- इंदु बाला सिंह
सबेरे से ही गुस्से में मन ही मन भनभना रही थी मैं । बाथरूम में घुस कर सिटकिनी लगायी और घूमते ही पैर का चप्पल फिसला गिरी घुटनों के बल बाथरूम के गीले फर्श पर । घुटना छिल गया था ।
क्रोध गायब हो गया । बुद्धि ने चेतावनी दी - शुक्र मनाओ सर के बल न गिरी ...... नहीं तो तुम गिरी पड़ी रहती । लोग दरवाजा तोड़ने का उपाय सोंचते । अरे ! इतना भी गुस्सा क्यों ? खुद ही कुढ़ कुढ़ कर किसका भला कर रही हो मैडम ।