म और शहर का रंग ( लघु लेख )


Wednesday, November 23, 2016
1:52 PM

- इंदु बाला सिंह 


हमारे आम घरों में पेट की भूख को ज्यादा महत्व दिया जाता है | भारतीय मसालेदार , खुशबूदार तले व्यंजनों के क्या कहने | हर राज्य की अपनी भाषा के साथ साथ तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन भी होते हैं | काश दिमाग के भोजन की भी महत्ता हम समझते | हमारी सोंच की स्वस्थ प्रगति के लिये हमें सत्साहित्य ( विज्ञान , गणित , जीवन के रहस्य जैसे विषयों की आवश्यकता होती है |

हमारे देश का अधिकांश तबका आर्थिक रूप से पिछड़ा है | वह अपना पेट भरने के जुगाड़ के बाद अपनी शारीरिक भूख ( कामाग्नि ) के बारे में सोंचने लगता है | शराब उसे मानसिक शांति प्रदान करती है | यहाँ मैं पुरुष शब्द प्रयोग करना चाहूंगी , क्योंकि आम स्त्री तो घर का काम करती है ( अर्थात कमाती नहीं ) तो उसकी शारीरिक भूख भी जागती नहीं है |

' पिंक ' फिल्म देखने के बाद मुझे लगा कि कितनी खूबसूरती से कहानीकार ने हम आम जनता को शहरी लडकियों का भविष्य दर्शा दिया है | छोटे परिवार की सुविधाओं का आकर्षण निकटस्थ रिश्तों को भी भुला देता है और हमें अपने बच्चों के लिये विश्वसनीय सुपात्र मिलना दूभर हो जाता है |

हमारे घरों से ही तो हमारे समाज की रचना होती है | आर्थिक रूप से कमजोर घर की लड़की कमाने के लिये अपने घर से बाहर जब निकलती है तब लडकों के लिये वह मात्र एक सुलभ चीज रहती है |

क्यों न हम शारीरिक भूख विषय पर आयें | भूख तो लड़की को भी लड़के जितनी  ही लगती है |  इसी बात को ' पिंक ' फिल्म ने डंके की चोट पर दर्शाया है | ' पिंक ' के मीनल , फलक , एंड्रिया , राजबीर , डम्पी , विश्व जैसे चरित्र सेक्स की वकालत अपने अपने ढंग से कर रहे हैं | लडकों के विचार से आफिस से देर रात घर लौटती से कामाग्नि बड़ी आसानी से मिटायी जा सकती है पर ऐसी लड़कियां पत्नी का दर्जा पाने लायक नहीं रहतीं है तभी राजवीर किसी धनाढ्य लड़की को पत्नी बनाना चाहता है |

फिल्म में वकील सहगल प्रताड़ित लडकियों का पक्ष लेते हुये नजर आते हैं | वे कोर्ट में यह समझाना चाहते हैं सेक्स के लिये लड़की , पत्नी या कोई स्त्री ' नो ' बोल दे तो इसका अर्थ ' नो ' ही समझना चाहिये | इस प्रकार ' पिंक ' फिल्म लड़की का अपने शरीर पर अधिकार की वकालत करती नजर आती है |

' पिंक ' फिल्म हमें हमारे बच्चों का भविष्य दिखाने में सफल हुयी है | क्या ही अच्छा होता अगर स्कूलों में बारहवीं कक्षा के छात्रों को यह फिल्म दिखायी जाती और युवाओं को उनकी समस्याओं से अवगत कराया जाता |

सब लड़की को सहगल सा इमानदार व दयालु मित्रवत वकील नहीं मिलेगा |

हमारी बेटियां सड़क पर कितनी सारी समस्याओं का सामना कर अपने आफिस जाती और आती हैं | हम उनकी समस्याओं से आँखें चुरा उनके अर्जित धन को अपने कब्जे में रखना पसंद करते हैं |

' पिंक ' फिल्म के प्रोड्यूसर का लडकियों की समस्याओं से समाज को रूबरू कराने का प्रयास सराहनीय है |


Sunday, November 6, 2016

पांच रूपये देने का वादा


Sunday, November 06, 2016
10:41 PM

 - इंदु बाला सिंह 

चार लड़कियां पार्क में खेल रहीं थी | तीन लड़कियां करीब चार , पांच और छ: वर्ष की थीं | चौथी लड़की करीब ग्यारह वर्ष की थी | चारों लड़कियां पास की झोपड़ पट्टी की कामवालियों की बेटियां लग रहीं थीं | उनके कपड़े गंदे थे |

एक अधेड़ पुरुष उन लडकियों के पास आया और उनसे बारी बारी से बात करने लगा | जब वह युवक एक लड़की से बात करता बाकी लडकियां दूर चली जातीं थीं | इधरउधर दौड़ दौड़ कर खेलती थीं | वह पुरुष ग्यारह वर्षीय लड़की से खूब बात किया |


थोड़ी देर बाद पार्क से निकल कर चारों लड़कियां भागीं और  जोर से चिल्लायीं - ' पांच पांच रूपये हम चारों को चाहिये | '