Tuesday, May 24, 2016

अकेलापन और आर्थिक अभाव


25 May 2016
07:01
-इंदु बाला सिंह
पिता की मौत एक्सीडेंट में हो गयी | एकमात्र बेटी की माँ ने न जाने क्यों दूसरा ब्याह न किया | भाई सब दूर महानगर में रहते थे | माँ कभी एक बेटे के घर तो कभी दुसरे बेटे के घर रहती थी |पैतृक मकान में कोई रहनेवाला न था | खाली पड़ा घर रूपसी और उसकी माँ का सहारा था |
दसवीं कक्षा पास करने बाद रूपसी को लडकियों के स्कूल में ही पढ़ाना उचित समझा  माँ ने  | कम से कम दो साल तो लड़की सुरक्षित थी | स्कूल मिशन का था | शहर की धनाढ्य घर की लड़कियां पढ़तीं थी | न जाने किस रिश्तेदार ने स्कूल में एडमिशन के लिये पैंतीस हजार रूपये दे दिये |
स्कूल में एक दिन खेल खेल में कागज के पतले  रोल को सहपाठिन ने रूपसी की कान में घुसेड़ दिया | दर्द से तिलमिला उठी बिन बाप की बच्ची |
शिक्षिका ने सहपाठिन को  डांट  लगायी और अपने कर्तव्य से मुक्ति पायी |
रूपसी की माँ ने डाक्टर को बेटी का कान दिखाया | डाक्टर ने परीक्षण कर के बताया कि लड़की के कान का पर्दा फट गया है | उस कान से यह बच्ची अब कभी सुन न सकेगी |
पितृहीन   बच्ची    अब एक कान से बहरी भी हो गयी |
औरत के लिये अकेलापन और आर्थिक अभाव से बड़ा दुर्भाग्य कोई नहीं |

Saturday, May 21, 2016

गरीब का बेटा



-इंदु बाला सिंह

शहर के सारे स्कूल के ICSE स्कूलों में सेकण्ड स्थान प्राप्त पाये एक विद्यार्थी को इन्तजार था मीडियावालों का । हर साल शहर के विद्यालयों में प्रथम , द्वितीय , तृतीय स्थान प्राप्त विद्यार्थी की सपरिवार  फोटो  छपती थी । उस विद्यार्थी ने अपने मनपसंद रंग की टी शर्ट भी खरीद ली थी ।

इस वर्ष न जाने क्यों  फोटो न छपी किसी की ।

और उस  बच्चे का सपना आँखों में रह गया ।

वह गरीब मां  का बेटा था ।