Friday, January 15, 2016

गवंई चूहा ( लोक कथा )


- इंदु बाला सिंह


दो मित्र चूहे थे । दोनों गांव में रहते थे ।
एक दिन शहर से आयी एक कार गांव में । एक चूहा कार को देखने चढ़ गया उसके अंदर । नई कर वह खुश हुआ । इसी बीच कार का ड्राइवर आया और कार ले कर चल पड़ा ।
अब परेशान हो गया चूहा । उसे पता ही नही चल रहा था की वह कहां जा रहा है । एक जगह जैसे ही कार रुकी चूहे की जान में जान आयी । ड्राईवर कार का दरवाजा ज्यों ही खोला चूहा पलक झपकते ही बाहर निकल कर भागा ।
बचते बचाते चूहा एक होटल में पहुंच गया ।
रात का समय था । जूठे बर्तनों का ढेर था । प्लेटों में पड़े जूठन खा कर पेट भरा चूहा और फिर लकड़ी के डब्बों के ढेर में दुबक गया । अब चूहे को अपना घर गांव व मित्र याद आने लगे ।
दिन बीतते गये । अब वह पूरा शहरी हो गया था । वह मोटा चमकीली आंखोंवाला शहरी चूहा अब बलिष्ठ हो चुका था ।
बहुत दिनों बाद शहरी चूहे को अपने गांव और माता पिता की याद आयी ।
आखिर एक दिन राह ढूंढते ढूंढते वह अपने गांव पहुंच ही गया ।
गांव पहुंचने पर शहरी चूहे ने देखा कि उसके माता पिता भाई बहन कोई नहीं हैं । अपने मित्र चूहे से गांव की कथा सुन बड़ा दुखी हुआ चूहा । गंवई चूहे का परिवार बड़े कष्ट में जी रहा था ।
गंवई चूहे ने शहरी चूहे की बातें सुन सोंचा कि क्यों न कुछ दिन शहर घूम आया जाय ।
और दोनों मित्र शहर लौटे ।
अपने मित्र चूहे को होटल में जूठे प्लेट की जूठन जल्दी जल्दी खाते देख गवंई चूहा घबरा गया । उसे घिन आने लगी । वह उसी पल लौट पड़ा अपने गांव ।
गंवई चूहे का मोह भंग हो चूका था | अब वह अपने गांव के खेत की फसल खा कर अपने कुनबे में खुश था ।

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