Thursday, December 3, 2015

ज्ञानी गृहस्थ( लोक कथा )










एक  फकीर था ।

वह  प्रतिदिन एक गांव जाता था और  वहां के किसी मेहनतकश , ईमानदार और   धनी व्यक्ति के घर भोजन करता था ।

इसी क्रम में एक दिन  माणिक लाल के घर पहुंचा ।

माणिक लाल ने फकीर को बड़े  प्यार से  आसन दिया ।  उसके सामने विभिन्न प्रकार के पकवान परोसा ।

भोजन शुरू करने से पहले फकीर ने माणिक लाल की सम्पत्ति जानने चाही । फिर उसने माणिक लाल  पुत्रों के बारे में जानना चाहा ।

माणिक लाल ने कहा  -


' अतिथि महोदय ! मेरी  संतान है और मेरे पास एक हजार  मुद्रायें हैं । '

इतना सुनते ही फकीर आग बबूला हो उठा ।

' नीच ! तू सच बोलता तो क्या मैं तेरा धन ले लेता ।  सुना है कि तेरे पास अपरम्पार धन सम्पत्ति है । तेरे  चार पुत्र हैं । मैं  अन्न ग्रहण नहीं कर सकता । ' फकीर कुपित हो कर   बोला ।

माणिक लाल ने नम्रता  पूर्वक  कहा कि महोदय ! आप मेरी बात सुन लें फिर आप मुझे झूठा साबित  चाहें तो वह आपकी मर्जी ।


' महोदय ! मेरे चार पुत्र हैं । इनमे से मेरे तीन पुत्र पियक्क्ड़  हैं वे कुछ काम  धाम नहीं  हैं । जब उनको पैसों की  जरूरत पड़ती है  वे मुझे  याद करते हैं । वे मेरा धन नष्ट कर रहे हैं । इसीलिये उन तीनों पुत्रों को  मैं अपनी संतान नहीं मानता ।.....  मेरा चौथा पुत्र  मेरी दूकान में मेरी सहायता करता है । और मैं हजार की मोहरें दान व धर्म कार्य  के लिये रख छोड़ा है । '

यह सुन फकीर प्रसन्न हुआ  उसने कहा कि माणिक लाल तू तो मुझसे ज्यादा ज्ञानी है  मैं तेरे साथ भोजन ग्रहण करूंगा ।





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