Thursday, December 24, 2015

पुस्तकों की दयनीय स्थति




- इंदु बाला सिंह




- आंटी ! किताब लीजिये ।

एक दुबला पतला काला सा टाई लगाया सेल्समैन गेट के बाहर ही खड़ा हो दिखाने लगा किताब ।

- नहीं नहीं मुझे नहीं चाहिये किताब ।

घबरा कर कहा मैंने ।

मुझे उस सेल्समैन की स्थिति बड़ी दयनीय लग रही थी ।

- ले लीजिये आंटी बहुत अच्छी अच्छी रेसिपी की किताब है ।

- सब कुछ तो नेट में मिल जाता है । मुझे नहीं चाहिये किताब ।

मना तो कर दी फिर लगा ..... कैसे मर रहीं हैं पुस्तकें नेट के कारण ।

- आप  पुस्तकें किसी को गिफ्ट दे दीजियेगा ।

- नहीं नहीं ।

और मैं पुस्तकों की दयनीय स्थिति पर दुखी हो गई । 

Thursday, December 17, 2015

किताबवाला



- इंदु बाला सिंह


- वो किताब दिखाईये ।

-  एंट्रेंस की किताब है ।

मुंह टेढ़ा किया किताब  की दुकानवाले ने ।

किताब देखने को माँगनेवाला आगे चल कर इंजीनियर बना ।

और फिर एक दिन -

-  किताब दिखाईये ।

- वो एम० बी ० ए ० एंट्रेंस  की किताब है ।

आज फिर मुंह टेढ़ा हुआ किताबवाले का ।

बच्चे के साथ उसकी मां  भी थी । अपमानित हुयी  वह ।

यह वही किताब देखने को मांगनेवाला पहला बच्चा था ।

किताब देखने को मांगने पर अपमान से तिलमिलानेवाला बच्चा आज देश के प्रतिष्ठित कालेज से एम
०  बी० ए ० किया और  एक बड़ी कम्पनी में उच्च पदस्थ हुआ ।

Thursday, December 3, 2015

ज्ञानी गृहस्थ( लोक कथा )










एक  फकीर था ।

वह  प्रतिदिन एक गांव जाता था और  वहां के किसी मेहनतकश , ईमानदार और   धनी व्यक्ति के घर भोजन करता था ।

इसी क्रम में एक दिन  माणिक लाल के घर पहुंचा ।

माणिक लाल ने फकीर को बड़े  प्यार से  आसन दिया ।  उसके सामने विभिन्न प्रकार के पकवान परोसा ।

भोजन शुरू करने से पहले फकीर ने माणिक लाल की सम्पत्ति जानने चाही । फिर उसने माणिक लाल  पुत्रों के बारे में जानना चाहा ।

माणिक लाल ने कहा  -


' अतिथि महोदय ! मेरी  संतान है और मेरे पास एक हजार  मुद्रायें हैं । '

इतना सुनते ही फकीर आग बबूला हो उठा ।

' नीच ! तू सच बोलता तो क्या मैं तेरा धन ले लेता ।  सुना है कि तेरे पास अपरम्पार धन सम्पत्ति है । तेरे  चार पुत्र हैं । मैं  अन्न ग्रहण नहीं कर सकता । ' फकीर कुपित हो कर   बोला ।

माणिक लाल ने नम्रता  पूर्वक  कहा कि महोदय ! आप मेरी बात सुन लें फिर आप मुझे झूठा साबित  चाहें तो वह आपकी मर्जी ।


' महोदय ! मेरे चार पुत्र हैं । इनमे से मेरे तीन पुत्र पियक्क्ड़  हैं वे कुछ काम  धाम नहीं  हैं । जब उनको पैसों की  जरूरत पड़ती है  वे मुझे  याद करते हैं । वे मेरा धन नष्ट कर रहे हैं । इसीलिये उन तीनों पुत्रों को  मैं अपनी संतान नहीं मानता ।.....  मेरा चौथा पुत्र  मेरी दूकान में मेरी सहायता करता है । और मैं हजार की मोहरें दान व धर्म कार्य  के लिये रख छोड़ा है । '

यह सुन फकीर प्रसन्न हुआ  उसने कहा कि माणिक लाल तू तो मुझसे ज्यादा ज्ञानी है  मैं तेरे साथ भोजन ग्रहण करूंगा ।





Wednesday, December 2, 2015

अकृतज्ञता की सजा



-इंदु बाला सिंह


एक जंगल में एक साधू रहता था ।
साधू अपनी अपनी कुटिया में मनन चिंतन में लीन रहता था ।

एक दिन जब साधू समाधिस्थ था तब एक चूहा साधू  के शरीर पर उपर  नीचे होने लगा ।
साधू की समाधि टूट गयी ।


' क्या बात है ? तुम्हे क्या चाहिये ? ' - वे चूहे को  देख हंस कर बोले ।

' महात्मन्  ! मैं  बहुत छोटा हूं । मुझे बिल्ली से बड़ा डर लगता है । आप मुझे बिल्ली बना दीजिये । ' चूहे ने  हाथ जोड़ कर कहा ।

 साधु ने कहा -

' तथास्तु '

और पल भर में चूहा बिल्ली बन गया ।

कुछ दिन बाद बिल्ली बना चूहा फिर साधु के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया -

' महात्मन् ! जंगल में शेर सबसे शक्तिशाली है और मुझे शेर से डर लगता है  । कृपा कर के आप मुझे शेर बना दीजिये । '

साधू मन ही मन मुस्काये फिर उन्होंने कहा -

' तथास्तु '

पल भर में चूहा शेर बन गया और दहाड़ते हुये साधू की कुटिया से चला गया ।

बहुत दिनों के बाद एक बार साधू  जंगल से शहर की और जा था तभी राह में उसे  चूहे से बना शेर मिल गया ।

साधू को देख  शेर दहाड़ा बोला -

'आज मुझे बहुत भूख लगी है मैं तुझे खाऊंगा । '

चूहे की अकृतज्ञता  देख साधू बहुत दुखी हुआ ।

' जा..... तू पुनः चूहा बन जा । ' - कहते हुये साधू  ने शेर पर अपने कमंडल का जल छिड़क दिया ।

पल भर में शेर चूहा बन गया ।

और झाड़ियों छिपी बिल्ली अचंभित चूहे को चट कर गई ।